अगर आपने देखा हो नेताओं की मंच तो आपने खयाल किया होगा, कि पंडित नेहरू
की मंच कितनी ऊंची बनती थी। आपको पता है कि उतनी ऊंची मंच बनाने की क्या
जरूरत है? शायद आपको पता नहीं होगा। आपकी आंख पूरी की पूरी खुली रहे और ऊपर
देखती रहे और तनी रहे। हिटलर भी उतनी ही ऊंची मंच बनवाता था। दुनिया के
सारे नेता उतनी ही ऊंची मंच बनवाते हैं। उसका मनोवैज्ञानिक कारण है।
उसका कारण है कि आंख जितनी खिंची होगी मन उतने तनाव से भर जाएगा। और आंख जितनी ऊपर की तरफ देखती होगी, थोड़ी देर में आपका सोच विचार क्षीण हो जाएगा। आप हिप्नोटिक हालत में आ जाएंगे, आप सम्मोहित अवस्था में आ जाएंगे। अगर पांच मिनट तक आंख को पूरी तरह खोला जाए और ऊपर की तरफ देखा जाए, तो आंख के भीतर के स्नायु तनाव से भर जाते हैं, सोच विचार बंद हो जाता है, समझ खत्म हो जाती है और आदमी एक तरह की हिम्पोटिक स्लीप, एक तरह की सम्मोहक निद्रा में प्रविष्ट हो जाता है। उस हालत में उससे जो भी कहा जाएगा, वह मान लेगा।
इसलिए दुनिया के राजनीतिज्ञ ऊंची मंच बनाते हैं, ताकि वे जो भी कहें वह आप मान लें। हिटलर तो मंच पर ही प्रकाश रखता था। बहुत हजारों कैंडिल के बल्व चारों तरफ से, और सारे थिएटर में अंधकार करवा देता था, ताकि किसी आदमी की आंख किसी दूसरे को न देखे सिर्फ हिटलर दिखाई पड़े और उसके चेहरे पर भारी प्रकाश, ताकि वही दिखाई पड़ता रहे घंटे भर, और ऊंचा मंच, आंखें तनी रहें और उस हालत में हिटलर जो भी कहेगा लोग मान लेंगे। वह सजेस्टिव हालत हो जाती है आंखों की।
आंख जितनी शिथिल होगी, शांत होगी, ढली होगी, आधी खुली होगी उतनी ही आप जाग्रत अवस्था में होंगे। और आंख जितनी खुली होगी, तेजी से खुली होगी उतने ही आपको मूर्च्छा में ले जाना आसान है। आपको बेहोश किया जा सकता है। अगर आपने हिप्नोटिक या मेस्मरिज्म करने वाले लोगों को देखा होगा तो आपको पता होगा कि वे कहेंगे कि पूरी आंख खोल कर हमारी आंखों में झांको, पांच मिनट बाद आप बेहोशी की हालत में हो जाएंगे, क्योंकि पूरी आंख खोलना मन पर इतना तनाव, इतना टेंशन डालना है कि उस टेंशन की हालत में मन सजग नहीं रहता। अति तनाव के कारण बेहोश हो जाता है, मूर्च्छित हो जाता है, सुप्त निद्रा में चला जाता है। इसीलिए त्राटक या दीया जला कर लोग ध्यान करते हैं, वह ध्यान नहीं है। वे खुद को सुलाने की तरकीबें हैं, वे सब नींद में जाने की दवाएं हैं।
नहीं, ध्यान तो हमेशा आधी खुली आंख से होगा, चूंकि आधी खुली आंख आंख की सर्वाधिक शांत, जागरूक, अवेयरनेस की अवस्था है। तो आप प्रयोग करेंगे तो आपको दिखाई पड़ेगा कि जैसे ही आंख आधी खुली हुई नासाग्र होगी, वैसे ही आप शांति का, भीतर एक झरने का जैसे कुछ चीज मस्तिष्क पर शांत हो गई, कोई तनाव उतर गया, कोई बादल हट गया, कोई बोझ हट गया और साथ ही एक नये प्रकार का होश, एक जागृति, एक अवेयरनेस, एक बोध, एक अलर्टनेस पैदा होगी और लगेगा कि मैं ज्यादा होश से भरा हुआ हूं।
इस प्रयोग को, आंख के आधे खुले होने के प्रयोग को ध्यान में तो हम करेंगे ही, अभी जब रात का ध्यान करेंगे तब भी करेंगे, सुबह के ध्यान में भी करेंगे, लेकिन आपको शेष समय में भी करना है। और सर्वाधिक उपयोगी होगा इन तीन दिनों में, समुद्र के तट पर चले जाएं अकेले में, थोड़े तेजी से चलें, गहरी श्वास लें और आंख नासाग्र रखें तो आपको घंटे भर में ही एक अपूर्व जागरण की भीतर प्रतीति होगी।
