संसार को ठीक से पा लेना, ताकि छोड़ सको। वासना को ठीक से अनुभव कर लेना,
ताकि वासना मुक्ति हो सके। धन को ठीक से भोग लेना, ताकि धन व्यर्थ हो जाए।
जहां भी रस हो, वहां पूरे चले जाना ताकि आगे जाने की कोई जगह न बचे और तुम
पीछे वापिस लौट सको।
अधूरे अनुभव कहीं भी नहीं ले जाते। वृक्ष जब अपने फल को पूरा पका लेता
है, तब फल खुद ही टूट जाता है और गिर जाता है। कच्चे फल नहीं गिरते। अधूरा
अनुभव कच्चा फल है; पूरा अनुभव पका हुआ फल है।
इसलिए पहली बात खयाल में ले लें; संसार के होने का ढंग जैसा है, इससे अन्यथा नहीं हो सकता। यहां विपरीत होगा ही–एक बात।
दूसरी बात: परमात्मा तुम्हें दुख नहीं देता, न परमात्मा तुम्हें सुख
देता है। सुख और दुख दो विकल्प हैं। चुनने को तुम सदा स्वतंत्र हो। चुनाव
तुम्हारे हाथ में है। परमात्मा तुम्हें नर्क में धक्के नहीं देता और न
स्वर्ग में तुम्हारा स्वागत करता है। स्वर्ग और नर्क दोनों के द्वार खुले
हैं। चुनाव तुम्हारा है। तुम जहां जाना चाहो। और यह उचित है कि द्वार खुले
हैं क्योंकि स्वतंत्रता के बिना सत्य की कोई उपलब्धि नहीं हो सकती। तुम
स्वतंत्र हो दुख भोगने को। तुम्हारी स्वतंत्रता परम है। तुम स्वतंत्र हो
सुख भोगने को और तुम स्वतंत्र हो मार्ग बदल लेने को। तुम्हारी स्वतंत्रता
में कोई भी बाधा नहीं है।
इस बात को ठीक से समझ लेना। इसलिए अगर तुम दुख भोगते हो तो यह तुम्हारा
चुनाव है। अगर तुम सुख भोगते हो तो यह भी तुम्हारा चुनाव है। अगर तुम जहां
हो वहां से नहीं हटते हो, तो भी तुम्हारा चुनाव है। वहां से हटते हो तो भी
तुम्हारा चुनाव है। तुम्हारी चेतना पर कोई नियंत्रण नहीं है।
जैसे घर में एक चूल्हा जला दिया है, आग जल रही है और दूसरी तरफ वृक्षों
में फूल खिले हैं। तुम स्वतंत्र हो; चाहे फूल तोड़कर अपनी झोली फूलों से भर
लो और चाहे आग में हाथ डालकर अंगारों में जल जाओ। कोई तुम्हें धक्के नहीं
दे रहा है। आग जल रही है, फूल खिले हैं।
परमात्मा सृष्टि को बनाता है, तुम्हें नहीं। इसे थोड़ा समझ लेना चाहिये।
परमात्मा सृष्टि को बनाता है, इसका अर्थ है: परिस्थितियां बनाता है, विकल्प
बनाता है। द्वार–स्वर्ग और नर्क, सुख और दुख बनाता है, तुम्हें नहीं।
तुम तो परमात्मा हो। तुम तो उसके ही अंश हो। वह तुम्हें बना नहीं सकता।
और अगर तुम बनाये गये हो तो तुम दो कौड़ी के हो गये। फिर तुम्हारा कोई मोक्ष
नहीं हो सकता। अगर तुम बनाई गई कठपुतली हो तो जिस दिन उसका दिल बदल जाए
तुम्हें मिटा दे। वह तुम्हें बनाया भी नहीं, तुम्हें मिटा भी नहीं सकता।
तुम तो वही हो। तुम परमात्मा हो। और यह चारों तरफ तुम्हारा जो खेल है, वह तुम्हारा
ही बनाया हुआ है। और विकल्प तुम्हारे सामने दोनों मौजूद हैं। तुम जो चुनना
चाहो, चुन सकते हो।
बिन बाती बिन तेल
ओशो
No comments:
Post a Comment