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Wednesday, September 9, 2015

सिद्ध मिलै तो साधिक निपजै जब घटि होय उजाला


             कहते हैं कि जब तुम्हें कुछ किसी सौभाग्य से, किसी पुण्य से, किसी सिद्ध से मिलन हो जायेगा, तभी तुम्हारे भीतर वास्तविक साधक का जन्म होगा। लोग उल्टा सोचते हैं। लोग सोचते हैं हम साधक हैं, इसलिए सिद्ध की तलाश कर रहे हैं; हम शिष्य हैं, इसलिए गुरु की तलाश कर रहे हैं। असलियत में बात उल्टी है। गुरु मिलेगा, तो तुम शिष्य बनोगे। और सिद्ध मिलेगा, तो तुम्हारे भीतर साधना पैदा होगी। क्यों? क्योंकि जब तक तुम्हें ऐसा व्यक्ति न मिल जाये जिसने जाना हो, जीया हो, स्वाद लिया हो, तब तक तुम्हारे भीतर कौन उठायेगा प्यास? कौन तुम्हें जगायेगा? कौन तुम्हें पुकारेगा? जिसने कभी देखा ही न हो कुछ भीतर, उसे भीतर की याद भी कैसे आये? असंभव है। जिसने भीतर कुछ अनुभव न किया हो, उसे भीतर जाने का सवाल भी नहीं उठता। वह तो बाहर ही बाहर घूमता है। वह तो बाहर ही बाहर प्रतीक्षा करता है।

       और जब तक तुम्हारे भीतर साधक का ही जन्म नहीं हुआ है, तो सिद्ध होने की तो बात बहुत दूर। तो तुम्हारे भीतर उजियाले की बात तो बहुत दूर। किसी उजियाले से भरे आदमी से संग साथ जोड़ लो। किसी उजियाले से भरे आदमी के साथ भांवर पाडू लो, विवाह रचा लो। यही है गुरु और शिष्य का संबंध। यही है साधक और सिद्ध का संबंध। कोई जो जग गया, जगा सकता है उसे, जो सोया है। कोई जो भर गया, भर सकता है उसे, जो अभी खाली है।

        लेकिन खयाल रखना, सिद्धों के पास होना आसान मामला नहीं है। उनके शब्द तलवारों की तरह होते हैं। उनके शब्द चोट करते हैं। वे चोट न करें तो तुम्हें जगा भी न सकेंगे। सिद्धों के शब्द मलहम पट्टा नहीं करते और तुम मलहम पट्टी की तलाश में होते हो; इसलिए तुम सिद्धों से चूक जाते हो। और दो कौड़ी के लोगों के हाथ के शिकार हो जाते हो, जिन्होंने खुद भी कुछ जाना नहीं है। लेकिन एक बात वे जानते हैं, उन्हें तुम्हारी आकांक्षा का पता है कि तुम क्या खोज रहे हो। उन्हें पता है कि तुम सांत्वना खोज रहे हो, सत्य नहीं। भला तुम लाख कहो कि मैं सत्य खोज रहा हूं तुम खोज रहे हो सांत्वना। तुम डरे हो, भयभीत हो। मौत आती है, तुम्हारे पैर कंप रहे हैं! रोज मौत घटती है, रोज कोई मरता है, रोज अर्थी उठती है, और हर बार तुम्हें झकझोर जाती है। तुम डरे हो। तुम सोचते हो, आगे का कुछ इंतजाम कर लूं।

        तुम सांत्वना चाहते हो। तुम चाहते हो कोई तुम्हें भरोसा दिला दे कि तुम रहोगे, आगे भी रहोगे, मिट न जाओगे। शरीर ही छूटेगा, आत्मा बचेगी ऐसा कोई तुम्हें समझा दे। कोई तुम्हें सिद्धात पकड़ा दे, कोई तुम्हें विश्वास दे दे। कोई तुम्हें थोथे सिद्धातों की आडू में सुरक्षित कर दे। कोई कह दे कि इतनी पूजा कर लो रोज, कि इतना पुण्य कर देना, कि गंगा स्नान कर आना, कि सब ठीक हो जायेगा। कोई सस्ता सा, सुगम सा उपाय बता दे। जागना भी न पड़े। क्योंकि जागना महंगा सौदा है। जागने के लिए मरना होता है।

      तुमने जिसे अभी तक जिंदगी जाना है, वह जिंदगी छूटेगी अगर जागना चाहोगे। वही है मृत्यु का अर्थ। तुमने जिसे जिंदगी जाना वह जायेगी। तभी वह जिंदगी आयेगी जिससे तुम अभी परिचित नहीं हो। एक जिंदगी जाये तो दूसरी जिंदगी आये। जैसे तुम हो ऐसे मर जाओ, तो तुम वैसे पैदा होओ जैसे तुम्हें होना चाहिए।

मरौ हे जोगी मरौ मरौ मरण है मीठा।
तिस मरणी मरौ जिस मरणी मरि गोरष दीठा।।


मरो हे जोगी मरो

ओशो 

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