दो फकीर एक संध्या अपने झोपड़े पर पहुंचे। वे चार महीने से बाहर थे और अब
वर्षा आ गई थी तो अपने झोपड़े पर वापस लौटे थे। लेकिन झोपड़े के करीब आकर,
जो आगे युवा फकीर था, वह एकदम क्रोध से भर गया और दुखी हो गया। वर्षा की
हवाओं ने आधे झोपड़े को उड़ा दिया था, आधा ही झोपड़ा बचा था। वे चार महीने भटक
कर आए थे इस आशा में कि वर्षा में अपने झोपड़े में विश्राम कर सकेंगे, पानी
से बच सकेंगे, यह तो मुश्किल हो गई। झोपड़ा आधा टूटा हुआ पड़ा था, आधा छप्पर
उड़ा हुआ था।
उस युवा संन्यासी ने लौट कर अपने बूढ़े साथी को कहा कि यह तो हद हो गई। इन्हीं बातों से तो भगवान पर शक आ जाता है, संदेह हो जाता है। महल खड़े हैं पापियों के नगर में, उनका कुछ बाल बांका नहीं हुआ। हम गरीबों की झोपड़ी, जो दिनरात उसी की प्रार्थना में समय बिताते हैं, वह आधी छप्पर टूट गई। इसीलिए मुझे शक हो जाता है कि भगवान है भी! यह प्रार्थना है भी! क्या हम सब गलती में पड़े हैं, हम पागलपन में पड़े हैं? हो सकता है पाप ही असली सचाई हो, क्योंकि पाप के महल खड़े रह जाते हैं और प्रार्थना करने वालों के झोपड़े उड़ जाते हैं।
वह क्रोध से भर गया और निंदा से भर गया और उसे अपनी सारी प्रार्थनाएं व्यर्थ मालूम पड़ी। लेकिन वह जो का साथी था, वह हाथ आकाश की तरफ जोड़ कर खड़ा हो गया और उसकी आंखों से आनंद के आंसू बहने लगे। वह युवक तो हैरान हुआ! उसने कहा क्या करते हैं आप? उस बूढ़े ने कहा मैं परमात्मा को धन्यवाद देता हूं क्योंकि जरूर ही… आंधियों का क्या भरोसा था, पूरा झोपड़ा भी उड़ा कर ले जा सकती थीं। भगवान ने ही बीच में कोई बाधा दी होगी, इसलिए आधा छप्पर बचा। नहीं तो आंधियों का क्या भरोसा था, पूरा छप्पर भी उड़ सकता था। हम गरीबों की भी उसे फिकर है और खयाल है, तो उसे धन्यवाद दे दूं। हमारी प्रार्थनाएं सुनी गई हैं, हमारी प्रार्थनाएं व्यर्थ नहीं गईं। नहीं तो आधा छप्पर बचना मुश्किल था।
फिर वे रात दोनों सोए। सोच ही सकते हैं आप, दोनों अलग अलग ढंग से सोए। क्योंकि जो क्रोध और गुस्से से भरा था और जिसकी सारी प्रार्थनाएं व्यर्थ हो गई थीं, वह रात भर करवट बदलता रहा और रात भर उसके मन में न मालूम कैसे कैसे दुखस्वप्न चलते रहे, चिंताएं चलती रहीं। वह चिंतित था। वर्षा ऊपर खड़ी थी, बादल आकाश में घिर गए थे, आधा छप्पर उड़ा हुआ था, आकाश दिखाई पड़ रहा था। कल वर्षा शुरू होगी, फिर क्या होगा?
दूसरा बहुत गहरी नींद सोया, क्योंकि जिसके प्राण धन्यवाद से भरे हैं और ग्रेटिटयूड़ से और कृतज्ञता से उसकी निद्रा जैसी सुखद निद्रा और किसकी हो सकती है! वह सुबह उठा और नाचने लगा और उसने एक गीत गाया और उस गीत में उसने कहा कि हे परमात्मा! हमें पता भी न था कि आधे झोपड़े का इतना आनंद हो सकता है। अगर हमें पहले से पता होता तो हम तेरी हवाओं को कष्ट भी न देते, हम खुद ही आधा छप्पर अलग कर देते। ऐसी आनंददायी नींद तो मैं कभी सोया ही नहीं। आधा छप्पर नहीं था, तो जब भी रात आंख खुली तो तेरे आकाश के तारे भी दिखाई पड़े, तेरे घिरते हुए बादल भी दिखाई पड़े। अब तो बड़ा आनंद होगा, वर्षा आने को है, कल से पानी पड़ेगा, हम आधे छप्पर में सोए भी रहेंगे और रात तेरी बूंदों की आवाज, तेरी बूंदों का संगीत भी हमारे पास ही पड़ता रहेगा। हम पागल रहे अब तक। हमने कई वर्षाएं ऐसे ही पूरे छप्पर के भीतर छिपे हुए बिता दीं। हमें पता भी न था कि आधे छप्पर का भी कोई आनंद हो सकता है। अगर हमें मालूम होता, हम तेरी आंधियों को तकलीफ भी न देते, हम खुद ही आधा छप्पर अलग कर देते।
उस दूसरे युवक ने पूछा कि मैं यह क्या सुन रहा हूं यह सब क्या बकवास है? यह क्या पागलपन है? यह तुम क्या कहते हो?
