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Thursday, April 28, 2016

कृष्ण ने अर्जुन के प्रति अपना उपदेश समाप्त कर तरंत गीता माहात्म्य बताना क्यों उचित समझा?

हला कारण, अर्जुन की चेतना उस घड़ी के करीब आने लगी, जहां वह भी कृष्ण रूप हो जाएगा। जल्दी ही वह घडी करीब आएगी। अर्जुन को पता चले, इसके पहले कृष्ण को पता चल जाना स्वाभाविक है।

तुम्हें पता चले, इसके पहले मुझे पता चल जाना स्वाभाविक है कि क्या हो रहा है। तुम्हारे ध्यान में उतरने के पहले मुझे पता चल जाएगा कि तुम उतर रहे हो। तुम्हारी समाधि फलित होने के पहले मैं तुम्हें खबर दे दूंगा कि समाधि आने के करीब है। उसकी पहली पगध्वनिया तुम्हें नहीं, मुझे सुनाई पड़ेगी; क्योंकि मैं उन पगध्वनियों को पहचानता हूं। तुम्हारे लिए तो वे पहली बार बजेंगे स्वर, तुम उनको पहचान पाओगे।

अर्जुन पहुंचने लगा है करीब, जहां वह कहेगा कि मैं निःसंशय हुआ। जहां वह कहेगा, तुम्हारे प्रसाद से मेरा संशय क्षीण हो गया; मेरे अज्ञान से भरा हुआ मोह मिट गया; और तुम्हारी अनुकंपा से मैं थिर हो गया हूं मेरी प्रज्ञा ठहर गई। अब तुम आज्ञा दो, वही मैं करूंगा। अब मेरा कोई होना नहीं है। अब तुम्हीं हो। जल्दी ही वह घड़ी रही है। उस घड़ी का आगमन अर्जुन के अचेतन में शुरू हो गया है।

जैसे पानी में एक बबूला उठता है, रेत से उठता है बबूला। उठता है ऊपर की तरफ। चलता है धरातल की तरफ। समय लगता है। जितनी गहरी पानी की धार हो। जब सतह पर जाएगा, तब तुम्हें दिखाई पड़ता है कि बबूला पानी का प्रकट हुआ। लेकिन जो गहरे डुबकी मारना जानता है, वह जानता है कि कब बबूले ने यात्रा शुरू की।

अर्जुन के भीतर उसकी गहरी अंतरात्मा से यह भाव उठना शुरू हो गया है। इसकी सुगंध उसके चारों तरफ आने लगी होगी। कृष्ण के नासापुट अर्जुन की उस भीनी सुगंध से भर गए होंगे। पहचान लिया होगा उन्होंने कि फूल अब खिला, अब खिला; कली अब खिली, अब खिली। पंखुड़ियां अब खुलने के करीब हैं। सुबह होती है, रात जा चुकी है।

इसके पहले कि अर्जुन कहे कि मैं पहुंच गया वहां, जहां तुम पहुंचाना चाहते थे, तुम्हारी अनुकंपा से, उन्होंने गीता का माहात्म्य कहा। क्यों? क्योंकि इसके बाद अर्जुन योग्य हो जाएगा। जो कृष्ण ने अर्जुन से कहा है, अर्जुन किसी और से कहने में समर्थ हो जाएगा। बता देना जरूरी है कि वह किससे कहे, किससे कहे। क्योंकि अक्सर ऐसा होता है।


जैसे छोटे बच्चों को तुमने देखा हो, जब वे पहली दफा चलना शुरू करते हैं, तो दिनभर चलने की कोशिश करते हैं। क्योंकि चलना  इतना नया अनुभव होता है, इतना आह्लादकारी, कि वे बार बार फिर खड़े हो जाते हैं; थक जाते हैं, मगर फिर खड़े हो जाते हैं।

तुमने छोटे बच्चों को देखा होगा, जब वे बोलना शुरू करते हैं, तो दिनभर बकवास करते हैं। वे बकवास इसलिए कर रहे हैं कि एक नई कला उन्हें उपलब्ध हुई है; वे उसका उपयोग करना चाहते हैं। तुम कहते हो, चुप रहो! वे चुप रह नहीं सकते; क्योंकि अगर ' वे चुप रहें, तो जिंदगीभर के लिए चूक जाएंगे। वे तो बोलेंगे, वे तो चर्चा करेंगे; वे तो बात करेंगे, वे तो एक ही बात को बार बार कहेंगे। वे फिर फिर लौटकर जाएंगे कोई खबर लेकर, कि बाहर ऐसा हो रहा है! इन सब बातों से कोई मतलब नहीं है, बात करने से मतलब है। क्योंकि एक नई कला उपलब्ध हुई है। वे। उसका अभ्यास कर लेना चाहते हैं।

और ठीक ऐसी ही घटना तब घटती है, जब तुम्हें पहली दफा परमात्म जीवन का अनुभव होता है। तब तुम्हारे पूरे प्राण उसे दूसरों। से कहना चाहते हैं।

तो कृष्ण कहते हैं, उससे कहना, जो सुनने को राजी हो। उससे कहना, जो भक्ति भाव से सुनने को राजी हो। उससे कहना, जो तपपूर्वक सुनने को राजी हो।

इसके पहले कि अर्जुन के जीवन में वह नया उन्मेष उठे और वह कहने लगे लोगों को, उसे सचेत कर देना जरूरी है

और वे गीता का माहाक्य भी कहते हैं इसके साथ ही। क्यों? क्योंकि यह भी हो सकता है कि कहीं ये सारी शर्तें कि उससे मत कहना, जो सुनने को राजी हो; उससे मत कहना, जो भाव से सुने, भक्ति से सुने; उससे मत कहना, जो तपश्चर्यारत हों कहीं ऐसा हो कि अर्जुन चुप ही रह जाए; कहे ही न। वह भी दुर्घटना होगी। क्योंकि इसके जीवन में आए और यह कहे ही न। गलत को कहे, दुर्घटना होगी। अनकहा रह जाए, बिन कहा रह जाए तो दुर्घटना होगी।

तो इसलिए वे माहात्म् भी कहते हैं कि कहने का क्या क्या लाभ है अर्जुन। जो इसको कहेगा, वह मेरा सर्वाधिक प्यारा है। वह मेरे प्यारों में अति उत्तम है। जो इसे कहेगा, वह मेरा काम कर रहा है; समर्पित है। जो इसे कहेगा, वह कहकर ही सभी पापों से मुक्त हो जाएगा। वह उन स्थानों को, उन स्थितियों को पाएगा, जो परम पुण्यों से मिलती हैं। सिर्फ कहकर भी!

तो दो बातें हैं, एक तो वे चेता रहे हैं कि गलत से मत कहना। और दूसरा वे कह रहे हैं, गलत के डर से कहीं चुप मत रह जाना। कहना जरूर! ठीक को खोजकर कहना; हर किसी को मत कहना। इसलिए इसके पहले कि अर्जुन के भीतर कृष्ण का फूल खिले, उन्होंने गीता माहात्म्य की बात कही है।

गीता दर्शन 

ओशो 

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