अकेले चले जाएं तट पर, जोर से चलें, गहरी श्वास लें और आंख को नासाग्र रखें। एक घंटे में ही आप पाएंगे कि ऐसी शांति आपने कभी नहीं पाई, ऐसा जागरण आपको कभी अनुभव नहीं हुआ। आपके भीतर एक नई चेतना ही द्वार तोड़ रही है, यह आपको प्रतीत होगा।
साधना शिविर
नारगोल
ओशो
उसका कारण है कि आंख जितनी खिंची होगी मन उतने तनाव से भर जाएगा। और आंख जितनी ऊपर की तरफ देखती होगी, थोड़ी देर में आपका सोच विचार क्षीण हो जाएगा। आप हिप्नोटिक हालत में आ जाएंगे, आप सम्मोहित अवस्था में आ जाएंगे। अगर पांच मिनट तक आंख को पूरी तरह खोला जाए और ऊपर की तरफ देखा जाए, तो आंख के भीतर के स्नायु तनाव से भर जाते हैं, सोच विचार बंद हो जाता है, समझ खत्म हो जाती है और आदमी एक तरह की हिम्पोटिक स्लीप, एक तरह की सम्मोहक निद्रा में प्रविष्ट हो जाता है। उस हालत में उससे जो भी कहा जाएगा, वह मान लेगा।
इसलिए दुनिया के राजनीतिज्ञ ऊंची मंच बनाते हैं, ताकि वे जो भी कहें वह आप मान लें। हिटलर तो मंच पर ही प्रकाश रखता था। बहुत हजारों कैंडिल के बल्व चारों तरफ से, और सारे थिएटर में अंधकार करवा देता था, ताकि किसी आदमी की आंख किसी दूसरे को न देखे सिर्फ हिटलर दिखाई पड़े और उसके चेहरे पर भारी प्रकाश, ताकि वही दिखाई पड़ता रहे घंटे भर, और ऊंचा मंच, आंखें तनी रहें और उस हालत में हिटलर जो भी कहेगा लोग मान लेंगे। वह सजेस्टिव हालत हो जाती है आंखों की।
आंख जितनी शिथिल होगी, शांत होगी, ढली होगी, आधी खुली होगी उतनी ही आप जाग्रत अवस्था में होंगे। और आंख जितनी खुली होगी, तेजी से खुली होगी उतने ही आपको मूर्च्छा में ले जाना आसान है। आपको बेहोश किया जा सकता है। अगर आपने हिप्नोटिक या मेस्मरिज्म करने वाले लोगों को देखा होगा तो आपको पता होगा कि वे कहेंगे कि पूरी आंख खोल कर हमारी आंखों में झांको, पांच मिनट बाद आप बेहोशी की हालत में हो जाएंगे, क्योंकि पूरी आंख खोलना मन पर इतना तनाव, इतना टेंशन डालना है कि उस टेंशन की हालत में मन सजग नहीं रहता। अति तनाव के कारण बेहोश हो जाता है, मूर्च्छित हो जाता है, सुप्त निद्रा में चला जाता है। इसीलिए त्राटक या दीया जला कर लोग ध्यान करते हैं, वह ध्यान नहीं है। वे खुद को सुलाने की तरकीबें हैं, वे सब नींद में जाने की दवाएं हैं।
नहीं, ध्यान तो हमेशा आधी खुली आंख से होगा, चूंकि आधी खुली आंख आंख की सर्वाधिक शांत, जागरूक, अवेयरनेस की अवस्था है। तो आप प्रयोग करेंगे तो आपको दिखाई पड़ेगा कि जैसे ही आंख आधी खुली हुई नासाग्र होगी, वैसे ही आप शांति का, भीतर एक झरने का जैसे कुछ चीज मस्तिष्क पर शांत हो गई, कोई तनाव उतर गया, कोई बादल हट गया, कोई बोझ हट गया और साथ ही एक नये प्रकार का होश, एक जागृति, एक अवेयरनेस, एक बोध, एक अलर्टनेस पैदा होगी और लगेगा कि मैं ज्यादा होश से भरा हुआ हूं।
इस प्रयोग को, आंख के आधे खुले होने के प्रयोग को ध्यान में तो हम करेंगे ही, अभी जब रात का ध्यान करेंगे तब भी करेंगे, सुबह के ध्यान में भी करेंगे, लेकिन आपको शेष समय में भी करना है। और सर्वाधिक उपयोगी होगा इन तीन दिनों में, समुद्र के तट पर चले जाएं अकेले में, थोड़े तेजी से चलें, गहरी श्वास लें और आंख नासाग्र रखें तो आपको घंटे भर में ही एक अपूर्व जागरण की भीतर प्रतीति होगी।
अकेले चले जाएं तट पर, जोर से चलें, गहरी श्वास लें और आंख को नासाग्र रखें। एक घंटे में ही आप पाएंगे कि ऐसी शांति आपने कभी नहीं पाई, ऐसा जागरण आपको कभी अनुभव नहीं हुआ। आपके भीतर एक नई चेतना ही द्वार तोड़ रही है, यह आपको प्रतीत होगा।
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