.......वे कहते थे, एक प्रेमी था, वह दूर
देश चला गया था। उसकी प्रियसी राह देखती रही। वर्ष आए, गए। पत्र आते थे
उसके, अब आता हूं। अब आता हूं, अब आता हूं। लेकिन प्रतीक्षा लंबी होती चली
गई और वह नहीं आया। फिर वह प्रियसी घबड़ा गई और एक दिन ही चल कर उस जगह
पहूंच गई जहां उसका प्रेमी था। वह उसके द्वार पर पहूंच गई, द्वार खुला था।
वह भीतर पहूंच गई।
प्रेमी कुछ लिखता था, वह सामने ही बैठ कर देखने लगी,उसका लिखना पूरा हो जाए। प्रेमी उसी को पत्र लिख रहा था, प्रेयसी को पत्र लिख रहा था। और इतने दिन से उसने बार—बार वादा किया और टूट गया तो बहुत-बहुत क्षमाएं मांग रहा था। बहुत-बहुत प्रेम की बातें लिख रहा था, बड़े गीत और कविताएं लिख रहा था। जैसे कह अक्सर प्रेमी लिखते है। वह सब लिखे चला जा रहा था:एक पन्ना, दो पन्ना, तीन पन्ना। प्रेमियों के पत्र पूरे तो होते ही नहीं। वे लंबे से लंबे होते चले जाते है।
वह लिखते ही चला जा रहा है। उसे पता भी नहीं है कि सामने कौन बैठा है। आधी रात हो गई तब वह पत्र कहीं पूरा हुआ। उसने आँख ऊपर उठाई तो वह घबड़ा गया। समझा कि क्या कोई भूतप्रेत, है। वह सामने कौन बैठा हुआ है? वह तो उसकी प्रेयसी है। नहीं-नहीं लेकिन यह कैसे हो सकता है। वह चिल्लाने लगा कि नहीं-नहीं, यह कैसे हो सकता है? तू यहां है, तू कैसे, कहां से आई?
उसकी प्रेयसी ने कहा: मैं घंटों से बैठी हूं और प्रतीक्षा कर रही हूं कि तुम्हारा लिखने काम बंद हो जाए तो शायद तुम्हारी आंख मेरे पास पहुंचे। और वह प्रेमी छाती पीट कर रोने लगा कि पागल हूं मैं। मैं तुझी को पत्र लिख रहा हूं और इस पत्र के लिखने के कारण तुझे नहीं देख पा रहा हूं और तू सामने मौजूद है। आधी रात बीत गई, तू यहां थी ही!
परमात्मा उससे भी ज्यादा निकट मौजूद है। हम न मालूम क्या क्या बातें किए चले जा रहे हैं। न मालूम क्या क्या पत्र लिख रहे हैं, शास्त्र पढ़ रहे हैं, न मालूम कौन कौन से विचार कर रहे हैं। कोई गीता खोल कर बैठा हुआ है, कोई कुरान खोल कर बैठा हुआ है, कोई बाइबिल पढ़ रहा है, कोई नमो अरिहताणम् दोहरा रहा है, कोई नमो शिवाय कर रहा है। न मालूम क्या क्या लोग कर रहे हैं; और जिसके लिए कर रहे हैं वह चारों तरफ हमेशा मौजूद है। लेकिन फुर्सत हो तब तो आंख उठे। काम बंद हो तो वह दिखाई पड़े, जो है।
साधना शिविर
नारगोल
ओशो
प्रेमी कुछ लिखता था, वह सामने ही बैठ कर देखने लगी,उसका लिखना पूरा हो जाए। प्रेमी उसी को पत्र लिख रहा था, प्रेयसी को पत्र लिख रहा था। और इतने दिन से उसने बार—बार वादा किया और टूट गया तो बहुत-बहुत क्षमाएं मांग रहा था। बहुत-बहुत प्रेम की बातें लिख रहा था, बड़े गीत और कविताएं लिख रहा था। जैसे कह अक्सर प्रेमी लिखते है। वह सब लिखे चला जा रहा था:एक पन्ना, दो पन्ना, तीन पन्ना। प्रेमियों के पत्र पूरे तो होते ही नहीं। वे लंबे से लंबे होते चले जाते है।
वह लिखते ही चला जा रहा है। उसे पता भी नहीं है कि सामने कौन बैठा है। आधी रात हो गई तब वह पत्र कहीं पूरा हुआ। उसने आँख ऊपर उठाई तो वह घबड़ा गया। समझा कि क्या कोई भूतप्रेत, है। वह सामने कौन बैठा हुआ है? वह तो उसकी प्रेयसी है। नहीं-नहीं लेकिन यह कैसे हो सकता है। वह चिल्लाने लगा कि नहीं-नहीं, यह कैसे हो सकता है? तू यहां है, तू कैसे, कहां से आई?
उसकी प्रेयसी ने कहा: मैं घंटों से बैठी हूं और प्रतीक्षा कर रही हूं कि तुम्हारा लिखने काम बंद हो जाए तो शायद तुम्हारी आंख मेरे पास पहुंचे। और वह प्रेमी छाती पीट कर रोने लगा कि पागल हूं मैं। मैं तुझी को पत्र लिख रहा हूं और इस पत्र के लिखने के कारण तुझे नहीं देख पा रहा हूं और तू सामने मौजूद है। आधी रात बीत गई, तू यहां थी ही!
परमात्मा उससे भी ज्यादा निकट मौजूद है। हम न मालूम क्या क्या बातें किए चले जा रहे हैं। न मालूम क्या क्या पत्र लिख रहे हैं, शास्त्र पढ़ रहे हैं, न मालूम कौन कौन से विचार कर रहे हैं। कोई गीता खोल कर बैठा हुआ है, कोई कुरान खोल कर बैठा हुआ है, कोई बाइबिल पढ़ रहा है, कोई नमो अरिहताणम् दोहरा रहा है, कोई नमो शिवाय कर रहा है। न मालूम क्या क्या लोग कर रहे हैं; और जिसके लिए कर रहे हैं वह चारों तरफ हमेशा मौजूद है। लेकिन फुर्सत हो तब तो आंख उठे। काम बंद हो तो वह दिखाई पड़े, जो है।
साधना शिविर
नारगोल
ओशो
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