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Sunday, September 6, 2015

तीव्र रेचन के न होने के संभव कारण क्या हैं?

        इस संबंध में पहली चीज यह स्मरण रखने योग्य है कि रेचन तभी गहरा होगा जब तुम उसे होने दोगे, जब तुम उसके साथ सहयोग करोगे। मन इतना दमित है, तुमने चीजों को इतने गहरे तलघरों में धकेल रखा है कि उन तक पहुंचने के लिए तुम्हारा सहयोग जरूरी है। इसलिए जब तुम्हें हलका सा भी रेचन होने लगे तो उसे तीव्र बनने में सहयोग दो। केवल प्रतीक्षा ही मत करो। अगर तुम्हें लगे कि तुम्हारे हाथ कांप रहे हैं तो सिर्फ इंतजार में मत रहो, उन्हें ज्यादा कांपने में सहयोग दो। ऐसा मत सोचो कि तीव्र रेचन अपने आप ही होगा, सिर्फ प्रतीक्षा करनी है। उसके अपने आप होने के लिए तुम्हें वर्षों प्रतीक्षा करनी होगी, क्योंकि वर्षों तुमने दमन किया है। और वह दमन सहज नहीं था; तुमने किसी प्रयोजन से दमन किया था।

         तो अब तुम्हें उलटा चलना होगा; तभी दमित तत्व उभरकर सतह पर आएंगे। तुम्हें रोने का मन होता है, तुम धीमे  धीमे रोना शुरू करते हो, फिर उसे बढ़ाते जाओ, जोर से चीखो चिल्लाओ।


        तुम्हें पता नहीं है कि आरंभ से ही तुम अपने रोने को दबाते आए हो। तुम कथा ठीक से नहीं रोए। शुरू से ही बच्चा रोना चाहता है, हंसना चाहता है। रोना उसकी एक गहरी जरूरत है। रोकर वह रोज रोज अपना रेचन कर लेता है। बच्चे की भी अपनी विफलताएं हैं, निराशाएं है। यह अनिवार्य है; और वह किसी जरूरत से है। बच्‍चा कुछ चाहता है, लेकिन वह बता नहीं सकता कि क्या चाहता है। वह अपनी जरूरत को व्यक्‍त नहीं कर पाता है। वह कुछ चाहता है, लेकिन हो सकता है उसके मां—बाप उसकी वह इच्छा पूरी करने की स्थिति में न हों। हो सकता है, मां वहां मौजूद न हो, वह किसी काम में व्यस्त हो। बच्चा उपेक्षित अनुभव करता है; क्योंकि कोई उस पर ध्यान नहीं दे रहा है। वह रोने लगता है।
 
       तब मां उसे चुप कराने लगती है, सांत्वना देती है; क्योंकि उसके रोने से अड़चन होती है। पिता को भी अड़चन होती है। पूरा परिवार उपद्रव अनुभव करता है। कोई नहीं चाहता है कि बच्चा रोए; क्योंकि रोना एक उपद्रव है। हरेक व्यक्ति उसे बहलाता है, उसे चुप कराता है। हम उसे रिश्वत दे सकते हैं। मां उसे खिलौना दे सकती है, दूध दे सकती है, कुछ भी दे सकती है, जिससे बच्चे का बहलाव हो, उसे सांत्वना मिले—पर वह रोए नहीं।

         लेकिन रोना एक गहन आवश्यकता है। अगर बच्चा रो ले, अगर उसे रोने दिया जाए तो वह फिर से ताजा हो जाएगा। रोने से कुंठा बह जाती है, उसका दंश निकल जाता है। अन्यथा दमित आंसुओ के साथ कुंठा भी दमित हो जाती है, दबी रह जाती है। अब बच्चा इकट्ठा करता जाएगा। और तुम दमित आंसुओ का एक ढेर हो जाते हो।

            अब मनस्विद कहते हैं कि तुम्हें एक आदिम चीख, प्राइमल स्कीम की जरूरत है। अब तो पश्चिम में एक चिकित्सा पद्धति विकसित हो रही है जो तुम्हें इतनी समग्रता से चीखना सिखाती है कि उसमें तुम्हारे शरीर का रोआं रोआं चीखने लगता है। अगर तुम इस पागलपन के साथ रो सको कि उसमें तुम्हारा सारा शरीर रो उठे तो तुम्हारा बहुत दुख, बहुत संताप मिट जाएगा, जो न मालूम कब से इकट्ठा था। और तब तुम फिर बच्चे की भांति ताजा और निर्दोष हो जाओगे।
 
        लेकिन वह आदिम चीख अचानक नहीं आने को है, तुम्हें उसे सहयोग देना होगा। वह चीख इतनी गहराई में दब गई है, उसके ऊपर दमन की इतनी पर्तें पड़ी हैं कि केवल प्रतीक्षा करने से काम नहीं चलेगा। उसे सहयोग दो। जब तुम रोना चाहो तो दिल खोलकर रोओ। रोने में अपनी सारी ऊर्जा लगा दो और रोने का मजा लो, रोने का सुख लो। सहयोग दो; और दूसरी बात कि रोने का सुख लो।

          अगर तुम अपने रोने का मजा नहीं ले सकते तो तुम उसमें गहरे नहीं उतर सकते हो। तब रोना सतह पर ही रह जाएगा। अगर तुम रो रहे हो तो ठीक से रोओ; रोने का मजा लो, उसे अच्छे से जीओ। अगर तुम्हारे मन में कहीं भी यह भाव है कि जो मैं कर रहा हूं वह अच्छा नहीं है, दूसरे लोग क्या कहेंगे, यह बिलकुल बचकाना काम है, ऐसा थोड़ा भी भाव दमन बन जाएगा। रोने का सुख लो और खेल की तरह लो। सुख लो और गैर गंभीर रहो।


       रोते समय इस बात पर ध्यान दो कि उसे कैसे ज्यादा से ज्यादा गहराया जाए, उसे तीव्र करने के लिए क्या किया जाए। अगर तुम बैठकर रो रहे हो तो हो सकता है कि उठकर उछलने कूदने से रोना तीव्र और सघन हो जाए। या अगर तुम जमीन पर लेटकर हाथ—पाँव मारने लगो तो उससे भी रोना गहरा सकता है। तो प्रयोग करो और सहयोग करो और सुख लो। और तब तुम्हें मालूम होगा कि उसके गहराने के अनेक रास्ते हैं। उसे गहराते हुए भी मजा लो, सुख अनुभव करो।

       जीवन में हम बहुत धूल जमा करते हैं। रेचन स्नान जैसा है। उसको सहयोग दो। उसका आनंद लो। और तब एक दिन वह आदिम चीख आ जाएगी। प्रयोग करते जाओ। इसकी भविष्‍यवाणी नहीं की जा सकती कि वह कब आएगी। वह आदिम चीख कब आएगी, नहीं कहा जा सकता; क्योंकि मनुष्य बहुत जटिल है। वह इसी क्षण भी घटित हो सकती है; और वर्षों भी लग सकते हैं। एक बात निश्चित है कि अगर तुम सहयोग करोगे, सुख लोगे और गैर गंभीर रहोगे, तो वह अवश्य आएगी।

तंत्र सूत्र

ओशो 


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