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Thursday, September 3, 2015

मीरा



मीरा में जैसी सहज उदभावना हुई है भक्ति की, कहीं भी नहीं हुई है! भक्त और भी हुए है, लेकिन सब मीरा से पीछे  पड़ गए, पिछड़ गए! मीरा का तारा बहुत  जगमगाता हुआ तारा है! आओ इस तारे की तरफ चलें! अगर थोड़ी सी भी बूंदें  तुम्हारे जीवन में बरस जाएं, मीरा के रस की, तो भी तुम्हारे रेगिस्तान में फूल खिल जाएंगे! अगर तुम्हारे ह्रदय में थोड़े से भी वैसे आंसू घुमड़ आएं, जैसे मीरा को घुमड़े, और तुम्हारे ह्रदय में थोड़े से राग बजने लगे जैसे मीरा को बजे,  थोडा सा सही! एक बूंद भी तुम्हे रंग जाएगी और नया कर जाएगी! तो मीरा को तर्क और बुद्धि से मत सुनना! मीरा का कुछ तर्क और बुद्धि से कुछ लेना-देना नहीं है! मीरा को भाव से सुनना, भक्ति से सुनना, श्रद्धा की आंख से देखना! हटा दो तर्क इत्यादि को, किनारे सरका कर रख दो! थोड़ी देर के लिए मीरा के साथ पागल हो जाओ! यह मस्तो की दुनिया है! यह प्रेमियों की दुनिया है! तो ही तुम समझ सकते पाओगे, अन्यथा चुक जाओगे

   कोई मीरा से पूछे कि प्रभु को पाकर तुझे क्या हुआ? तो वह कहे, उमंग उठी, नाच उठा, गीत उठे--पद घुंघरू बांध मीरा नाची रे। तुम सोचो तो ठीक है, तो नाचना सीख लें तो प्रभु से मिलन हो जाएगा।
 
तो नर्तकियां तो बहुत हैं। नर्तक तो बहुत हैं। उनको कोई प्रभु तो उपलब्ध नहीं हो रहा। नाचने से अगर प्रभु उपलब्ध होता तो नर्तकियों को उपलब्ध हो गया होता, नर्तकों को उपलब्ध हो गया होता। कितने तो लोग "तात्ता थै-थै' कर रहे हैं, कुछ भी तो नहीं हो रहा।
 
मीरा जो कह रही है वह परिभाषा है। मीरा कह रही है, प्रभु को पाने से हृदय खिला, नाच जन्मा, रसधार बही, गंगा चली, घूंघर बजे। यह बैलों के पीछे गाड़ी है। तुमने देखा कि अरे! तो फिर नाचना तो हम भी सीख ले सकते हैं। नाचना सीखने से प्रभु नहीं मिलता, प्रभु मिलने से नाच घटता है।
 
ऐसा ही महावीर की निर्वाण की परिभाषा को समझना। जैन मुनि कितनी तकलीफ झेल रहा है--अकारण। जड़ता की भर सूचना मिलती है। महावीर की प्रतिमा देखी तुमने? और जैन मुनि को साथ खड़ा करके देख लो तो तुमको समझ में आ जाएगा। महावीर की प्रतिमा का रूप ही कुछ और है, रंग ही कुछ और है। कहते हैं, महावीर जैसा सुंदर आदमी पृथ्वी पर बहुत मुश्किल से होता है। और जैन मुनि को देख लो। उसने असुंदर होने को अपनी साधना बना रखी है।
 
जिन सूत्र 
 
 

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