Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Thursday, November 19, 2015

तुम्हें मुझसे प्रेम है, तुम्हें मुझसे लगाव है, तुम्हारी गहन श्रद्धा मेरी तरफ है, लेकिन मैं आज हूं और कल नहीं हो जाऊंगा। फिर तुम क्या करोगे?

परमात्मा को तुम नहीं जानते, मैं तो जानता हूं। तुम कितने ही मेरे चरण पकड़ो, मैं तो तुम्हें उसके चरण ही पकड़ाऊंगा। क्योंकि मेरे चरण आज हैं, कल नहीं होंगे। वे तो मिट्टी के हैं। मिट्टी मिट्टी में मिल जाएगी। मैं तुम्हें वे चरण पकड़ाता हूं जो चिन्मय हैं। वे कभी नहीं मिटेंगे। तुम सदा उन चरणों में डूबे रहोगे।

तुम्हें मुझसे प्रेम है, तुम्हें मुझसे लगाव है, तुम्हारी गहन श्रद्धा मेरी तरफ है, लेकिन मैं आज हूं और कल नहीं हो जाऊंगा। फिर तुम क्या करोगे? फिर तुम पत्थर की मूर्ति बना लोगे। फिर तुम पत्थर की मूर्ति की पूजा करोगे यही तो होता रहा। इसके पहले कि यह भूल हो, मैं बार बार तुम्हें उस तरफ इशारा कर देना चाहता हूं, ताकि मेरे न होने पर भी तुम्हारा और परमात्मा का संबंध न टूटे। मैं बीच में खड़ा नहीं होना चाहता, टूट जाना चाहता हूं। उतनी ही देर खड़ा होना चाहता हूं जितनी देर में तुम्हारा संबंध परमात्मा से हो जाए, बस। उससे रत्ती भर ज्यादा नहीं। उससे क्षणभर ज्यादा नहीं। क्योंकि एक क्षण की देरी भी खतरनाक हो सकती है।

अभी वैज्ञानिकों ने एक खोज की है, वह समझने जैसी है।

एक वैज्ञानिक मुर्गियों पर प्रयोग कर रहा था। आकस्मिक इस बात का उसे पता चल गया। अकसर विज्ञान की बड़ी से बड़ी खोजें आकस्मिक होती हैं। होंगी ही। क्योंकि हम तो जो खोज करते हैं, वह पुराने से सोच सोचकर करते हैं। और पुराने से बंधे रहते हैं तो नए की खोज कैसे हो? नए की खोज तो आकस्मिक होती है, अचानक होती है। हमारे हिसाब से नहीं होती। तो वह तो किसी और काम में लगा था, वह तो मुर्गियों के जीवन व्यवहार का अध्ययन कर रहा था, लेकिन एक दिन एक अचानक बात हो गई। मुर्गी अंडा से रही थी। वह मुर्गी का अध्ययन करता था कि मुर्गी कैसा व्यवहार करती है, उसने मुर्गी को उठा कर अंडे से अलग कर दिया।

वह देखना चाहता था कि वह क्रोधित होती है, नाराज होती है, झगड़ने को तैयार होती है, क्या करती है? जैसे ही उसने मुर्गी को अलग किया, संयोग की बात थी, बस संयोग की बात कि अंडा फूट गया और चूजा बाहर आ गया। और जैसा कि हर अंडे से चूजा बाहर आने के बाद अपनी मां की तलाश करता है…वह बिलकुल नैसर्गिक है। जैसे छोटा बच्चा मां का स्तन खोजने लगता है। जैसे कि मां के पेट से ही दूध पीने की कला सीखकर आता हो। अगर न आता हो तो हम सिखा भी न सकें। बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे। कोई बच्चा अगर मां के पेट से पैदा हो और दूध पीने की कला सीखकर न आया हो, नैसर्गिक, तो हम क्या करेंगे? हम बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे! न वह भाषा समझे, न हम उसे दंड दे सकते हैं, न पुरस्कार दे सकते हैं; हमारे शिक्षाशास्त्री सिर पीट लेंगे कि अब करना क्या? इसको समझाओ कैसे कि दूध पीओ? लेकिन कुछ नैसर्गिक अंतः प्रेरणा से ओंठ खुल जाते हैं। वह मां के स्तन से दूध पीने लगता है, चूसने लगता है। ऐसे ही मुर्गी का अंडा निकलता है, फूटता है।

