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Thursday, April 14, 2016

आध्यात्मिकता का सहज नियम

मैंने एक कहानी सुनी है कि एक द्वीप पर–एक छोटे-से द्वीप पर सागर में, अनजान किसी कोने में लोग एक बार बिलकुल निष्क्रिय हो गए और तामसी हो गए। उन्होंने सब काम-धंदा बंद कर दिया। जो मिल जाता, खा-पी लेते और पड़ रहते, सो जाते। उस द्वीप के ऋषि बड़े चिंतित हुए, उन्होंने कहा कि अब क्या करें! लोग सुनते ही नहीं–क्योंकि तामसी हो गए हो, यह भी तो सुनने कोई नहीं आता था। ऋषि बहुत डुंडी भी पीटते तो पीटकर आ जाते, लेकिन कोई आता नहीं सुनने उनको। आलसी हो गए हो, यह सुनने तो वही आएगा न जो थोड़ा बहुत आलसी नहीं है। तो ऋषि बहुत परेशान हुए। कोई रास्ता न सूझे। गांव धीरे-धीरे मरने लगा, सिकुड़ने लगा। तब उन्होंने कहा कि अब बड़ी कठिनाई हो गई! क्या किया जाए, क्या न किया जाए!

तो गांव के एक बहुत वृद्ध आदमी से जाकर उन्होंने सलाह ली, तो उसने कहा, अब एक ही उपाय बचा है कि पास में एक द्वीप है, सब स्त्रियों को उस पर भेज दो, सब पुरुषों को इस पर रहने दो। पर उन्होंने कहा, इससे क्या होगा? उसने कहा, वे जल्दी नाव बनाने में लग जाएंगे। वे स्त्रियां भी जल्दी तैयारी करने में लग जाएंगी। इनको बांटो। अब उनका पास-पास होना ठीक नहीं। विपरीत को विपरीत ही खड़ा कर दो, फिर जल्दी सक्रियता गूंजने लगेगी।

जवानी में आदमी सक्रिय इसीलिए होता है, बुढ़ापे में निष्क्रिय इसीलिए हो जाता है। और कोई कारण नहीं है। जवानी में पूरे पुरजोश उसमें स्त्रीत्व और पुरुषत्व होता है। वे दोनों नाव बनाने में लग जाते हैं और यात्रायें करने में लग जाते हैं। बुढ़ापा आते-आते सब थक जाता है। स्त्री पुरुष को जान लेती है, पुरुष स्त्री को जान लेता है, विपरीतता कम हो जाती है। वह जो “अपोजिट’ का आकर्षण है, परिचित होने से विदा हो जाता है, बुढ़ापे में आदमी शिथिल हो जाता है।

जिंदगी के सहज नियम में विपरीत आकर्षक है, और अध्यात्म के सहज नियम में स्वभाव, विपरीत नहीं। इसीलिए भूल होती है। इसलिए अध्यात्म जिन-जिन मुल्कों में फैलता है वे निष्क्रिय हो जाते हैं। यह मुल्क हमारा निष्क्रिय हुआ। और उसका कुल कारण इतना है कि विपरीत का आकर्षण वहां भी खींचकर ले गए। तो वहां जो पुरुषगत साधना जिसे चुननी चाहिए थी उसने स्त्रीगत साधना चुन ली और जिसे स्त्रीगत साधना चुननी चाहिए थी उसने पुरुषगत साधना चुन ली। वे दोनों मुश्किल में पड़ गए। पूरा मुल्क निष्क्रिय हो गया। जिसको मीरा होना चाहिए था वे महावीर हो गए, जिसको महावीर होना चाहिए था वह झांझ-मंजीरा लेकर मीरा हो गया, वह दिक्कत हो गई। दिक्कत हो ही जाने वाली है।

इसलिए भविष्य के अध्यात्म की जो सबसे बड़ी वैज्ञानिक प्रक्रिया मेरे खयाल में आती है, वह यह है कि हम साफ इस सूत्र को करें कि “बायोलाजी’ का जो नियम है वह “स्प्रीचुअलिटी’ का नियम नहीं है। जीवनशास्त्र जिस आधार से चलता है; वह विपरीत के आकर्षण से चलता है, अध्यात्म विपरीत का आकर्षण नहीं है, स्वभाव में निमज्जन है। वह दूसरे तक पहुंचना नहीं है, अपने तक पहुंचना है। लेकिन जिंदगी भर का अनुभव बाधा डालता है।

कृष्ण स्मृति 

ओशो

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