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Thursday, April 14, 2016

विनोदप्रियता धार्मिकता का ही एक अंग है

कोई भी संबुद्ध व्यक्ति कभी स्वप्न नहीं देखता है, लेकिन संबुद्ध व्यक्तियों के पास विनोदप्रियता का गुण होता है। वे हंस सकते हैं, और वे दूसरों को हंसने में सहयोग भी दे सकते हैं। 

ऐसा हुआ कि तीन आदमी सत्य की तलाश में थे, इसलिए वे दूर दूर देशों की यात्रा कर रहे थे। उन तीनों में एक यहूदी था, दूसरा ईसाई था, और तीसरा मुसलमान था। उन तीनों में आपस में बड़ी गहरी दोस्ती थी। एक दिन उन लोगों को कहीं से एक रुपया मिल गया। उस रुपए से उन्होंने हलुवा खरीद लिया। मुसलमान और ईसाई आदमियों ने तो कुछ देर पहले ही कुछ खाया था, इसलिए वे थोड़े परेशान हुए कि कहीं यह यहूदी पूरा हलवा न खा जाए। उनके तो पेट भरे हुए थे, उन्होंने बहुत डटकर खा रखा था। इसलिए उन्होंने सुझाव दिया उन्होंने यहूदी के विरुद्ध षड्यंत्र रचा उन्होंने कहा, ‘ऐसा करते हैं, अभी तो हम सो जाते हैं। सुबह हम अपने अपने सपने एक दूसरे को सुनाएंगे। उनमें से जिसका सपना सबसे अच्छा होगा वही हलवा खाएगा।’ और चूंकि उनमें से दो इस बात के पक्ष में थे तो यहूदी को भी यह बात माननी पड़ी लोकतांत्रिक ढंग से उसे भी बात माननी पड़ी और उसके पास इसके अलावा कोई उपाय भी न था। 

यहूदी जो कि बहुत भूखा था, उसे भूख के कारण नींद ही नहीं आ रही थी। और ऐसे समय में सोना मुश्किल भी होता है जब कि हलवा रखा हो और तुम्हें भूख लगी हो और दो आदमियों ने तुम्हारे विरुद्ध षड्यंत्र रचा हो।

आधी रात वह उठा और हलवा खाकर फिर सो गया।

सुबह सबसे पहले ईसाई ने अपने सपने के बारे में बताया। उसने बताया, ‘मेरे सपने में क्राइस्ट आए और जब वे स्वर्ग की यात्रा कर रहे थे तो उन्होंने मुझे भी साथ ले लिया। मैंने अभी तक जितने स्वप्न देखे हैं उसमें यह सबसे दुर्लभ स्‍वप्‍न है।’


मुसलमान ने कहा, ‘मैंने देखा कि मुहम्मद आए और मुझे स्वर्ग के दौरे पर अपने साथ ले गए और वहा पर सुंदर सुंदर युवतियां नाच रही थीं और शराब के चश्मे बह रहे थे और सोने के पेडू थे और उन पर हीरों के फूल लगे हुए थे। वहां पर बड़ा अदभुत सौंदर्य बरस रहा था।’

अब इसके बाद यहूदी की बारी थी। वह बोला, ‘मोजेज मेरे पास आए और कहने लगे, अरे नासमझ मूढ़, तू इंतजार किस बात का कर रहा है? तेरे एक दोस्त को तो क्राइस्ट अपने साथ स्वर्ग ले गए हैं, दूसरे का मनोरंजन स्वर्ग में मोहम्मद कर रहे हैं कम से कम तू उठकर हलवा ही खा ले।’

विनोदप्रियता धार्मिकता का ही एक अंग है, और जब कभी तुम्हें कोई धार्मिक आदमी गंभीर मिले, तो वहा से भाग जाना, क्योंकि वह गंभीर आदमी खतरनाक हो सकता है। भीतर से जरूर वह रुग्ण होगा। गंभीरता तो एक प्रकार का रोग है, सर्वाधिक घातक रोगों में से एक रोग है और धर्म के क्षेत्र में यह रोग प्राचीनतम रोगों में से एक है।

थोड़ा इस बात को समझने की कोशिश करना।
 
तुम अधिक होशियार, चतुर, चालाक बनने की कोशिश मत करना, क्यौंकि वह तो केवल तुम्हारी मूढ़ता को ही दर्शाती है, और किसी बात को नहीं। स्वयं को थोड़ा मूढ़ भी रहने देना, तभी तुम बुद्धिमान होओगे। एक मूढ़ आदमी बुद्धिमत्ता का विरोधी होता है, लेकिन जो व्यक्ति बुद्धिमान होता है वह मूढ़ता को भी स्वयं में समाहित कर लेता है। वह मूढ़ता का विरोधी नहीं होता है, वह उसका भी उपयोग कर लेता है।

पतंजलि योगसूत्र 

ओशो 


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