चूजा बाहर आया, वह मां की तलाश करने लगा। मां तो मिली नहीं, खड़ा था यह वैज्ञानिक, इसका जूता मिल गया बस इसका जूता पास था, उसने जूते पर ही चोंच मारी। और एक बड़ी अपूर्व घटना घट गई। बस वह जूते के ही पीछे घूमने लगा। जहां वैज्ञानिक जाए, वह जूते के पीछे ही जाए। जूते को चोंच मारे। जूते से उसका लगाव ऐसा कि वैज्ञानिक बहुत हैरान हुआ…फिर उसने बहुत प्रयोग किए और तब यह पता चला कि जो पहले क्षण में घटना घटती है, उसकी इंप्रिंटिंग हो जाती है। उसकी एक छाप पड़ जाती है जो जीवन भर साथ रहती है। हम सोचते हैं कि वह जो बच्चा है, मां के पीछे जा रहा है। मां के पीछे नहीं जा रहा है। क्योंकि यह तो चूजा था, यह मां के पीछे गया ही नहीं। मां की फिक्र ही न करे! वैज्ञानिक बड़ी मुश्किल में पड़ गया। उसको खिलाना पड़े हाथ से दाना। क्योंकि उसके लिए तो जूता ही मां हो गया। उसकी इंप्रिंटिंग बदल गई। उस पर तो जूते की छाप पड़ गई। वह जूते के साथ ही उसका सारा लगाव हो गया।

और तब एक और मुश्किल हुई। जब वह जवान हुआ तो वह किसी मुर्गी के पीछे न जाए। मुर्गियों से दोस्ती ही न करे। न प्रेम चिट्ठियां लिखे, न बांग दे, न कलंगी निकालकर अकड़कर चले वह मुर्गियों में उसे कोई रस ही नहीं! हां, अगर जूता दिखाई पड़ जाए उसे, तो फिर क्या कहने! एकदम उसकी कलंगी अकड़ जाए, बांग दे जोर से, अकड़ कर चले। क्योंकि बच्चे की पहली पहचान स्त्री से तो अपने मां के द्वारा होती है। इसलिए जो बच्चे मां के प्रेम से वंचित रह जाते हैं, वे अपनी पत्नी को भी प्रेम नहीं कर पाते। असंभव है फिर। शुरुआत से ही गलती हो गई। शुरुआत से ही भूल हो गई।

और अगर हम थोड़ा वैज्ञानिक विश्लेषण में गहरे जाएं तो हमें समझना होगा कि आज नहीं कल, जब दुनिया थोड़ी बेहतर हो, थोड़ी ज्यादा समझदार हो, तो जिस तरह मां बेटे को पालती है, उस तरह पिता को बेटी को पालना चाहिए। नहीं तो स्त्रियां नुकसान में रह जाती हैं। बेटा तो मां को प्रेम करके स्त्री का अनुभव ले रहा है; तो आज नहीं कल वह किसी स्त्री के प्रेम में पड़ सकेगा। किसी स्त्री को प्रेम कर सकेगा। इसलिए पुरुष प्रेम में ज्यादा आतुर होते हैं, उत्सुक होते हैं। स्त्रियां प्रेम आदि में ज्यादा उत्सुक नहीं होतीं। उनकी उत्सुकता गहना साड़ी, हीरे जवाहरात इत्यादि में ज्यादा होती है। पुरुष के साथ तो वह किसी तरह गुजारा करती हैं। क्योंकि हीरे जवाहरात और साड़ी इत्यादि और कहां से आएगी? पुरुष तो एक तरह का सेवक है। और अगर वे पुरुष को प्रेम भी देती हैं तो इसी बदले में, यही सौदा है। इसलिए जिस दिन पुरुष को पत्नी का प्रेम चाहिए, उस दिन वह नई साड़ी खरीद लाता है। आईसक्रीम खरीद लाता है। फूलों का गुच्छा ले आता है। उस दिन स्त्री प्रसन्न है। और जिस दिन स्त्री को पुरुष में कोई रस नहीं है, क्योंकि वह न कुछ लाया है, न तनख्वाह का पता है महीना हो गया, न नई साड़ी खरीदी है, न कोई नया गहना…।

