एक भिखारी मर गया था एक बहुत बड़े नगर में। परमात्मा करे आप भी उस भिखारी
जैसे न मर जाएं। और वह भिखारी चालीस वर्षों तक एक ही जगह बैठ कर भीख
मांगते मर गया था। भीख मांगते—मांगते सोचा था कि भीख मांगते मांगते सम्राट
हो जाऊंगा। लेकिन भीख मांग कर कभी कोई सम्राट होता है? तो भीख तो आदमी
जितनी मांगता है उतना ही बड़ा भिखारी हो जाता है।
तो जिस दिन उसने शुरू किया था, छोटा भिखारी था, जिस दिन मरा तो बड़ा भिखारी था। लेकिन सम्राट नहीं हुआ था, फिर मर गया। तो मरने वाले के साथ जो पास पड़ोस के लोग व्यवहार करते हैं, वही उसके साथ भी किया। उसकी लाश को फिंकवा दिया, जलवा दिया। जिस जमीन पर वह बैठा था, वहां चिथड़े उसके पड़े थे, गंदगी पड़ी थी, उसमें आग लगवा दी। और फिर पड़ोस के लोगों को खयाल आया कि यह भिखारी चालीस वर्ष तक इसी जमीन को गंदा करता रहा, तो थोड़ी सी जमीन भी खुदवा कर फेंक दें। उन्होंने थोड़ी सी जमीन भी खुदवा कर फेंकी।
और देखते ही वे हैरान रह गए! काश, भिखारी जिंदा होता तो वह भी पागल हो उठता, जमीन खोदते ही पाया कि वहां तो बहुत बड़ा खजाना गड़ा हुआ है, जिस पर बैठा हुआ भिखारी भीख मांगता था। लेकिन उस भिखारी को पता भी नहीं था कि मैं जिस जमीन पर बैठ कर भीख मांगता हूं अगर वहां खोद लूं तो सम्राट हो जाऊंगा। भीख मांगने की कोई जरूरत न रह जाएगी।
लेकिन उस बेचारे को क्या पता, उसकी आंखें बाहर लगी थीं, हाथ बाहर फैले थे, भीख मांगते मांगते मर गया था। वे सारे पड़ोस के लोग चकित खडे रह गए कि कैसा यह भिखारी था! इस पागल को यह भी पता न चला कि मैं किस जमीन पर बैठा हूं वहां खजाने हैं!
मैं भी उस मोहल्ले में गया और मैंने उन पड़ोस के लोगों को आश्चर्य से भरे हुए देखा, तो मैंने उनसे कहा कि पागलो! तुम भिखारी की फिकर मत करो। छोड़ दो भिखारी की फिकर। क्योंकि तुम भी अपनी अपनी जमीन खोद कर देख लेना, कहीं ऐसा न हो कि तुम भी मर जाओ और दूसरे लोग तुम पर हंसे। जो मर जाते हैं, उन पर दूसरे लोग हंसते हैं कि बड़ा पागल था यह आदमी, कुछ भी न पा सका। और उन्हें पता नहीं कि उनके मरने की दूसरे लोग रास्ता देख रहे हैं ताकि वे भी हंसेंगे कि बड़ा पागल था यह आदमी, और कुछ भी न पा सका।
जो मर जाता है उस पर जिंदा लोग हंसते हैं, लेकिन जो जिंदा आदमी अपने पर हंसने का खयाल भी जिसे पैदा हो जाता है, उसकी जिंदगी बदल जाती है। वह दूसरा आदमी हो जाता है।
तो अगर इन तीन दिनों में आपको अपनी ही जिंदगी पर हंसने का खयाल आ जाए तो बात पूरी हो गई। और आपको खयाल आ जाए उस जगह खोदने का जहां आप खड़े हैं, तो बात पूरी हो गई। तो मैंने जो कहा उसका परिणाम फिर निश्चित आ सकता है।
अंत में यही प्रार्थना करता हूं कि आप भिखारी ही नहीं मर जाएंगे, सम्राट होकर ही मरेंगे। पड़ोस के लोगों को हंसने का मौका नहीं देंगे, इसकी प्रार्थना करता हूं।
