मैं एक जगह रहता था। और मेरे पड़ोस में एक बंगाली प्रोफेसर रहते थे। पहले
दिन ही जब मैं वहां रुका, तो रात पति और पत्नी में बहुत जोर से झगड़ा हो
गया। तो दीवाल से आरपार मुझे सुनाई पड़ता था। तो मैं बहुत हैरान हुआ। मैंने
कहा कि मुझे जाना चाहिए, क्योंकि कोई है नहीं। क्योंकि पति बिलकुल मरने की
धमकी दे रहा था कि मर जाऊंगा। अब अपरिचित लोग थे 1 मैंने उचित भी नहीं माना
कि मैं एकदम जाऊं। पहले ही दिन रुका हूं इस कमरे में और पड़ोस में यह हो
रहा है। फिर यह भी लगा कि परिचय अपरिचय का मामला नहीं है यह, यह आदमी मर
जाए तो मैं भी जिम्मेवार हूं। लेकिन फिर भी मैंने संयम रखा कि भई जब यह
जाने ही लगें मरने के लिए, तब बाहर जाकर रोक लूंगा। थोड़ी देर बाद बातचीत
बंद हो गई, तो मैंने समझा निपटारा हो गया। लेकिन फिर मैंने सोचा कि बाहर
जाकर देखूं कि बात क्या है। जाकर देखा, दरवाजा खुला था और पत्नी दरवाजे के
अंदर बैठी थी, वह सज्जन तो जा चुके थे।
तो मैंने उससे पूछा, कहा गए आपके पति जिनसे बात हो रही थी? उसने कहा, आप बेफिक्र रहिए, वे ऐसा कई दफे जा चुके हैं। अभी थोड़ी देर में लौट आएंगे। मैंने कहा, वे मरने गए हुए हैं! उसने कहा, वे बिलकुल लौट आएंगे, आप बेफिक्र रहिए। पंद्रह बीस मिनट बाद सचमुच वे वापस लौट आए। मैं बाहर रुका हुआ था। मैंने उनसे पूछा कि आप वापस लौट आए! उन्होंने कहा, पानी गिरने के आसार हो रहे हैं। उनको क्या मालूम कि मुझे पता है कि वे मरने गए थे। उन्होंने कहा, पानी गिरने के आसार हो रहे हैं। देख नहीं रहे हैं आप, बादल घिर रहे हैं। इसलिए लौट आया। छाता नहीं ले गया था साथ में। घर में छाता न हो, तो भी मरनेवाला आदमी बाहर नहीं जाता।
हम सभी सोच लेते हैं बहुत बार मरने की। लेकिन जब हम मरने की सोचते हैं, तब वह मरने की बात नहीं होती, वह सिर्फ जीवन में थोड़ी सी अड़चन होती है। संकल्प की कमी के कारण हम मरने की सोच लेते हैं। जीवन में अड़चन है, कहीं अटकाव आ गया है। जरा सी जीवन में अड़चन है और चले मरने। जीवन की अड़चन से जो मरने जा रहा है, वह संकल्पवान नहीं है। लेकिन मृत्यु को सीधा पॉजिटिव अनुभव करने कोई जा रहा है, विधायक रूप से मृत्यु क्या है, इसे जानने जा रहा है जीवन से भाग नहीं रहा है, जीवन से कोई विरोध नहीं है, जीवन का कोई निषेध नहीं है तब तो यह आदमी मृत्यु में भी जीवन खोजने जा रहा है। यह बात और है।
और भी इसमें महत्वपूर्ण घटना है और वह यह है कि जन्म के लिए तो हम साधारणतया निर्णायक नहीं होते। जन्म भी अंततः तो हम निर्णय करते हैं। लेकिन वह भी अचेतन निर्णय होता है। हमें पता नहीं होता है कि हमने क्यों जन्म लिया, कहां जन्म लिया, किसलिए जन्म लिया।
