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Monday, April 25, 2016

अनुकरण करना अपराध है

तुम किसी दूसरे व्यक्ति जैसे कभी न हो सकोगे। अपने गहरे में तुम वैसे हो ही नहीं सकते। तुम वैसे ही बने रहोगे, लेकिन तुम अपने आप पर बल प्रयोग कर सकते हो जिससे तुम लगभग किसी दूसरे जैसे दिखना शुरू हो जाओगे।

प्रत्येक व्यक्ति अपनी अनूठी निजता के साथ जन्म लेता है और प्रत्येक व्यक्ति की एक अपनी अलग नियति होती है। अनुकरण करना अपराध है, यह अपराधी होने जैसा है। यदि तुम बुद्ध बनने का प्रयास करते हो, तुम बुद्ध की नकल तो कर सकते हो; बुद्ध जैसे दिखाई भी दे सकते हो, बुद्ध की तरह चल भी सकते हो, उनकी ही तरह बातचीत भी कर सकते हो, लेकिन तुम चूक जाओगे।

तुम जीवन में वह सभी कुछ चूक जाओगे, जो वह तुम्हें देने के लिए तैयार है। क्योंकि बुद्ध केवल एक बार ही होते हैं, प्रकृति कभी अपने आपको दोहराती नहीं है। परमात्मा इतना अधिक सृजनात्मक है कि वह कभी भी किसी चीज को दोहराता नहीं। तुम वर्तमान में, अतीत में अथवा भविष्य में भी ठीक अपने जैसा कोई दूसरा मनुष्य नहीं खोज सकते। ऐसा आज तक कभी हुआ ही नहीं। मनुष्य होना कोई यांत्रिक प्रक्रिया नहीं है। वह फोर्ड की कारों की तरह नहीं है, जिनके पुर्जे जोड़कर तुम ठीक एक जैसी लाखों कारों का उत्पादन कर सको। मनुष्य के पास अपनी आत्मा है, वह वैयक्तिक है। अनुकरण करना विष तुल्य है। कभी किसी का भी अनुकरण करना ही नहीं; अन्यथा तुम पहली कोटि के धर्म का शिकार बन जाओगे, जो अपने आप में किसी भी तरह धर्म है ही नहीं।

आनंद योग 

ओशो 

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