एक आदमी था, शेख अब्दुल्लाह उसका नाम। उसके बारह लड़के हुए। उसने सभी का
नाम अब्दुल्लाह जैसा रखा। ऐसे नाम रखे जो अल्लाह पर पूरे होते हैं। किसी का
रहीमतुल्लाह, किसी का हिदायतुल्लाह–इस भांति। फिर उसका तेरहवां बच्चा पैदा
हुआ। तब वह बड़ी मुश्किल में पड़ गया। सब नाम चुक गये, जो अल्लाह पर पूरे
होते थे। तो वह मुल्ला नसरुद्दीन के पास गया। भाग्य से मैं मौजूद था उस शुभ
घड़ी में। और उसने कहा नसरुद्दीन से, ‘बड़े मियां! तेरहवां लड़का पैदा हुआ,
अल्लाह में पूरे होते किसी नाम का सुझाव दें; मैं तो थक गया खोज-खोज कर। सब
नाम चुक गये।’
नसरुद्दीन ने बिना झिझके आकाश की तरफ देखा और कहा, ‘तुम उसका नाम रखो, बस कर अल्लाह!’
जब तुम्हारे जीवन में ऐसी घड़ी आ जाये जब तुम कह सको, ‘बस कर अल्लाह’, तभी धर्म का प्रारंभ है। अभी तुम थके नहीं। अभी तुम अल्लाह से भी कुछ झूठ चलाना चाहते हो। अभी तुम्हारी प्रार्थना भी संसार का अंग है। अभी तुम्हारी पूजा भी धन के, प्रतिष्ठा के, यश के सामने ही चल रही है। अभी तुम मंदिर भी जाते हो तो मांगने; देने नहीं।
और परमात्मा के द्वार पर वही पहुंच पाता है जो देने गया है, मांगने नहीं। भिखमंगों की वहां कोई जगह नहीं है। भिखारी हो कर उस परम-सम्राट से तुम मिलोगे भी कैसे? उस जैसा ही होना पड़ेगा। कुछ तो सम्राट जैसे हो जाओ? उसी अंश में तुम परमात्मा जैसे हो जाओगे। मांगती हुई प्रार्थनायें उस तक नहीं पहुंचतीं। सिर्फ देनेवाली, अपने को देनेवाली प्रार्थनायें उस तक पहुंचती हैं।
तुम्हारे दीये के तले अंधेरा है, क्योंकि तुमने अभी यह पहचाना ही नहीं कि तुम ज्योति हो। तुम यही जानते हो कि तुम मिट्टी का दीया हो। और मिट्टी का दीया जब तक तुम्हारे साथ जुड़ा है, तब तक अंधेरा रहेगा। जिस दिन तुम निर्मल ज्योति बचोगे, मृण्मय छोड़ दोगे, चिन्मय बचेगा; जिस दिन तुम मिट्टी के दीये को छोड़ दोगे, और भीतर की ज्योति को ही बचा लोगे; उस दिन चारों तरफ प्रकाश होगा। उस दिन कहीं भी अंधेरा न होगा।
और जब तुम्हारे भीतर प्रकाश हो तो तुम्हारे बाहर भी प्रकाश होता है। क्योंकि तुम जहां जाते हो अपना प्रकाश ले जाते हो। तुम जहां चलते हो, तुम्हारी ज्योति चारों तरफ प्रकाश करती है।
अभी तो तुम जहां जाते हो, अपना अंधेरा ले जाते हो। तुम जिसके जीवन में प्रवेश करोगे उसका जीवन भी मुश्किल में पड़ जायेगा। अभी तो तुम दुर्भाग्य हो। तुम जिसके साथ जुड़ जाओगे उसे भी मुसीबत में डाल दोगे, क्योंकि उसका जीवन भी तुम्हारे अंधकार से घना हो जायेगा। उसका अंधकार तुम दुगुना करोगे। अभी तो तुम्हारे सभी संबंध, तुम्हारे सब मित्र, सब प्रियजन तुम्हारे कारण भी नर्क में पड़ेंगे, अपने कारण तो वे पड़े ही हैं।
इसलिये एक दुर्घटना रोज घटती है पृथ्वी पर। तुम एक दूसरे का हित करना चाहते हो, लेकिन सिवाय अहित के कुछ भी नहीं होता। तुम कितना ही चाहो कि मैं दूसरे को प्रेम दूं। तुम देते प्रेम के ही नाम से हो, पहुंचती घृणा है। तुम कितना ही चाहो कि मैं दूसरे पर करुणा करूं, लेकिन करुणा करनेवाला हृदय नहीं है। करुणा तो तभी हो सकती है जब तुम्हारे भीतर का सब अंधेरा मिट गया हो। तुम करुणा नहीं कर पाते। ज्यादा से ज्यादा करुणा के नाम पर तुम दया कर पाते हो। और दया अपमान है। दूसरे का अपमान है। दया के साथ अहंकार जुड़ा है। करुणा निरहंकार चित्त का प्रेम है। करुणा करनेवाले को पता नहीं चलता कि मैंने करुणा की; दया करनेवाले को भारी रूप से पता चलता है, कि मैंने दया की। जितनी वह करता है उससे कई गुनी उसे पता चलती है कि मैंने की।
