Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Thursday, April 28, 2016

शंकारहित

मैं एक पड़ोस में बहुत दिनों तक रहा। एक घर में कोई मर गया तो मैं गया। वहा मैंने देखा कि एक दूसरे पड़ोसी समझा रहे हैं लोगों को कि क्या रोते हो, क्या घबड़ाते हो? किसी की पत्नी मर गई है, वे समझा रहे हैं कि आत्मा तो अमर है। मैं बड़ा प्रभावित हुआ कि यह आदमी जानकार होना चाहिए। संयोग की बात, तीन चार महीने बाद उनकी पत्नी चल बसी। पत्नियों का क्या भरोसा, कब चल बसें! तो मैं बड़ी उत्सुकता से उनके घर गया कि अब तो यह आदमी प्रसन्नता से बैठा होगा, या खंजड़ी बजा रहा होगा। पत्नी को विदा दे रहा होगा। लेकिन वे रो रहे थे सज्जन। मैंने कहा, भई बात क्या है? दूसरे की पत्नी मर गई तब तुम समझा रहे थे, आत्मा अमर है। वे कहने लगे अपने आसू पोंछ कर, अरे ये समझाने की बातें हैं। जब अपनी मर जाए तब पता चलता है।


मैं बैठा रहा। थोड़ी देर बाद देखा कि जिन सज्जन की पत्नी मर गई थी पहले, वे आ गए और इनको समझाने लगे कि क्या रोते हो? आत्मा तो अमर है।


ऐसा चलता लेन देन। पारस्परिक सांत्वना! तुम हमको समझा देते, हम तुम्हें समझा देते। न तुम्हें पता, न हमें पता। लोग मान लेते हैं। लेकिन मान लेने का अर्थ निशंक हो जाना नहीं है। मान तो हम वही बात लेते हैं जो हम मान लेना चाहते हैं। इस फर्क को खयाल में रखना। यह देश है, इस देश में आत्मा की अमरता का सिद्धात सनातन से चला आ रहा है। और इस देश से ज्यादा कायर देश खोजना मुश्किल है। अब यह बड़े आश्चर्य की बात है। यह होना नहीं चाहिए। क्योंकि जिस देश में आत्मा की अमरता मानी जाती हो, उस देश को तो कायर होना ही नहीं चाहिए। लेकिन पश्चिम के लोग आकर हुकूमत कर गए, जो आत्मा को नहीं मानते, नास्तिक हैं। जो मानते हैं कि एक दफे मरे तो मरे; फिर कुछ बचना नहीं है। वे आकर आत्मवादियों पर हुकूमत कर गए। और आत्मवादी डर कर अपने अपने घर में छिपे रहे। वहीं बैठ कर अपने उपनिषद पढ़ते रहे कि आत्मा अमर है।

आत्मा अमर है तो फिर भय क्या है? जिस आदमी को निशंक रूप से पता चल गया आत्मा अमर है, उसके तो सब भय निरसन हो गए। उसके तो सारे भय गए। अब क्या भय है? अब तो मौत भी आए तो कोई भय नहीं है। ऐसे आदमी को परतंत्र’ तो बनाया ही नहीं जा सकता। ऐसे देश को तो परतंत्र बनाया ही नहीं जा सकता जो मानता हो, आत्मा अमर है।

लेकिन मामला कुछ और है। हम मानते ही इसलिए आत्मा को अमर हैं कि हम कायर हैं। हममें इतनी भी हिम्मत नहीं कि हम सीधी सीधी बात मान लें, भई, हमें पता नहीं। जहां तक दिखाई पड़ता है वहां तक तो यही मालूम पड़ता है कि आदमी मरा कि खतम हुआ। और हम भी मरेंगे तो खतम हो जाएंगे। इतनी भी हिम्मत नहीं है हममें स्वीकार करने की। हम बचना चाहते हैं। आत्मा की अमरता हमारे लिए शरण बन जाती है। हम कहते हैं, नहीं, शरीर मरेगा, मन मरेगा, मैं तो रहूंगा। हम किसी तरह अपने को बचा लेते हैं। लेकिन यह कोई निशंक अवस्था नहीं है। इसलिए इसका जीवन में कोई परिणाम नहीं होता।

तो पहली तो बात है, शंकारहित निःशंको। यह तुम्हारा अनुभव होना चाहिए, उपनिषद की सिखावन से काम न चलेगा। दोहराएं लाख कृष्ण, और दोहराएं लाख महावीर, इससे कुछ काम न चलेगा। बुद्ध कुछ भी कहें, इससे क्या होगा? जब तक तुम्हारे भीतर का बुद्ध जाग कर गवाही न दे। जब तक तुम न कह सको कि हां, ऐसा मेरा भी अनुभव है। जब तक तुम न कह सको कि ऐसा मैं भी कहता हूं अपने अनुभव के आधार पर, अपनी प्रतीति के, अपने साक्षात के आधार पर कि मेरे भीतर जो है, वह शाश्वत है।

अष्टावक्र महागीता 

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts