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Monday, April 4, 2016

जब कोई एक बुद्ध पैदा होता है....

.......तो सारी पृथ्वी भी उसके बुद्धत्व से आंदोलित होती है। होना ही चाहिए। एक फूल भी खिलता है, तो उसके साथ चारों तरफ का वातावरण खिल जाता है। एक कमल को खिला हुआ देखें, उसके साथ पूरी झील भी खिल जाती है, उसके साथ झील के किनारे भी खिल जाते हैं। एक कमल को अगर गौर से देखें, तो उस क्षण में सारा जगत उसके साथ खिलता है, क्योंकि फूल सारे जगत का हिस्सा है। हम न देख पाएं, क्योंकि हमारे पास आंखें छोटी हैं, और समझ ना के बराबर है और हम गहरे में नहीं उतर सकते, यह दूसरी बात है। फिर जब बुद्ध जैसा फूल खिलता हो तो हमें चाहे दिखाई पड़े या न पड़े, यह सारा जगत किसी बोझ से हल्का होता है। बुद्ध के होने के बाद आप जो हैं, वह दूसरे आदमी हैं, बुद्ध के होने के पहले आप दूसरे आदमी थे।


लोग मेरे पास आते हैं कभी और पूछते हैं कि क्या फायदा हुआ बुद्ध, महावीर, कृष्ण और क्राइस्ट से; क्या फायदा होगा आप से; सब बातें हैं, सब खो जाती हैं, आदमी जैसा है, वैसा ही बना रहता है; क्यों मेहनत करते हैं? क्यों व्यर्थ परेशान होते हैं? किनके लिए परेशान हो रहे हैं? बुद्ध परेशान हुए, क्राइस्ट परेशान हुए–क्या फायदा है?


उन्हें पता नहीं। उन्हें पता हो भी नहीं सकता कि बुद्ध के पहले के आदमी में, और बुद्ध के बाद आदमी में जमीन और आसमान का फर्क है, लेकिन फर्क बड़ा सूक्ष्म है। बुद्ध के खिलने के साथ आदमी का भविष्य दूसरा हो गया,नियति बदल गई। बुद्ध के बाद अब इतिहास कभी वही नहीं हो सकता, जो बुद्ध के पहले था। मार्ग से एक पत्थर हट गया, रास्ता साफ हो गया। अब आप न चलें आपकी जिम्मेवारी है, लेकिन रास्ते पर रुकावट कम है। एक आदमी चल चुका। और एक आदमी ने चलकर बता दिया है कि ऐसा भी हो सकता है। यह हो सकता है कि बुद्धत्व आ जाए। यह एक बड़ी संभावना है। और यह संभावना भविष्य में है। देखें जमीन पर जब भी कोई इस तरह का विराट व्यक्तित्व पैदा होता है, तो सारी पृथ्वी पर उसकी अनुगूंज सुनाई पड़ती है।


पांच सौ वर्षों में, बुद्ध के समय सारी पृथ्वी पर बुद्धत्व की अनुगूंज सुनाई पड़ी। जब बुद्ध भारत में पैदा हुए, तो महावीर थे। सिर्फ बिहार में, एक छोटे से प्रांत में, जो सदा का दीन है; जो उसके पहले भी दीन था, उसके बाद भी दीन हो गया, कुछ वर्षों के लिए बुद्ध के साथ-साथ बिहार में जैसे सारे कमल खिल गए। सिर्फ छोटे से बिहार में आठ तीर्थंकर थे। अदभुत उनकी प्रतिभा थी और यह जानकर हैरानी होगी कि वे एक-दूसरे के विरोध में थे,तो भी एक-दूसरे के खिलने के साथ ही खिले थे।


ठीक उसी समय यूनान में पैथागोरस था, ठीक बुद्ध के जैसे व्यक्ति की स्थितिवाला आदमी। थोड़े दिन बाद साक्रेटीज था, प्लेटो था, अरस्तू था। चीन में लाओत्सु था, च्वांगत्सु था, कनफयुसियस था, मेन्शीयस था। उस छोटे से समय में सारी जमीन में, सारी पृथ्वी पर, छोटे बड़े कई कमल खिले! फिर वैसा कभी नहीं हुआ।


जब भी एक व्यक्ति भी बुद्धत्व को उपलब्ध होता है, तो उसकी झंकार बहुत वीणाओं पर बजती है। अनेक अपनी यात्राओं पर हजारों मील आगे बढ़ जाते हैं। जो अपनी मंजिल के बिलकुल करीब थे, एक छलांग में बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाते हैं। जो बहुत दूर थे, वे करीब आ जाते हैं। जो बिलकुल सोए हैं, वे भी करवट बदलते हैं। जिनकी नींद महा गहन थी, उनका भी स्वप्न क्षण भर को टूटता है। लेकिन अनंत घटनाएं घटती हैं।

समाधि के सप्तद्वार 

ओशो 


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