बहुत छोटे छोटे संकल्पों का प्रयोग करना चाहिए और छोटे छोटे संकल्पों से
ऊर्जा इकट्ठी करनी चाहिए। और हमें जिंदगी में बहुत मौके हैं। आप कार में
बैठे जा रहे हैं। आप इतना ही संकल्प कर ले सकते हैं कि आज मैं रास्ते के
किनारे लगे बोर्ड नहीं पढूंगा। इसमें किसी का कोई हर्जा नहीं हुआ जा रहा
है। इससे किसी का कोई नुकसान फायदा कुछ भी नहीं हो रहा है। लेकिन आपके
संकल्प के लिए मौका मिल जाएगा और किसी को कहने की भी कोई जरूरत नहीं। यह
आपकी भीतरी यात्रा है कि आप कहते हैं कि मैं यह नहीं पढूंगा आज, जो किनारे
पर बोर्ड लगे हैं। और आप पाएंगे कि आधा घंटा कार में बैठना व्यर्थ नहीं
गया। जितने आप कार में बैठे थे, उससे कुछ ज्यादा होकर कार के बाहर उतरे
हैं। आपने कुछ उपलब्ध किया, जब कि आप ऐसे बैठकर कुछ भी खोते। यह सवाल बड़ा
नहीं है कि आप कहां प्रयोग करते हैं। मैं उदाहरण के लिए कह रहा हूं। कुछ भी
प्रयोग कर सकते हैं। जिस प्रयोग से भी आपके संकल्प को ठहरने की सामर्थ्य
बढ़ती हो, उसे आप कर सकते हैं। ऐसे छोटे छोटे प्रयोग करते रहें।
अब एक आदमी को हम कहते हैं कि ध्यान में चालीस मिनट’ आंख ही बंद रखो। तीन दफे वह आंख खोलकर देख लेता है बीच में। अब यह आदमी संकल्पहीन है, आत्महीन है। आंख बंद करने का बड़ा फायदा और नुकसान नहीं है। लेकिन चालीस मिनट तय किया तो यह आदमी चालीस मिनट आंख भी नहीं बंद रख सकता, तो और इससे बहुत आशा रखना कठिन है। इस आदमी से हम कह रहे हैं कि दस मिनट गहरी श्वास लो। वह दो मिनट के बाद ही धीमी श्वास लेने लगता है। फिर उससे कहो गहरी श्वास लो, फिर एकाध दो गहरी श्वास लेता है, फिर धीमी लेने लगता है। वह आत्मवान नहीं है। दस मिनट गहरी श्वास लेना कोई बड़ी कठिन बात नहीं है। और सवाल यह नहीं है कि दस मिनट गहरी श्वास लेने से क्या मिलेगा कि नहीं मिलेगा। एक बात तय है कि दस मिनट गहरी श्वास के संकल्प करने से यह आदमी आत्मवान हो जाएगा। इसके भीतर कुछ सघन हो जाएगा। यह किसी चीज को जीतेगा, किसी रेसिस्टेंस को तोड़ेगा। और वह जो वैगरेंट माइंड है, वह जो आवारा मन है, वह आवारा मन कमजोर होगा। क्योंकि उस मन को पता चलेगा कि इस आदमी के साथ नहीं चल सकता। इस आदमी के साथ जीना है, तो इस आदमी की माननी पड़ेगी।
मैं मृत्यु सिखाता हूँ
ओशो
अब एक आदमी को हम कहते हैं कि ध्यान में चालीस मिनट’ आंख ही बंद रखो। तीन दफे वह आंख खोलकर देख लेता है बीच में। अब यह आदमी संकल्पहीन है, आत्महीन है। आंख बंद करने का बड़ा फायदा और नुकसान नहीं है। लेकिन चालीस मिनट तय किया तो यह आदमी चालीस मिनट आंख भी नहीं बंद रख सकता, तो और इससे बहुत आशा रखना कठिन है। इस आदमी से हम कह रहे हैं कि दस मिनट गहरी श्वास लो। वह दो मिनट के बाद ही धीमी श्वास लेने लगता है। फिर उससे कहो गहरी श्वास लो, फिर एकाध दो गहरी श्वास लेता है, फिर धीमी लेने लगता है। वह आत्मवान नहीं है। दस मिनट गहरी श्वास लेना कोई बड़ी कठिन बात नहीं है। और सवाल यह नहीं है कि दस मिनट गहरी श्वास लेने से क्या मिलेगा कि नहीं मिलेगा। एक बात तय है कि दस मिनट गहरी श्वास के संकल्प करने से यह आदमी आत्मवान हो जाएगा। इसके भीतर कुछ सघन हो जाएगा। यह किसी चीज को जीतेगा, किसी रेसिस्टेंस को तोड़ेगा। और वह जो वैगरेंट माइंड है, वह जो आवारा मन है, वह आवारा मन कमजोर होगा। क्योंकि उस मन को पता चलेगा कि इस आदमी के साथ नहीं चल सकता। इस आदमी के साथ जीना है, तो इस आदमी की माननी पड़ेगी।
मैं मृत्यु सिखाता हूँ
ओशो
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