तीन दिन तक मेरी बातों को इतनी शांति और इतने प्रेम से सुना, उसके लिए बहुत बहुत अनुगृहीत हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें।
अंतरयात्रा शिविर
ओशो
तो जिस दिन उसने शुरू किया था, छोटा भिखारी था, जिस दिन मरा तो बड़ा भिखारी था। लेकिन सम्राट नहीं हुआ था, फिर मर गया। तो मरने वाले के साथ जो पास पड़ोस के लोग व्यवहार करते हैं, वही उसके साथ भी किया। उसकी लाश को फिंकवा दिया, जलवा दिया। जिस जमीन पर वह बैठा था, वहां चिथड़े उसके पड़े थे, गंदगी पड़ी थी, उसमें आग लगवा दी। और फिर पड़ोस के लोगों को खयाल आया कि यह भिखारी चालीस वर्ष तक इसी जमीन को गंदा करता रहा, तो थोड़ी सी जमीन भी खुदवा कर फेंक दें। उन्होंने थोड़ी सी जमीन भी खुदवा कर फेंकी।
और देखते ही वे हैरान रह गए! काश, भिखारी जिंदा होता तो वह भी पागल हो उठता, जमीन खोदते ही पाया कि वहां तो बहुत बड़ा खजाना गड़ा हुआ है, जिस पर बैठा हुआ भिखारी भीख मांगता था। लेकिन उस भिखारी को पता भी नहीं था कि मैं जिस जमीन पर बैठ कर भीख मांगता हूं अगर वहां खोद लूं तो सम्राट हो जाऊंगा। भीख मांगने की कोई जरूरत न रह जाएगी।
लेकिन उस बेचारे को क्या पता, उसकी आंखें बाहर लगी थीं, हाथ बाहर फैले थे, भीख मांगते मांगते मर गया था। वे सारे पड़ोस के लोग चकित खडे रह गए कि कैसा यह भिखारी था! इस पागल को यह भी पता न चला कि मैं किस जमीन पर बैठा हूं वहां खजाने हैं!
मैं भी उस मोहल्ले में गया और मैंने उन पड़ोस के लोगों को आश्चर्य से भरे हुए देखा, तो मैंने उनसे कहा कि पागलो! तुम भिखारी की फिकर मत करो। छोड़ दो भिखारी की फिकर। क्योंकि तुम भी अपनी अपनी जमीन खोद कर देख लेना, कहीं ऐसा न हो कि तुम भी मर जाओ और दूसरे लोग तुम पर हंसे। जो मर जाते हैं, उन पर दूसरे लोग हंसते हैं कि बड़ा पागल था यह आदमी, कुछ भी न पा सका। और उन्हें पता नहीं कि उनके मरने की दूसरे लोग रास्ता देख रहे हैं ताकि वे भी हंसेंगे कि बड़ा पागल था यह आदमी, और कुछ भी न पा सका।
जो मर जाता है उस पर जिंदा लोग हंसते हैं, लेकिन जो जिंदा आदमी अपने पर हंसने का खयाल भी जिसे पैदा हो जाता है, उसकी जिंदगी बदल जाती है। वह दूसरा आदमी हो जाता है।
तो अगर इन तीन दिनों में आपको अपनी ही जिंदगी पर हंसने का खयाल आ जाए तो बात पूरी हो गई। और आपको खयाल आ जाए उस जगह खोदने का जहां आप खड़े हैं, तो बात पूरी हो गई। तो मैंने जो कहा उसका परिणाम फिर निश्चित आ सकता है।
अंत में यही प्रार्थना करता हूं कि आप भिखारी ही नहीं मर जाएंगे, सम्राट होकर ही मरेंगे। पड़ोस के लोगों को हंसने का मौका नहीं देंगे, इसकी प्रार्थना करता हूं।
तीन दिन तक मेरी बातों को इतनी शांति और इतने प्रेम से सुना, उसके लिए बहुत बहुत अनुगृहीत हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें।
अंतरयात्रा शिविर
ओशो
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