तो उस के ने कहा मैंने बहुत खोजा और मैंने यह अनुभव कर लिया कि जिस बात से दुख बढ़ता हो वह जीवन दिशा गलत है और जिस बात से आनंद बढ़ता हो वह जीवन दिशा सही है। मैंने भगवान को धन्यवाद दिया, मेरा आनंद बढ़ा। तुमने भगवान पर क्रोध किया तुम्हारा दुख बढ़ा। तुम रात बेचैन रहे, मैं रात शांति से सोया। अभी मैं गीत गा पा रहा हूं और तुम क्रोध से जले जा रहे हो। बहुत पहले मुझे समझ में आ गया कि जो आनंद बढ़ाता है वही जीवन दिशा सही है। और मैंने अपनी सारी चेतना को उसी तरफ प्रवाहित किया है। मुझे पता नहीं भगवान है या नहीं, मुझे पता नहीं उसने हमारी प्रार्थनाएं सुनी या नहीं सुनीं। लेकिन सबूत है मेरे पास कि मैं आनंदित हूं और नाच रहा हूं और तुम रो रहे हो और क्रोधित हो और परेशान हो। मेरा आनंद, मैं जैसा जी रहा हूं र उसके सही होने का सबूत है। तुम्हारा दुख, तुम जैसे जी रहे हो, उसके गलत होने का सबूत है।
तीसरी बात है: निरंतर इस बात का परीक्षण कि किन दिशाओं से मेरा आनंद घनीभूत होता है। किसी से पूछने जाने की कोई भी जरूरत नहीं है। वह रोज रोज की जिंदगी में, रोज रोज कसौटी हमारे पास है। आनंद की कसौटी है। जैसे पत्थर पर सोने को कसते हैं और जांच लेते हैं, क्या सही है और गलत है। और सुनार फेंक देता है जो गलत है उसे एक तरफ और जो सही है उसे तिजोरी में रख लेता है।
आनंद की कसौटी पर रोज रोज कसते रहें, क्या है सही और क्या है गलत। जो गलत है वह फिक जाएगा, जो सही है उसकी संपदा धीरे धीरे इकट्ठी हो जाती है।
अंतरयात्रा शिविर
ओशो
उस युवा संन्यासी ने लौट कर अपने बूढ़े साथी को कहा कि यह तो हद हो गई। इन्हीं बातों से तो भगवान पर शक आ जाता है, संदेह हो जाता है। महल खड़े हैं पापियों के नगर में, उनका कुछ बाल बांका नहीं हुआ। हम गरीबों की झोपड़ी, जो दिनरात उसी की प्रार्थना में समय बिताते हैं, वह आधी छप्पर टूट गई। इसीलिए मुझे शक हो जाता है कि भगवान है भी! यह प्रार्थना है भी! क्या हम सब गलती में पड़े हैं, हम पागलपन में पड़े हैं? हो सकता है पाप ही असली सचाई हो, क्योंकि पाप के महल खड़े रह जाते हैं और प्रार्थना करने वालों के झोपड़े उड़ जाते हैं।
वह क्रोध से भर गया और निंदा से भर गया और उसे अपनी सारी प्रार्थनाएं व्यर्थ मालूम पड़ी। लेकिन वह जो का साथी था, वह हाथ आकाश की तरफ जोड़ कर खड़ा हो गया और उसकी आंखों से आनंद के आंसू बहने लगे। वह युवक तो हैरान हुआ! उसने कहा क्या करते हैं आप? उस बूढ़े ने कहा मैं परमात्मा को धन्यवाद देता हूं क्योंकि जरूर ही… आंधियों का क्या भरोसा था, पूरा झोपड़ा भी उड़ा कर ले जा सकती थीं। भगवान ने ही बीच में कोई बाधा दी होगी, इसलिए आधा छप्पर बचा। नहीं तो आंधियों का क्या भरोसा था, पूरा छप्पर भी उड़ सकता था। हम गरीबों की भी उसे फिकर है और खयाल है, तो उसे धन्यवाद दे दूं। हमारी प्रार्थनाएं सुनी गई हैं, हमारी प्रार्थनाएं व्यर्थ नहीं गईं। नहीं तो आधा छप्पर बचना मुश्किल था।
फिर वे रात दोनों सोए। सोच ही सकते हैं आप, दोनों अलग अलग ढंग से सोए। क्योंकि जो क्रोध और गुस्से से भरा था और जिसकी सारी प्रार्थनाएं व्यर्थ हो गई थीं, वह रात भर करवट बदलता रहा और रात भर उसके मन में न मालूम कैसे कैसे दुखस्वप्न चलते रहे, चिंताएं चलती रहीं। वह चिंतित था। वर्षा ऊपर खड़ी थी, बादल आकाश में घिर गए थे, आधा छप्पर उड़ा हुआ था, आकाश दिखाई पड़ रहा था। कल वर्षा शुरू होगी, फिर क्या होगा?
