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Monday, April 4, 2016

सम्राट का बेटा

मैंने सुना है, एक सम्राट अपने बेटे पर नाराज हो गया, उसे देश निकाला दे दिया। सम्राट का बेटा था, कुछ और तो करना जानता नहीं था, क्योंकि सम्राट के बेटे ने कभी कुछ किया न था, भीख ही मांग सकता था। जब कोई सम्राट सम्राट न रह जाये तो भिखमंगे के सिवा और कोई उपाय नहीं बचता।


भीख मांगने लगा। बीस वर्ष बीत गये। भूल ही गया। अब बीस वर्ष कोई भीख मांगे तो याद रखना कि मैं सम्राट हूं असंभव, कष्टपूर्ण होगा; भीख मांगने में कठिनाई पड़ेगी; यही उचित है कि भूल ही जाओ। वह भूल ही गया था, अन्यथा भीख कैसे मांगे! सम्राट, और भीख मांगे! द्वार द्वार, दरवाजे दरवाजे भिक्षापात्र ले कर खड़ा हो! होटल में, रेस्तरां के सामने भीख मांगे! जूठन मांगे! सम्राट! सम्राट को भुला ही देना पडा विस्मत ही कर देना पडा। वह बात ही गई। वह जैसे अध्याय समाप्त हुआ। वह जैसे कि कहीं कोई सपनाँ देखा होगा, कि कोई कहानी पढ़ी होगी, कि फिल्म देखी होगी अपने से क्या लेना देना!

बीस साल बाद जब सम्राट का हो गया, उसका बाप, तो वह. : एक ही बेटा! वही मालिक था। उसने अपने वजीरों को कहा : उसे खोजो और जहां भी हो उसे ले आओ। कहना, बाप ने क्षमा किया। अब क्षमा और न क्षमा का कोई अर्थ नहीं, मैं मर रहा हूं। अब यह राज्य कौन सम्हालेगा? यह औरों के हाथ में जाये इससे बेहतर है मेरे खून के हाथ में जाये। बुरा  भला जैसा भी है, उसे ले आओ!


जब वजीर पहुंचे तो वह एक होटल के सामने पैसे पैसे मांग रहा था टूटा सा पात्र लिये। नंगा था। पैरों में जूते नही थे। भरी दुपहरी थी। गर्मी के दिन थे। लू बहती थी। पैर जल रहे थे। और वह मांग रहा था कि मुझे जूते खरीदने हैं, इसलिए कुछ पैसे मिल जायें। कुछ पैसे उसके पात्र में पड़े थे। रथ आ कर रुका। वजीर नीचे उतरा। वजीर ने गिर कर उसके चरण छुए होने वाला सम्राट था! जैसे ही वजीर ने उसके चरण छुए, एक क्षण में घटना घट गई बीस साल जिसकी याद न आई थी कि मैं सम्राट हूं! फिर ऐसा थोड़े ही लगा रहा कि वह बैठा, उसने सोचा और विचारा और तपश्चर्या की और ध्यान किया कि याद करूं, एक क्षण में, पल में, पल भी न लगा, एक क्षण में रूपांतरण हो गया. यह आदमी और हो गया! अभी भिखारी था दीन हीन; अब भी था; अब भी पैर में जूते न थे लेकिन हाथ से उसका पात्र उसने फेंक दिया और वजीरों से कहा कि जाओ और मेरे स्नान की व्यवस्था करो, ठीक वस्त्र जुटाओ! वह जा कर रथ पर बैठ गया। उसकी महिमा देखने जैसी थी। अभी भी वही का वही था, लेकिन उसके चेहरे पर अब एक गरिमा थी; आंखों में एक दीप्ति थी; चारों तरफ एक आभामंडल था! सम्राट था! याद आ गई। बाप ने बुलावा भेज दिया।

ठीक ऐसा ही है।


अष्टावक्र जब कहते कि अभी और यहीं तो वे यही कहते हैं. कितने चलो, बीस साल नहीं बीस जन्म सही देश निकाले पर रहे भीख मांगी बहुत भूल गये बिलकुल याद को बिलकुल सुला दिया सुलाना ही पड़ा; न सुलाते तो भीख मांगनी मुश्किल हो जाती; द्वार द्वार दरवाजे दरवाजे भिक्षापात्र ले कर घूमे…। अष्टावक्र यह कह रहे हैं : आ गया बुलावा! जागो! भिखमंगे तुम नहीं हो! सम्राट के बेटे हो।

 अष्टावक्र महागीता 

ओशो 

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