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Monday, April 4, 2016

प्रसाद

यह बड़े मजे की बात है कि जब फूल खिलता है, तो आकाश की तरफ उठता है। और जब मुरझाता है, सूखता है, तो जमीन की तरफ गिर जाता है। आदमी जीवित होता है, तो आकाश की तरफ उठा हुआ होता है। मर जाता है, तो जमीन में दफना दिया जाता है, मिट्टी में गिर जाता है। वृक्ष उठते हैं, जीवित होते हैं, तो आकाश की तरफ उठते हैं। फिर जराजीर्ण होते हैं, गिरते और मिट्टी में सो जाते हैं। ऊपर और नीचे। कुछ ऊपर की तरफ खींच रहा है, कुछ नीचे की तरफ खींच रहा है।

 
विषाद जब चित्त में होता है, तो आदमी का हृदय पत्थर की तरह हो जाता है, नीचे की तरफ गिरने लगता है। जब भी आप दुख में रहे हैं, तब आपने अनुभव किया होगा कि हृदय पर हजारों मनों का बोझ हो जाता है। फिर जमीन तो नीचे की तरफ खींचती है, लेकिन परमात्मा फिर ऊपर की तरफ खींचता हुआ मालूम नहीं पड़ता। इसलिए दुख में आदमी मरना चाहता है। मरना चाहता है मतलब, जमीन के ग्रेविटेशन में दफन हो जाना चाहता है। दुख में आत्महत्या कर लेना चाहता है; मतलब, डस्ट अनटु डस्ट, मिट्टी मिट्टी में लौट जाए, इसके लिए आतुर हो जाता है।

ठीक इससे उलटी घटना भी घटती है। जब कोई आनंद से भरता है, तो कांशसनेस अनटु कांशसनेस–मिट्टी में मिट्टी नहीं–परमात्मा में परमात्मा मिलने को आतुर हो जाता है। जब कोई फूल खिलता है आनंद का, तो ऊपर से अनुग्रह की वर्षा होने लगती है। वह खिली हुई फूल की पंखुड़ियों पर अमृत बरसने लगता है प्रभु के प्रसाद का। आनंद में मन खिल जाता है फूल की तरह।

इसलिए तो जिन्होंने भी अनुभव किया है परम आनंद का, वे कहेंगे कि मस्तिष्क में सहस्रदल कमल खिल जाता है। वह प्रतीक है, सिंबालिक है। वह केवल काव्य में प्रकट किया गया अनुभव है। मस्तिष्क के ऊपर खिल जाता है फूल हजारों पंखुड़ियों वाला; उस खिले हुए फूल में बरसा होने लगती है अनुग्रह की।

और जब कोई उतने आनंद से भरता है, तो परमात्मा को धन्यवाद दे पाता है। कहना चाहिए, धन्यवाद देने के लिए परमात्मा को स्वीकार कर पाता है। अनुग्रह फिर किसके प्रति प्रकट करे? जब भीतर आनंद की वर्षा होने लगे और हृदय का कोना-कोना नाच उठे और अंधकार विदा हो जाए और पंखुड़ी-पंखुड़ी खिल जाए, फिर धन्यवाद किसके प्रति प्रकट करे? उस धन्यवाद को प्रकट करने के लिए परमात्मा को खोजना पड़ता है।

आनंद से भरा चित्त आस्तिक हो जाता है; दुख से भरा चित्त नास्तिक हो जाता है। नास्तिकता ग्रेविटेशन है। जमीन की ताकत नीचे की तरफ खींचती है। आस्तिकता ग्रेस, प्रसाद है, अनुग्रह है; ऊपर की तरफ ले जाता है।


गीता दर्शन 

ओशो 


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