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Thursday, April 28, 2016

ओशो, आपकी सभी निंदा क्यों करते हैं?




मैं क्या करूँ? या तो उनके साथ सम्मिलित हो जाओ अगर संन्यास से बचना हो। वे भी बेचारे इसीलिए निंदा कर रहे हैं। मैं उनके लिए एक खतरा हो गया हूँ। मेरी मौजूदगी उन्हें बेचैन कर रही है। मेरी मौजूदगी उनकी शांति छीन रही है, उनका संतोष छीन रही है। मेरी मौजूदगी उन्हें याद दिला रही है कि कुछ और भी होने का एक ढंग है, जिंदगी और ढ़ंग से भी जी जा सकती है, जिंदगी को एक और रंग भी दिया जा सकता है। उनकी जिंदगी उदास है, उनकी जिंदगी पश्चात्ताप से भरी है, उनकी जिंदगी एक हार है और एक पराजय का लंबा लंबा इतिहास है। मेरी मौजूदगी उन्हें यह ख्याल दिला रही है कि अब तक उन्होंने जो किया, वह व्यर्थ गया, लेकिन अहंकार मानने नहीं देता कि अब तक जो किया, वह गलत गया। कौन मानने को राजी होता है कि मैंने जो पचास साल जिए, वह अज्ञान में जिए। पचास साल अज्ञान में! कोई मानने को राजी नहीं होता। आदमी अपनी प्रतिष्ठा का बचाव करता है।

वे मेरी निंदा में लगे हैं क्योंकि उन्हें अपनी प्रतिष्ठा बचानी है। अगर मैं सही हूँ, तो वे सब गलत हैं। यहाँ समझौता होनेवाला नहीं है, मैं कोई समझौतावादी नहीं हूँ। या तो दो और दो चार होते हैं, या दो और दो चार नहीं होते। मैं तो सीधी बात कह रहा हूँ। वह सीधी बात उनको बेचैन कर रही है, तीर की तरह चुभ रही है। उनकी निंदा मेरी निंदा नहीं है, सिर्फ आत्मरक्षा है। वे अपनी आत्मरक्षा में लगे हैं। तो अगर तुम्हें भी संन्यास से बचना हो, तो तुम भी निंदा में लग जाओ वही उपाय है बचने का। और, अगर तुम्हें संन्यास में जाना हो, तो उन्हें निंदा करने दो! उनकी निंदा से क्या फर्क पड़ता है? तुम्हारे मेरे बीच जो घट रहा है, उनकी निंदा से गलत नहीं होता। अगर कुछ घट रहा है तुम्हारे—मेरे बीच, अगर कोई सेतु बन रहा है, अगर प्रेम के धागे फैल रहे हैं तुम्हारे—मेरे बीच, तुम्हारे—मेरे बीच कोई एक अनुभव सघन हो रहा है, तो उनकी निंदा से क्या फर्क पड़ता है? हँस लेना। उनकी निंदा से तुम भी बेचैन हो जाते हो। उसका कारण यही है कि तुम भी अभी डाँवाडोल हो। नहीं तो निंदा बेचैन नहीं करेगी। मुझे कोई चिता नहीं है उनकी निंदा से सारी दुनिया निंदा करे! अगर दुनिया को निंदा करने में मजा आता है, तो उन्हें मजा लेने दो। मजा लेने का उन्हें हक है। यह उनकी स्वतंत्रता है। मुझे इससे कोई अड़चन नहीं है।

सहजयोग 

ओशो 

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