मुल्ला नसरुद्दीन अपने मित्र से कह रहा था कि मैं यह समझ ही नहीं पाता कि सरकार संतति नियमन का इतना प्रचार क्यों करती है? दो या तीन, बस। जगह जगह लिख रखा है: दो या तीन, बस। छोटा परिवार, सुखी परिवार। मुफ्त बांटती है साधन संतति नियमन के। फिजूल की बकवास है! मैं सरल तरकीब जानता हूं, मेरी पत्नी सरल तरकीब जानती है। उसके मित्र ने पूछा, वह क्या तरकीब है? उसने कहा, तरकीब सीधी है, कि वह एकदम करवट ले लेती है और कहती है: सिर में दर्द है। जैसे ही मैंने उसको देखा, कि वह कहती है: मेरे सिर में दर्द है। बच्चे पैदा भी कहां होंगे? कैसे होंगे? पत्नी के सिर में दर्द है! वह तो कंबल ओढ़कर एकदम सो जाती है, सिर में दर्द है। मुल्ला कह रहा था कि सरकार को हर स्त्री को समझाना चाहिए कि जब भी पति आए, एकदम से सिर में दर्द है, कंबल ओढ़कर सो गए। न संतति नियमन की जरूरत, न निरोध की जरूरत, न और तरह के उपद्रवों की जरूरत। सीधा काम, पुरानी तरकीब! जांची परखी तरकीब। सदियों की पहचानी हुई तरकीब।

स्त्री को उतना रस नहीं मालूम होता।

मेरे पास न मालूम कितनी स्त्रियां आकर यह कहती हैं कि हम थक गए हैं; यह बकवास प्रेम की कब बंद होगी? यह कामवासना से कैसे छुटकारा होगा? पति का नहीं हो रहा है। कितनी स्त्रियां मुझे आकर कहती हैं कि यह पति में कब समझ आएगी? इनका रस जाता ही नहीं। इसका कारण है। पति को पाला है मां ने, इसलिए उसे स्त्री में रस है। और लड़की को भी पाला है मां ने, इसलिए प्रत्येक स्त्री को दूसरी स्त्री के साथ वैमनस्य है, विरोध है, ईष्या है। और पुरुष के साथ कोई लगाव पैदा होने का पहला क्षण ही नहीं आ पाया। वह पहली इंप्रिंटिंग, पहला प्रभाव, वह छाप नहीं पड़ पाई।

अगर हम मनुष्य को वैज्ञानिक ढंग से कभी व्यवस्थित करें तो पिता को ज्यादा से ज्यादा मौका अपनी बेटियों के लिए देना चाहिए। जितना समय मिल सके। लेकिन हालतें उलटी हैं। अगर बेटा मां के गले झूमा रहे तो कोई अड़चन नहीं, लेकिन अगर बेटी पिता के गले झूम जाए तो मां ही एतराज करती है। मां बर्दाश्त नहीं करती कि बेटी में पिता ज्यादा रस ले। बेटी में रस लेते हुए मां कोर् ईष्या पैदा होती है। बेटी से भी ईष्या पैदा हो जाती है। इस तरह की मूढ़ता प्रचलित है। इस कारण दुनिया में स्त्रियां पुरुषों को ठीक से प्रेम नहीं कर पातीं। और चूंकि स्त्रियां प्रेम नहीं कर पातीं पुरुषों को ठीक से, पुरुषों का प्रेम भी अधकचरा रह जाता है, क्योंकि दूसरी तरफ से ठीक ठीक उत्तर ही नहीं मिलता। और जहां प्रेम अधकचरा रह जाए, वहां प्रार्थना कैसे पूरी हो? जहां प्रेम का जीवन ही न जीया जा सके वहां परमात्मा की स्मृति और सुध कैसे आए?