एक अर्थ में मृत्यु ऐसा मौका है, जिसके हम निर्णायक हो सकते हैं। इसलिए मृत्यु जिंदगी में बहुत अनूठी घटना है, जिसको कहना चाहिए, डिसीसिव। क्योंकि जन्म का तो हम पक्का निर्णय नहीं कर सकते, कि हमने से कहां जन्म लिया, क्यों जन्म लिया, कैसे जन्म लिया। लेकिन मृत्यु का तो हम निर्णय कर ही सकते हैं कि हम कैसे मरें, कहां मरें, क्यों मरें। मृत्यु का ढंग तो हम निश्चित कर ही सकते हैं।
मैं मृत्यु सिखाता हूँ
ओशो
तो मैंने उससे पूछा, कहा गए आपके पति जिनसे बात हो रही थी? उसने कहा, आप बेफिक्र रहिए, वे ऐसा कई दफे जा चुके हैं। अभी थोड़ी देर में लौट आएंगे। मैंने कहा, वे मरने गए हुए हैं! उसने कहा, वे बिलकुल लौट आएंगे, आप बेफिक्र रहिए। पंद्रह बीस मिनट बाद सचमुच वे वापस लौट आए। मैं बाहर रुका हुआ था। मैंने उनसे पूछा कि आप वापस लौट आए! उन्होंने कहा, पानी गिरने के आसार हो रहे हैं। उनको क्या मालूम कि मुझे पता है कि वे मरने गए थे। उन्होंने कहा, पानी गिरने के आसार हो रहे हैं। देख नहीं रहे हैं आप, बादल घिर रहे हैं। इसलिए लौट आया। छाता नहीं ले गया था साथ में। घर में छाता न हो, तो भी मरनेवाला आदमी बाहर नहीं जाता।
हम सभी सोच लेते हैं बहुत बार मरने की। लेकिन जब हम मरने की सोचते हैं, तब वह मरने की बात नहीं होती, वह सिर्फ जीवन में थोड़ी सी अड़चन होती है। संकल्प की कमी के कारण हम मरने की सोच लेते हैं। जीवन में अड़चन है, कहीं अटकाव आ गया है। जरा सी जीवन में अड़चन है और चले मरने। जीवन की अड़चन से जो मरने जा रहा है, वह संकल्पवान नहीं है। लेकिन मृत्यु को सीधा पॉजिटिव अनुभव करने कोई जा रहा है, विधायक रूप से मृत्यु क्या है, इसे जानने जा रहा है जीवन से भाग नहीं रहा है, जीवन से कोई विरोध नहीं है, जीवन का कोई निषेध नहीं है तब तो यह आदमी मृत्यु में भी जीवन खोजने जा रहा है। यह बात और है।
और भी इसमें महत्वपूर्ण घटना है और वह यह है कि जन्म के लिए तो हम साधारणतया निर्णायक नहीं होते। जन्म भी अंततः तो हम निर्णय करते हैं। लेकिन वह भी अचेतन निर्णय होता है। हमें पता नहीं होता है कि हमने क्यों जन्म लिया, कहां जन्म लिया, किसलिए जन्म लिया।
एक अर्थ में मृत्यु ऐसा मौका है, जिसके हम निर्णायक हो सकते हैं। इसलिए मृत्यु जिंदगी में बहुत अनूठी घटना है, जिसको कहना चाहिए, डिसीसिव। क्योंकि जन्म का तो हम पक्का निर्णय नहीं कर सकते, कि हमने से कहां जन्म लिया, क्यों जन्म लिया, कैसे जन्म लिया। लेकिन मृत्यु का तो हम निर्णय कर ही सकते हैं कि हम कैसे मरें, कहां मरें, क्यों मरें। मृत्यु का ढंग तो हम निश्चित कर ही सकते हैं।
मैं मृत्यु सिखाता हूँ
ओशो
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