इसलिए तुम जिस पर दया करोगे, वही तुम्हारा दुश्मन हो जायेगा। जिस पर तुम दया करोगे, जिसे तुम प्रेम दोगे, तुम पाओगे कि वही तुमसे बदला लेने को आतुर है। यह दुर्घटना इसलिए घटती है कि तुम्हारा अंधेरा, तुम जिसके पास जाते हो, उसके अंधेरे को और बढ़ा देता है।
रोशनी तुम्हारे जीवन में चाहिए। और रोशनी मौजूद है। सिर्फ मिट्टी के दीये से संबंध तोड़ने की बात है। यह भर जानने की बात है कि मैं यह मृण्मय शरीर नहीं हूं, मैं चिन्मय आत्मा हूं। जरा सी शिफ्ट, जरा सा गेयर बदलना है। तुम्हारी आंखें जड़ हो गई हैं दीये पर। और तुम इतने भयभीत हो गये हो, क्योंकि तुम्हें खयाल है कि अगर दीया हट गया, अगर दीये में भरा हुआ तेल हट गया, तो ज्योति बुझ जायेगी। वहीं तुम्हारी भ्रांति है।
यह ज्योति बुझनेवाली नहीं है, जो तुम्हारे भीतर जल रही है। यह जब शरीर नहीं था तब भी जल रही थी। मां के पेट में आने के पहले भी यह ज्योति संचरण कर रही थी। पिछले जन्म में जब तुम्हारी मृत्यु हुई, तब मिट्टी का दीया छूट गया, तेल छूट गया। उस दीये में तेल चुक गया, इसीलिए तो दीया छूट गया। यह ज्योति मुक्त हो गई उस देह से। इसने नया गर्भ लिया, नया दीया पकड़ा, नये तेल के साथ जुड़ी। दीया बहुत छोटा था। खाली आंख से देखा भी नहीं जा सकता। उस छोटे से दीये ने भी इसको जलाया। फिर दीया बड़ा होने लगा; बच्चा हुआ, जवान हुआ, अब तुम बूढ़े होने के करीब आ रहे हो, फिर दीया टूटेगा, क्योंकि तेल चुक जायेगा। ज्योति फिर नये घर खोजेगी, नये गर्भ खोजेगी।
यह ज्योति तुम हो, जो जन्मों-जन्मों से अनंत की यात्रा पर निकली है। जिसकी यात्रा का कोई अंत नहीं है। बहुत दीये इसने चुका दिए। न मालूम कितने दीयों में यह बसी, न मालूम कितने घरों में मेहमान बनी। वे घर सब छूट गये, यह अब भी बनी है। सारे धर्म की खोज इस बात की है, तुम्हारे भीतर उस तत्व को पहचान लेना है, जो मिटता नहीं है, जो अमृत है।
दिया तले अँधेरा
ओशो
नसरुद्दीन ने बिना झिझके आकाश की तरफ देखा और कहा, ‘तुम उसका नाम रखो, बस कर अल्लाह!’
जब तुम्हारे जीवन में ऐसी घड़ी आ जाये जब तुम कह सको, ‘बस कर अल्लाह’, तभी धर्म का प्रारंभ है। अभी तुम थके नहीं। अभी तुम अल्लाह से भी कुछ झूठ चलाना चाहते हो। अभी तुम्हारी प्रार्थना भी संसार का अंग है। अभी तुम्हारी पूजा भी धन के, प्रतिष्ठा के, यश के सामने ही चल रही है। अभी तुम मंदिर भी जाते हो तो मांगने; देने नहीं।
और परमात्मा के द्वार पर वही पहुंच पाता है जो देने गया है, मांगने नहीं। भिखमंगों की वहां कोई जगह नहीं है। भिखारी हो कर उस परम-सम्राट से तुम मिलोगे भी कैसे? उस जैसा ही होना पड़ेगा। कुछ तो सम्राट जैसे हो जाओ? उसी अंश में तुम परमात्मा जैसे हो जाओगे। मांगती हुई प्रार्थनायें उस तक नहीं पहुंचतीं। सिर्फ देनेवाली, अपने को देनेवाली प्रार्थनायें उस तक पहुंचती हैं।
तुम्हारे दीये के तले अंधेरा है, क्योंकि तुमने अभी यह पहचाना ही नहीं कि तुम ज्योति हो। तुम यही जानते हो कि तुम मिट्टी का दीया हो। और मिट्टी का दीया जब तक तुम्हारे साथ जुड़ा है, तब तक अंधेरा रहेगा। जिस दिन तुम निर्मल ज्योति बचोगे, मृण्मय छोड़ दोगे, चिन्मय बचेगा; जिस दिन तुम मिट्टी के दीये को छोड़ दोगे, और भीतर की ज्योति को ही बचा लोगे; उस दिन चारों तरफ प्रकाश होगा। उस दिन कहीं भी अंधेरा न होगा।
