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Sunday, September 6, 2015

दूसरा प्रश्न : मैं दुनिया के दुख देखकर बहुत रोता हं। क्या ये दुख रोके नहीं जा सकते?


प्रश्न से तुम्हारे ऐसा लगता है कि कम से कम तुम दुखी नहीं हो। दुनिया के दुख देखकर रोने का हक उसको है जो दुखी न हो। नहीं तो तुम्हारे रोने से और दुख बढ़ेगा, घटेगा थोड़े ही। और तुम्हारे रोने से किसी का दुख कटनेवाला है? दुनिया सदा से दुखी है। इस सत्य को, चाहे यह सत्य कितना ही कडुवा क्यों न हो, स्वीकार करना दया होगा। दुनिया सदा दुखी रही है। दुनिया के दुख कभी समाप्त नहीं होंगे। व्यक्तियों के दुखसमाप्त हुए हैं। व्यक्तियों के ही दुख समाप्त हो सकते हैं। हां, तुम चाहो तो तुम्हारा दुख समाप्त हो सकता है। तुम दूसरे का दुख कैसे समाप्त करोगे?

और मैं यह नहीं कह रहा हूं कि लोगों को रोटी नहीं दी जा सकती, मकान नहीं दिये जा सकते। दिये जा सकते हैं, दिये जा रहे हैं दिये गये हैं। लेकिन दुख फिर भी मिटते नहीं। सच तो यह है, दुख और बढ़ गये हैं। जहां लोगों को मकान मिल गये हैं रोटी रोजी मिल गई है, काम मिल गया है, धन मिल गया है वहां दुख और बढ़ गये हैं, घटे नहीं है।

आज अमरीका जितना दुखी है उतना इस पृथ्वी पर कोई देश दुखी नहीं है। हां, दुखी ने नया रूप ले लिया। शरीर के दुख नहीं रहे, अब मन के दुख हैं। और मन के दुख निश्चित ही शरीर के दुख से ज्यादा गहरे होते हैं। शरीर को गहराई ही क्या! गहराई तो मन की होती है। अमरीका में जितने लोग पागल होते हैं उतने दुनिया के किसी देश में नहीं होते। और अमरीका में जितने लोग आत्महत्या करते हैं उतनी आत्महत्या दुनिया में कहीं नहीं की जाती। अमरीका में जितने विवाह टूटते हैं उतने विवाह कहीं नहीं टूटते। अमरीका के मन पर जितना बोझ और चिंता है उतनी किसी के मन पर नहीं है। और अमरीका भौतिक अर्थों में सबसे ज्यादा सुखी है। पृथ्वी पर पहली बार पूरे अब तक के इतिहास में एक देश समृद्ध हुआ है। मगर समृद्धि के साथ साथ दुख की भी बाढ़ आ गई।
मेरे लेखे जब तक आदमी जागृत न हो तब तक वह क़ुछ भी करे, दुखी रहेगा। भूखा हो तो भूख से दुखी रहेगा और भरा पेट हो तो भरे पेट के कारण दुखी रहेगा। जीसस के जीवन में एक कहानी है। ईसाइयों ने बाइबल में नहीं रखी है। कहानी जरा खतरनाक है लेकिन सूफी फकीरों ने बचा ली है। कहानी है कि जीसस एक गांव मे प्रवेश करते हैं और उन्हेंने देखा, एक आदमी शराब पिये नाली में पड़ा हुआ गंदी गालियां बक रहा है। समझाने वे झुके, उसके चेहरे से भयंकर बदबू उठ रही है। चेहरा पहचाना हुआ मालूम पड़ा। याद उन्हें आयी। उन्होंने उस आदमो को हिलाया आर कहा, मेरे भाई! जरा आंख खोल और मुझे देख। क्या तू मुझे भूल गया? क्‍या तुझे बिलकुल याद नहीं है कि मैं कोन हूं?

उस आदमी ने गौर से देखा और कहा, हां याद है। और तुम्हारे ही कारण मैं दुःख भोग रहा हूं। क्योंकि मैं बीमार था, बिस्तर से लगा था, तुमने मुझे स्वस्थ किया। तुमने छुआ और मैं स्वस्थ हो गया। अब मैं तुमसे पूछता हूं इस स्वास्थ का क्या करू? शराब न पीऊं तो और क्या करूं? बीमार था तो बिस्तर पर लगा था। शराब का ख्याल ही नहीं उठता था। जबसे स्वस्थ हुआ हूं तबसे यह झंझटट्रै सिर पर पड़ी। तुम्हीं जिम्मेवार हो।
जीसस तो बहुत चौंके। ऐसा शायद उन्होंने पहले कभी सोचा भी न होगा। उदास थोड़े आगे बड़े बढ़े। उन्होंने एक और आदमी को एक वेश्या के पीछे भागते देखा। उसको रोका और कहा, मेरे भाई, परमात्मा ने आंखें इसलिए नहीं दी हैं। उस आदमी ने जीसस को देखा और कहा कि परमात्मा ने तो दी ही नहीं थीं। तुम्हीं हो जिम्मेवार। मैं अंधा था, तुमने मेरी आंखें छुई और मुझे आंखें मिल गई। अब मैं इन आंखों का क्या करूं, तुम्हीं बताओ। तुमने आंखें क्या दीं, तबसे मैं स्त्रियों के पीछे भाग रहा हूं। जीसस तो बहुत हैरान हो गये। वे तो फिर गांव में गये नहीं और आगे, उदास लौट आये। लौटते थे तो गांव के बाहर देखा, एक आदमी एक वृक्ष में रस्सी बांधकर फांसी लगाने का आयोजन कर रहा था। भागे, उसे रोका; कहा, यह तू क्या कर रहा है?इतना अमूल्‍य जीवन.! उस आदमी ने कहा, अब मेरे पास मत आना। मैं तो मर गया था, तुमने ही। मुझे जिंदा किया। अब इस जिंदगी का मैं क्या करूं? जिंदगी बड़ी बोझ है। मुझे मर जाने दो। कृपा करके और चमत्कार मत दिखाओ। तुम्हारे चमत्कार दिखाने की वजह से हम मुसीबत में पड़ रहे हैं। तुम्हें चमत्कार दिखाना हो तो कहीं और दिखाओ। तुम मुझे बक्शों, मुझे क्षमा कर दो।

इस कहानी की अर्थवत्ता देखो। तुम्हारे पास आंखें हैं, करोगे क्या? तुम्हारे पास स्वास्थ्य है, करोगे क्या? तुम्हारे पास जीवन है, करोगे क्या? जब तक जागरण न हो तब तक आंखें होते हुए भी अंधे होओगे। और आंखें तुम्हें गड्ढों की तरफ ले जायेंगी। और जब तक जागरण न हो, स्वस्थ हुए तो पाप के अतिरिक्त: कुछ करने को दिखाई नहीं पड़ेगा। स्वास्थ्य तुम्हें पाप में ले जायेगा। और जब तक जाग्रत न होओ तब तक जीवन भी व्यर्थ है; बोझ हो जायेगा। आत्मघात का तुम विचार करने लगोगे।

नाम सुमिरन मन बाँवरे

ओशो 

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