दूसरा बहुत गहरी नींद सोया, क्योंकि जिसके प्राण धन्यवाद से भरे हैं और ग्रेटिटयूड़ से और कृतज्ञता से उसकी निद्रा जैसी सुखद निद्रा और किसकी हो सकती है! वह सुबह उठा और नाचने लगा और उसने एक गीत गाया और उस गीत में उसने कहा कि हे परमात्मा! हमें पता भी न था कि आधे झोपड़े का इतना आनंद हो सकता है। अगर हमें पहले से पता होता तो हम तेरी हवाओं को कष्ट भी न देते, हम खुद ही आधा छप्पर अलग कर देते। ऐसी आनंददायी नींद तो मैं कभी सोया ही नहीं। आधा छप्पर नहीं था, तो जब भी रात आंख खुली तो तेरे आकाश के तारे भी दिखाई पड़े, तेरे घिरते हुए बादल भी दिखाई पड़े। अब तो बड़ा आनंद होगा, वर्षा आने को है, कल से पानी पड़ेगा, हम आधे छप्पर में सोए भी रहेंगे और रात तेरी बूंदों की आवाज, तेरी बूंदों का संगीत भी हमारे पास ही पड़ता रहेगा। हम पागल रहे अब तक। हमने कई वर्षाएं ऐसे ही पूरे छप्पर के भीतर छिपे हुए बिता दीं। हमें पता भी न था कि आधे छप्पर का भी कोई आनंद हो सकता है। अगर हमें मालूम होता, हम तेरी आंधियों को तकलीफ भी न देते, हम खुद ही आधा छप्पर अलग कर देते।
उस दूसरे युवक ने पूछा कि मैं यह क्या सुन रहा हूं यह सब क्या बकवास है? यह क्या पागलपन है? यह तुम क्या कहते हो?
तो उस के ने कहा मैंने बहुत खोजा और मैंने यह अनुभव कर लिया कि जिस बात से दुख बढ़ता हो वह जीवन दिशा गलत है और जिस बात से आनंद बढ़ता हो वह जीवन दिशा सही है। मैंने भगवान को धन्यवाद दिया, मेरा आनंद बढ़ा। तुमने भगवान पर क्रोध किया तुम्हारा दुख बढ़ा। तुम रात बेचैन रहे, मैं रात शांति से सोया। अभी मैं गीत गा पा रहा हूं और तुम क्रोध से जले जा रहे हो। बहुत पहले मुझे समझ में आ गया कि जो आनंद बढ़ाता है वही जीवन दिशा सही है। और मैंने अपनी सारी चेतना को उसी तरफ प्रवाहित किया है। मुझे पता नहीं भगवान है या नहीं, मुझे पता नहीं उसने हमारी प्रार्थनाएं सुनी या नहीं सुनीं। लेकिन सबूत है मेरे पास कि मैं आनंदित हूं और नाच रहा हूं और तुम रो रहे हो और क्रोधित हो और परेशान हो। मेरा आनंद, मैं जैसा जी रहा हूं र उसके सही होने का सबूत है। तुम्हारा दुख, तुम जैसे जी रहे हो, उसके गलत होने का सबूत है।
तीसरी बात है: निरंतर इस बात का परीक्षण कि किन दिशाओं से मेरा आनंद घनीभूत होता है। किसी से पूछने जाने की कोई भी जरूरत नहीं है। वह रोज रोज की जिंदगी में, रोज रोज कसौटी हमारे पास है। आनंद की कसौटी है। जैसे पत्थर पर सोने को कसते हैं और जांच लेते हैं, क्या सही है और गलत है। और सुनार फेंक देता है जो गलत है उसे एक तरफ और जो सही है उसे तिजोरी में रख लेता है।
आनंद की कसौटी पर रोज रोज कसते रहें, क्या है सही और क्या है गलत। जो गलत है वह फिक जाएगा, जो सही है उसकी संपदा धीरे धीरे इकट्ठी हो जाती है।
अंतरयात्रा शिविर
ओशो
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