यहां लोग परमात्मा को याद करते हैं असफलता के कारण। और मैं चाहूंगा कि तुम परमात्मा को याद करो सफलता के कारण। यहां लोग परमात्मा को याद करते हैं कि जीवन में सब गड़बड़ हो गया। मैं चाहूंगा कि तुम परमात्मा को याद करो कि जीवन एक अहोभाग्य था, कि जीवन एक सुअवसर था, एक वरदान था, एक आशीष था परमात्मा का। तब निश्चित ही तुम्हारे धन्यवाद का स्वर दूसरा होगा। तब तुम सच में ही कृतज्ञ भाव से उसके चरणों में झुकोगे।

तो मैं उतनी ही देर तुम्हारे बीच रहना चाहता हूं जितनी देर में तुम्हारा संबंध परमात्मा से जुड़ा दूं। एक क्षण ज्यादा नहीं। क्योंकि एक क्षण अगर ज्यादा रह गया, इंप्रिंटिंग हो जाती है। वही हो गया। जैनियों की छाती पर महावीर की इंप्रिंटिंग हो गई। मुसलमानों की छाती पर मुहम्मद की इंप्रिंटिंग हो गई है। ईसाइयों की छाती पर जीसस की तस्वीर टंग गई। और यह तो आड़ हो गई। मैं तुम्हारे लिए आड़ नहीं बनना चाहता।

सत्य निरंजन, तुम्हारा प्रश्न तो बिलकुल ठीक है; तुमने जांचा ठीक; तुम परखे ठीक कि तुम पूछते हो कुछ, मैं जवाब देता हूं कुछ। बात ठीक है। वीणा भी तुमसे राजी होगी। वीणा ने भी पूछा था, उसका इशारा मेरी ही तरफ था वह मुझे भी पता है। इतनी तो भाषा मैं भी समझ लेता हूं। लेकिन मैं धीरे धीरे इधर से, उधर से परेक्षरूपेण धक्के दे देकर तुम्हें फिसलाता हूं परमात्मा की तरफ। तुम मुझसे न जकड़ जाना। हां, मैं तुम्हारे लिए इशारा बन जाऊं, बस इतना काफी। जाना तो परमात्मा में है। जाना तो उस परम सागर में है। मैं तो धन्यभागी हूं कि तुम्हें वहां तक पहुंचा पाऊं। मेरा आनंद इतना ही है कि तुम परमात्मा से जुड़ जाओ और मुझे भूल जाओ। अगर न भूल सको, तो इसीलिए याद रखना कि मैंने तुम्हें परमात्मा से जुड़ाया और किसी कारण नहीं! कहीं ऐसा न हो कि परमात्मा की जगह मैं बैठ जाऊं। तो तुम अटक जाओगे। तो तुम भटक जाओगे।

इसलिए सत्य निरंजन, जानते हुए भी कि तुम अपना निवेदन मेरी तरफ करते हो, मैं तुम्हारे निवेदन को परमात्मा की तरफ मोड़ देता हूं। मैं तुम्हारे सब निवेदन उस तरफ मोड़ना चाहता हूं। तुम्हारी आंखें, तुम्हारे हाथ, तुम्हारे प्राण, सब उसे टटोलने लगें। मेरी सन्निधि में तुम्हें उसकी याद आ जाए तो बस मेरा काम पूरा हो गया। मेरी सन्निधि में, मेरे संग साथ तुम्हें उसका रस लग जाए तो बहुत; संक्रामक हो जाए परमात्मा तो बहुत।

सपना यह  संसार 

ओशो 

 
 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts