कोई जन्म के साथ कोई नाम लेकर पैदा नहीं होता। हर आदमी अनाम पैदा होता
है, लेकिन सोशल यूटलिटी है नाम की। एक सामाजिक उपादेयता है, उपयोगिता है।
बिना नाम के चिट लगानी और लेबल लगानी मुश्किल है, इसलिए नाम रख लेते हैं।
तो दूसरों को पुकारने के लिए नाम रख लेते हैं। वह एक सामाजिक उपयोगिता है
और खुद को अगर बार—बार नाम लेकर पुकारें तो बड़ा भ्रम पैदा होगा कि हम खुद
को पुकार रहे हैं कि किसी और को, इसलिए खुद को पुकारने के लिए ‘मैं’, ‘मैं’
खुद को पुकारने के लिए एक नाम, एक संज्ञा है। और नाम दूसरों को पुकारने के
लिए एक सता है। दोनों ही सताए कल्पित, सामाजिक उपयोगिताएं हैं, सोशल
यूटलिटी है। और इन्हीं दो संज्ञाओं के आस पास हम सारे जीवन के भवन को खड़ा
कर लेते हैं। जो केवल दो कोरे शब्द हैं और कुछ भी नहीं है। जिनके पीछे कोई
सत्य नहीं, जिनके पीछे कोई वस्तु नहीं, सिर्फ
नाम, सिर्फ सताए हैं।
एक दफा ऐसी भूल हो गई। एक छोटी सी लड़की थी, एलिस। और एलिस भटकती भटकती परियों के देश में पहुंच गई। जब वह परियों की रानी के पास पहुंची, तो रानी ने उस एलिस से पूछा, एक छोटा सा प्रश्न पूछा डिड यू मीट समबडी, ऑन दि वे टुवर्ड्स मी? कोई तुम्हें मिला रास्ते में मेरी तरफ आता हुआ? एलिस ने कहा नोबडी। एलिस ने कहा कोई भी नहीं।
लेकिन रानी समझी कि ‘नोबडी’ नाम का कोई आदमी इसको मिला। और भ्रम मजबूत हो गया, क्योंकि फिर रानी का डाकिया, चिट्ठी पत्री लाने वाला मेसेंजर, वह आया और रानी ने उससे भी पूछा कि डिड यू मीट समबडी, टुवर्ड्स मी। उसने भी कहा नोबडी। उसने भी कहा. कोई नहीं मिला। कोई नहीं।
रानी ने कहा कि बड़ी अजीब बात है। क्योंकि रानी समझी कि ‘ नोबडी ‘ नाम का कोई आदमी एलिस को भी मिला, इसको भी मिला। तो उसने अपने मेसेंजर को कहा कि इट सीम्स नोबडी वाक्स स्लोअर देन यू। उसने कहा कि इसका मतलब है कि वह जो ‘नोबडी’ नाम का आदमी है, वह जो ‘कोई नहीं’ नाम का आदमी है, वह बहुत धीमा चलता है।
लेकिन उस वाक्य के दो अर्थ हो गए। उसका एक अर्थ हुआ कि इससे पता चलता है कि तुमसे धीमा कोई भी नहीं चलता। वह मेसेंजर डरा, क्योंकि मेसेंजर की यही खूबी होनी चाहिए कि वह तेज चलता है। तो उसने कहा कि नहीं नहीं, नोबडी वाक्स फास्टर देन मी। मुझसे तेज कोई भी नहीं चलता है।
लेकिन रानी ने कहा बड़ी मुश्किल हो गई, तुम कहते हो कि ‘नोबडी’ तुमसे तेज चलता है। तो रानी ने कहा कि इफ नोबडी वाक्स फास्टर दैन यू दैन ही मस्ट हैव रीच्छ बिफोर यू। तो उसको अब तक आ जाना चाहिए था, अगर वह तुमसे तेज चलता है। तो वह बेचारा मेसेंजर… अब उसको खयाल आया कि कुछ गलती हो रही है। उसने कहा नोबडी इज नोबडी, कोई नहीं, कोई नहीं है।
लेकिन रानी बोली यह भी कोई समझाने की बात है। मैं जानती हूं कि नोबडी इज नोबडी। लेकिन ही मस्ट हैव रीच्छ। उसको अब तक आ जाना चाहिए था। वह है कहां?
आदमी के साथ ऐसी ही भाषा की भूल हो जाती है। सब नाम ‘नोबडी’ हैं। किसी नाम का इससे ज्यादा मतलब नहीं है। सब ‘मैं’ का खयाल नोबडी है, इससे ज्यादा कोई मतलब नहीं है। लेकिन भाषा की भूल से ऐसा खयाल पैदा होता है कि ‘मैं कुछ हूं। मेरा नाम कुछ है।’
आदमी मर जाता है, पत्थरों पर लिख जाता है नाम कि शायद पत्थर बच जाएंगे पीछे, लेकिन पता नहीं हमें कि जितनी रेत बन गई है समुद्रों के किनारे, वह सभी कभी पत्थर थे। सब पत्थर रेत साबित होते हैं। रेत पर लिख दो नाम, या पत्थर पर लिख दो नाम, एक ही बात है। दुनिया की इस लंबी कथा में रेत और पत्थर में कोई फर्क नहीं। समुद्र के किनारे बच्चे लिख आते हैं रेत पर अपना नाम। सोचते होंगे कि कल लोग निकलेंगे और देखेंगे। लेकिन समुद्र की लहरें आती हैं, रेत को पोंछ जाती हैं। के हंसते हैं, अरे पागल हो! रेत पर लिखे नाम का कोई मतलब। लेकिन के पत्थरों पर लिखते हैं। और उनको पता नहीं कि सब रेत पत्थर से बनती है। बूढ़े और बच्चों में कोई फर्क नहीं। बेवकूफी में हम सब बराबर एक ही उम्र के हैं।
अंतरयात्रा शिविर
ओशो
एक दफा ऐसी भूल हो गई। एक छोटी सी लड़की थी, एलिस। और एलिस भटकती भटकती परियों के देश में पहुंच गई। जब वह परियों की रानी के पास पहुंची, तो रानी ने उस एलिस से पूछा, एक छोटा सा प्रश्न पूछा डिड यू मीट समबडी, ऑन दि वे टुवर्ड्स मी? कोई तुम्हें मिला रास्ते में मेरी तरफ आता हुआ? एलिस ने कहा नोबडी। एलिस ने कहा कोई भी नहीं।
लेकिन रानी समझी कि ‘नोबडी’ नाम का कोई आदमी इसको मिला। और भ्रम मजबूत हो गया, क्योंकि फिर रानी का डाकिया, चिट्ठी पत्री लाने वाला मेसेंजर, वह आया और रानी ने उससे भी पूछा कि डिड यू मीट समबडी, टुवर्ड्स मी। उसने भी कहा नोबडी। उसने भी कहा. कोई नहीं मिला। कोई नहीं।
रानी ने कहा कि बड़ी अजीब बात है। क्योंकि रानी समझी कि ‘ नोबडी ‘ नाम का कोई आदमी एलिस को भी मिला, इसको भी मिला। तो उसने अपने मेसेंजर को कहा कि इट सीम्स नोबडी वाक्स स्लोअर देन यू। उसने कहा कि इसका मतलब है कि वह जो ‘नोबडी’ नाम का आदमी है, वह जो ‘कोई नहीं’ नाम का आदमी है, वह बहुत धीमा चलता है।
लेकिन उस वाक्य के दो अर्थ हो गए। उसका एक अर्थ हुआ कि इससे पता चलता है कि तुमसे धीमा कोई भी नहीं चलता। वह मेसेंजर डरा, क्योंकि मेसेंजर की यही खूबी होनी चाहिए कि वह तेज चलता है। तो उसने कहा कि नहीं नहीं, नोबडी वाक्स फास्टर देन मी। मुझसे तेज कोई भी नहीं चलता है।
लेकिन रानी ने कहा बड़ी मुश्किल हो गई, तुम कहते हो कि ‘नोबडी’ तुमसे तेज चलता है। तो रानी ने कहा कि इफ नोबडी वाक्स फास्टर दैन यू दैन ही मस्ट हैव रीच्छ बिफोर यू। तो उसको अब तक आ जाना चाहिए था, अगर वह तुमसे तेज चलता है। तो वह बेचारा मेसेंजर… अब उसको खयाल आया कि कुछ गलती हो रही है। उसने कहा नोबडी इज नोबडी, कोई नहीं, कोई नहीं है।
लेकिन रानी बोली यह भी कोई समझाने की बात है। मैं जानती हूं कि नोबडी इज नोबडी। लेकिन ही मस्ट हैव रीच्छ। उसको अब तक आ जाना चाहिए था। वह है कहां?
आदमी के साथ ऐसी ही भाषा की भूल हो जाती है। सब नाम ‘नोबडी’ हैं। किसी नाम का इससे ज्यादा मतलब नहीं है। सब ‘मैं’ का खयाल नोबडी है, इससे ज्यादा कोई मतलब नहीं है। लेकिन भाषा की भूल से ऐसा खयाल पैदा होता है कि ‘मैं कुछ हूं। मेरा नाम कुछ है।’
आदमी मर जाता है, पत्थरों पर लिख जाता है नाम कि शायद पत्थर बच जाएंगे पीछे, लेकिन पता नहीं हमें कि जितनी रेत बन गई है समुद्रों के किनारे, वह सभी कभी पत्थर थे। सब पत्थर रेत साबित होते हैं। रेत पर लिख दो नाम, या पत्थर पर लिख दो नाम, एक ही बात है। दुनिया की इस लंबी कथा में रेत और पत्थर में कोई फर्क नहीं। समुद्र के किनारे बच्चे लिख आते हैं रेत पर अपना नाम। सोचते होंगे कि कल लोग निकलेंगे और देखेंगे। लेकिन समुद्र की लहरें आती हैं, रेत को पोंछ जाती हैं। के हंसते हैं, अरे पागल हो! रेत पर लिखे नाम का कोई मतलब। लेकिन के पत्थरों पर लिखते हैं। और उनको पता नहीं कि सब रेत पत्थर से बनती है। बूढ़े और बच्चों में कोई फर्क नहीं। बेवकूफी में हम सब बराबर एक ही उम्र के हैं।
अंतरयात्रा शिविर
ओशो
No comments:
Post a Comment