और जब तुम्हारे भीतर प्रकाश हो तो तुम्हारे बाहर भी प्रकाश होता है। क्योंकि तुम जहां जाते हो अपना प्रकाश ले जाते हो। तुम जहां चलते हो, तुम्हारी ज्योति चारों तरफ प्रकाश करती है।
अभी तो तुम जहां जाते हो, अपना अंधेरा ले जाते हो। तुम जिसके जीवन में प्रवेश करोगे उसका जीवन भी मुश्किल में पड़ जायेगा। अभी तो तुम दुर्भाग्य हो। तुम जिसके साथ जुड़ जाओगे उसे भी मुसीबत में डाल दोगे, क्योंकि उसका जीवन भी तुम्हारे अंधकार से घना हो जायेगा। उसका अंधकार तुम दुगुना करोगे। अभी तो तुम्हारे सभी संबंध, तुम्हारे सब मित्र, सब प्रियजन तुम्हारे कारण भी नर्क में पड़ेंगे, अपने कारण तो वे पड़े ही हैं।
इसलिये एक दुर्घटना रोज घटती है पृथ्वी पर। तुम एक दूसरे का हित करना चाहते हो, लेकिन सिवाय अहित के कुछ भी नहीं होता। तुम कितना ही चाहो कि मैं दूसरे को प्रेम दूं। तुम देते प्रेम के ही नाम से हो, पहुंचती घृणा है। तुम कितना ही चाहो कि मैं दूसरे पर करुणा करूं, लेकिन करुणा करनेवाला हृदय नहीं है। करुणा तो तभी हो सकती है जब तुम्हारे भीतर का सब अंधेरा मिट गया हो। तुम करुणा नहीं कर पाते। ज्यादा से ज्यादा करुणा के नाम पर तुम दया कर पाते हो। और दया अपमान है। दूसरे का अपमान है। दया के साथ अहंकार जुड़ा है। करुणा निरहंकार चित्त का प्रेम है। करुणा करनेवाले को पता नहीं चलता कि मैंने करुणा की; दया करनेवाले को भारी रूप से पता चलता है, कि मैंने दया की। जितनी वह करता है उससे कई गुनी उसे पता चलती है कि मैंने की।
इसलिए तुम जिस पर दया करोगे, वही तुम्हारा दुश्मन हो जायेगा। जिस पर तुम दया करोगे, जिसे तुम प्रेम दोगे, तुम पाओगे कि वही तुमसे बदला लेने को आतुर है। यह दुर्घटना इसलिए घटती है कि तुम्हारा अंधेरा, तुम जिसके पास जाते हो, उसके अंधेरे को और बढ़ा देता है।
रोशनी तुम्हारे जीवन में चाहिए। और रोशनी मौजूद है। सिर्फ मिट्टी के दीये से संबंध तोड़ने की बात है। यह भर जानने की बात है कि मैं यह मृण्मय शरीर नहीं हूं, मैं चिन्मय आत्मा हूं। जरा सी शिफ्ट, जरा सा गेयर बदलना है। तुम्हारी आंखें जड़ हो गई हैं दीये पर। और तुम इतने भयभीत हो गये हो, क्योंकि तुम्हें खयाल है कि अगर दीया हट गया, अगर दीये में भरा हुआ तेल हट गया, तो ज्योति बुझ जायेगी। वहीं तुम्हारी भ्रांति है।
यह ज्योति बुझनेवाली नहीं है, जो तुम्हारे भीतर जल रही है। यह जब शरीर नहीं था तब भी जल रही थी। मां के पेट में आने के पहले भी यह ज्योति संचरण कर रही थी। पिछले जन्म में जब तुम्हारी मृत्यु हुई, तब मिट्टी का दीया छूट गया, तेल छूट गया। उस दीये में तेल चुक गया, इसीलिए तो दीया छूट गया। यह ज्योति मुक्त हो गई उस देह से। इसने नया गर्भ लिया, नया दीया पकड़ा, नये तेल के साथ जुड़ी। दीया बहुत छोटा था। खाली आंख से देखा भी नहीं जा सकता। उस छोटे से दीये ने भी इसको जलाया। फिर दीया बड़ा होने लगा; बच्चा हुआ, जवान हुआ, अब तुम बूढ़े होने के करीब आ रहे हो, फिर दीया टूटेगा, क्योंकि तेल चुक जायेगा। ज्योति फिर नये घर खोजेगी, नये गर्भ खोजेगी।
यह ज्योति तुम हो, जो जन्मों-जन्मों से अनंत की यात्रा पर निकली है। जिसकी यात्रा का कोई अंत नहीं है। बहुत दीये इसने चुका दिए। न मालूम कितने दीयों में यह बसी, न मालूम कितने घरों में मेहमान बनी। वे घर सब छूट गये, यह अब भी बनी है। सारे धर्म की खोज इस बात की है, तुम्हारे भीतर उस तत्व को पहचान लेना है, जो मिटता नहीं है, जो अमृत है।
दिया तले अँधेरा
ओशो
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