Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Wednesday, September 2, 2015

तीन केंद्र

विचार का, थिंकिग का केंद्र मस्तिष्क है; और भाव का, फीलिंग का केंद्र हृदय है; और संकल्प का, विलिंग का केंद्र नाभि है। विचार, चिंतन, मनन मस्तिष्क से होता है। भावना, अनुभव, प्रेम, घृणा और क्रोध हृदय से होते हैं। संकल्प नाभि से होते हैं। विचार के केंद्र के संबंध में कल थोड़ी सी बातें हमने कीं।

पहले दिन मैंने आपको कहा था कि विचार के तंतु बहुत कसे हुए हैं, उन्हें शिथिल करना है। विचार पर अत्यधिक तनाव और बल है। मस्तिष्क अत्यंत तीव्रता से खिंचा हुआ है। विचार की वीणा के तार इतने खिंचे हुए हैं कि उनसे संगीत पैदा नहीं होता, तार ही टूट जाते हैं, मनुष्य विक्षिप्त हो जाता है और मनुष्य विक्षिप्त हो गया है। यह विचार की वीणा के तार थोड़े शिथिल करने अत्यंत जरूरी हो गए हैं, ताकि वे सम—स्थिति में आ सकें और संगीत उत्पन्न हो सके।


विचार से ठीक उलटी स्थिति हृदय की है। हृदय के तार बहुत ढीले हैं। उन्हें थोड़ा कसना जरूरी है, ताकि वे भी समस्थिति में आ सकें और संगीत पैदा हो सके। विचार के तनाव को कम करना है और हृदय के ढीले तारों को थोड़ा कसाव देना है।

विचार और हृदय के दोनों तार अगर सम अवस्था में आ जाएं, मध्य में आ जाएं, संतुलित हो जाएं, तो वह संगीत पैदा होगा जिस संगीत के मार्ग से नाभि के केंद्र तक की यात्रा की जा सकती है।

विचार कैसे शिथिल हों, वह हमने कल बात की है। भाव, हृदय के तार कैसे कसे जा सकें वह बात हमें आज सुबह करनी है। इसके पहले कि हम ठीक से हृदय के संबंध में, भाव के संबंध में कुछ समझें, मनुष्य जाति एक बहुत लंबे अभिशाप के नीचे जी रही है, उसे समझ लेना जरूरी है। उसी अभिशाप ने हृदय के तारों को बिलकुल ढीला कर दिया है। और वह अभिशाप यह है कि हमने हृदय के सारे गुणों की निंदा की है।


हृदय की जो भी क्षमताएं हैं, उन सबको हमने अभिशाप समझा है, वरदान नहीं समझा। और यह भूल इतनी संघातक है और इस भूल के पीछे इतनी नासमझी और इतना अज्ञान है जिसका कोई हिसाब नहीं है। क्रोध की हमने निंदा की है, अभिमान की हमने निंदा की है, घृणा की हमने निंदा की है, राग की हमने निंदा की है, हर चीज की हमने निंदा की है। और बिना यह समझे हुए कि हम जिन चीजों की प्रशंसा करते हैं वे इन्हीं चीजों के रूपांतरण हैं।


हमने क्षमा की प्रशंसा की है और क्रोध की निंदा की है, और बिना इस बात को समझे हुए कि क्षमा क्रोध की शक्ति का ही परिवर्तित रूप है। हमने घृणा की निंदा की है और प्रेम की प्रशंसा की है, और बिना यह समझे कि घृणा में जो ऊर्जा प्रकट होती है वही रूपांतरित होकर प्रेम में प्रकट होती है। उन दोनों के पीछे प्रकट होने वाली शक्ति भिन्न—भिन्न नहीं है। हमने अभिमान की निंदा की है और विनम्रता की प्रशंसा की है बिना यह समझे हुए कि अभिमान में जो ऊर्जा प्रकट होती है वही विनम्रता बन जाती है। उन दोनों चीजों में बुनियादी विरोध नहीं है, वे एक ही चीज के परिवर्तित बिंदु हैं।


जैसे वीणा के तार बहुत ढीले हैं या बहुत कसे हैं, उन्हें छूता है संगीतज्ञ तो उनसे बेसुरा संगीत पैदा होता है जो कानों को अखरता है और चित्त को घबड़ाता है। वह जो बेसुरापन पैदा हो रहा है, अगर उसके विरोध में आकर कोई तारों को तोड़ डाले और वीणा को पटक दे और कहे कि इस वीणा से बहुत बेसुरा संगीत पैदा होता है, यह तो तोड़ देने जैसी है, तो वीणा तो वह तोड़ सकता है, लेकिन वह भी याद रख ले कि संगीत भी उसी वीणा से पैदा हो सकता था जिससे बेसुरे स्वर पैदा हो रहे थे। बेसुरापन वीणा का कसूर न था, वीणा अव्यवस्थित थी, इस बात की भूल थी। वही वीणा सुव्यस्थित होती, तो जिन तारों से बेसुरापन पैदा होता था, उन्हीं से प्राणों को मुग्ध कर देने वाला संगीत पैदा हो सकता था।


स्वर और बेस्वर एक ही तार से पैदा होने वाली चीजें हैं, यद्यपि बिलकुल विरोधी मालूम होती हैं और दोनों के परिणाम विरोधी हैं। और दोनों में एक आनंद की तरफ ले जाती है, एक दुख की तरफ ले जाती है, लेकिन दोनों के बीच में एक ही तार है और एक ही वीणा है। वीणा अव्यवस्थित हो, अराजक हो, तो बेसुरापन पैदा होता है। मनुष्य के हृदय से क्रोध पैदा होता है; अगर मनुष्य का हृदय सुव्यवस्थित, संयोजित, संतुलित नहीं है। वही हृदय संतुलित हो जाए, तो जो शक्तियां क्रोध में प्रकट होती हैं, वे ही शक्तियां क्षमा में प्रकट होनी शुरू हो जाती हैं। क्षमा क्रोध का ही रूपांतरण है।


अगर कोई बच्चा बिना क्रोध के पैदा हो जाए तो एक बात निश्चित है, उस बच्चे के जीवन में क्षमा कभी भी प्रकट नहीं हो सकती। अगर किसी बच्चे के हृदय में घृणा की कोई संभावना न हो, तो उस बच्चे के हृदय में प्रेम की भी कोई संभावना नहीं रह जाएगी।


लेकिन हम इस भूल के नीचे जीए हैं अब तक कि ये दोनों विरोधी चीजे हैं और इसमें एक का विनाश करेंगे तो दूसरा विकसित होगा। यह बिलकुल ही भूल भरी बात है, इससे ज्यादा खतरनाक कोई शिक्षा नहीं हो सकती, अमनोवैज्ञानिक, अत्यंत अबुद्धिपूर्ण यह बात है। क्रोध के विनाश से क्षमा उत्पन्न नहीं होती, क्रोध के रूपांतरण से, क्रोध के ट्रांसफामेंशन से, क्रोध के परिवर्तन से क्षमा उपलब्ध होती है। क्षमा क्रोध का नष्ट हो जाना नहीं है, बल्कि क्रोध का संतुलित और संगीतपूर्ण हो जाना है।


अंतरयात्रा शिविर

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts