तुम यहां बैठे हो; बस भाव करो कि तुम वजनशून्य हो गए, तुम्हारा वजन न रहा। तुम्हें पहले लगेगा कि कहीं यहां वहां वजन है। लेकिन वजनशून्य होने का भाव जारी रखो। वह प्रेम करते हुए आता है। एक क्षण आता है जब तुम समझोगे कि तुम वजनशून्य हो, वजन नहीं है। और जब वजन नहीं रहा तो तुम शरीर नहीं रहे। क्योंकि वज़न शरीर का है, तुम्हारा नहीं। तुम तो वजनशून्य हो।
इस संबंध में बहुत से प्रयोग किए गए हैं। कोई मरता है तो संसार भर में अनेक वैज्ञानिकों ने मरते हुए व्यक्ति का वजन लेने की कोशिश की है। अगर कुछ फर्क हुआ, अगर मरने के पूर्व ज्यादा वजन था और मरने के बाद कम वजन रहा तो वैज्ञानिक कह सकते हैं कि कुछ चीज शरीर से बाहर निकली है, कोई आत्मा या कुछ अब वहा नहीं है। क्योंकि विज्ञान के लिए कुछ भी बिना वजन के नहीं है।
सब पदार्थ के लिए वजन बुनियादी है। सूर्य की किरणों का भी वजन है। वह अत्यंत कम है, न्यून है, उसको मापना भी कठिन है; लेकिन वैज्ञानिकों ने उसे भी मापा है। अगर तुम पांच वर्ग मील के क्षेत्र पर फैली सब सूर्य किरणों को इकट्ठा कर सको तो उनका वजन एक बाल के वजन के बराबर होगा। सूर्य किरणों का भी वजन है, वे तौली गई हैं। विज्ञान के लिए कुछ भी वजन के बिना नहीं है। और अगर कोई चीज वजन के बिना है तो वह पदार्थ नहीं, अपदार्थ है। और विज्ञान पिछले बीस पच्चीस वर्षों तक विश्वास करता था कि पदार्थ के अतिरिक्त कुछ नहीं है। इसलिए जब कोई मरता है और कोई चीज शरीर छोड़कर बाहर जाती है तो वजन में फर्क पड़ना चाहिए।
लेकिन यह फर्क कभी न पड़ा, वजन वही का वही रहा। कभी कभी थोड़ा बढ़ा ही है। और वही समस्या है। जिंदा आदमी का वजन कम हुआ, मुर्दे का ज्यादा। उससे उलझन बढ़ी, क्योंकि वैज्ञानिक तो यह पता लेने चले थे कि क्या मरने पर वजन घटता है। तभी तो वे कह सकते हैं कि कुछ चीज बाहर गई। लेकिन यहां तो लगता है कि कुछ चीज अंदर ही आई। आखिर हुआ क्या?
वजन पदार्थ का है, लेकिन तुम पदार्थ नहीं हो। अगर वजनशून्यता की इस विधि का प्रयोग करना है तो तुम्हें सोचना चाहिए; सोचना ही नहीं, भाव करना चाहिए कि तुम्हारा शरीर वजनशून्य हो गया है। अगर तुम भाव करते ही गए, भाव करते ही गए कि तुम वजनशून्य हो, तो एक क्षण आता है जब तुम अचानक अनुभव करते हो कि तुम वजनशून्य हो गए। तुम वजनशून्य हो ही, इसलिए तुम किसी समय भी अनुभव कर सकते हो। सिर्फ एक स्थिति पैदा करनी है जिसमें तुम फिर अनुभव करो कि तुम वजनशून्य हो। तुम्हें अपने को सम्मोहन मुक्त करना है।
तुम्हारा सम्मोहन क्या है? सम्मोहन यह है कि तुमने विश्वास किया है कि मैं शरीर हूं और इसलिए वजन अनुभव करते हो। अगर तुम फिर से भाव करो, विश्वास करो कि मैं शरीर नहीं हूं तो तुम वजन अनुभव नहीं करोगे। यही सम्मोहन मुक्ति है कि जब तुम वजन अनुभव नहीं करते तो तुम मन के पार चले गए।
शिव कहते हैं. ‘जब किसी बिस्तर या आसन पर हो तो अपने को वजनशून्य हो जाने दो: मनके पार।’ तब बात घट जाएगी।
मन का भी वजन है, प्रत्येक आदमी के मन का वजन है। एक समय कहां जाता था कि जितना वजनी मस्तिष्क हो उतना बुद्धिमान होता है। और आमतौर से यह बात सही’ है, लेकिन हमेशा सही नहीं है। क्योंकि कभी—कभी छोटे मस्तिष्क के भी महान व्यक्ति हुए है। और महामूर्ख मस्तिष्क भी वजनी हुए हैं। लेकिन सामान्यतया यह सच है कि जब तुम्हारे पास मन का बड़ा संयंत्र है तो तुम ज्यादा वजनी होते हो।
मन का भी वजन है। लेकिन चेतना वजनशून्य है। और इस चेतना को अनुभव करने के लिए तुम्हें वजनशून्य अनुभव करना होगा। इसलिए प्रयोग करो। चलते हुए, बैठे हुए सोए हुए प्रयोग करो। कुछ बातें। कभी कभी मुर्दों का वजन क्यों बढ़ जाता है? ज्यों ही चेतना शरीर को छोड़ती है कि शरीर असुरक्षित हो जाता है, बहुत सी चीजें उसमें प्रवेश कर जा सकती हैं। तुम्हारे कारण वे प्रवेश नहीं करती थीं। एक शव में अनेक तरंगें प्रवेश कर सकती हैं, तुममें नहीं कर सकतीं। तुम वहा थे, शरीर जीवित था, वह अनेक चीजों से बचाव कर सकता था।
यही कारण है कि तुम एक बार बीमार पड़े कि यह एक लंबा सिलसिला हो जाता है। एक के बाद दूसरी बीमारी आती चली जाती है। एक बार बीमार होकर तुम अरक्षित हो जाते हो, हमले के प्रति खुल जाते हो; प्रतिरोध जाता रहता है। तब कुछ भी प्रवेश कर सकता है। तुम्हारी उपस्थिति शरीर की रक्षा करती है। इसलिए कभी कभी मृत शरीर का वजन बढ़ सकता है। क्योंकि जिस क्षण तुम उससे हटते हो, उसमें कुछ भी प्रवेश कर सकता है।
दूसरी बात है कि जब तुम सुखी होते हो तो तुम वजनशून्य अनुभव करते हो। और दुखी होकर वजनी अनुभव करते हो। लगता है कि कुछ तुम्हें नीचे को खींच रहा है। तब गुरुत्वाकर्षण बहुत बढ़ जाता है। दुख की हालत में वजन बढ जाता है। जब तुम सुखी हो तो हलके होते हो; तुम ऐसा अनुभव करते हो। क्यों? क्योंकि जब तुम सुखी हो, जब तुम आनंद का क्षण अनुभव करते हो, तो तुम शरीर को बिलकुल भूल जाते हो। और जब उदास, दुखी, विपन्न हो तो शरीर को नहीं भूल सकते; तुम उसका भार अनुभव करते हो। वह तुम्हें नीचे खींचता है, जमीन की तरफ खींचता है, मानो तुम जमीन में गड़े हो। सुख में तुम निर्भार होते हो; शोक में, विषाद में वजनी हो जाते हो।
इसलिए गहरे ध्यान में, जब तुम अपने शरीर को बिलकुल भूल जाते हो, तुम जमीन से ऊपर हवा में उठ सकते हो। तुम्हारे साथ तुम्हारा शरीर भी ऊपर उठ सकता है। कई बार ऐसा होता है।
बोलीविया में वैज्ञानिक एक स्त्री का निरीक्षण कर रहे हैं। ध्यान करते हुए वह जमीन से चार फीट ऊपर उठ जाती है। अब तो यह वैज्ञानिक निरीक्षण की बात है। उसके अनेक फोटो और फिल्म लिए जा चुके हैं। हजारों दर्शकों के सामने वह स्त्री अचानक ऊपर उठ जाती है। उसके लिए गुरुत्वाकर्षण व्यर्थ हो जाता है। अब तक इस बात की सही व्याख्या नहीं की जा सकी है कि क्यों होता है। लेकिन वही स्त्री गैर—ध्यान की अवस्था में ऊपर नहीं उठ सकती। या अगर उसके ध्यान में बाधा हो जाए तो भी वह ऊपर से झट नीचे आ जाती है। क्या होता है?
ध्यान की गहराई में तुम अपने शरीर को बिलकुल भूल जाते हो और तादात्मय टूट जाता है। शरीर बहुत छोटी चीज है और तुम बहुत बड़े हो। तुम्हारी शक्ति अपरिसीम है। म् तुम्हारे मुकाबले में शरीर तो कुछ भी नहीं है। यह तो ऐसा ही है कि जैसे एक सम्राट ने अपने गुलाम के साथ तादात्म्य स्थापित कर लिया है। इसलिए जैसे गुलाम भीख मांगता है, वैसे ही सम्राट भी भीख मांगता है.। जैसे गुलाम रोता है, वैसे ही सम्राट भी रोता है। और जब गुलाम कहता है कि मैं ना कुछ हूं तो सम्राट भी कहता है कि मैं ना कुछ हूं। लेकिन एक बार सम्राट अपने अस्तित्व को पहचान ले, पहचान ले कि वह सम्राट है और गुलाम बस गुलाम है, सब कुछ बदल जाएगा। अचानक बदल जाएगा।
तुम वह अपरिसीम शक्ति हो जो क्षुद्र शरीर से एकात्म हो गई है। एक बार यह पहचान हो जाए, तुम अपने स्व को जान लो, तो तुम्हारी वजनशून्यता बढ़ेगी और शरीर का वजन घटेगा। तब तुम हवा में उठ सकते हो, शरीर ऊपर जा सकता है।
ऐसी अनेक घटनाएं हैं जो अभी साबित नहीं की जा सकी हैं। लेकिन वे साबित होंगी। क्योंकि जब एक स्त्री चार फीट ऊपर उठ सकती है तो फिर बाधा नहीं है, दूसरा हजार फीट ऊपर उठ सकता है। तीसरा अनंत अंतरिक्ष में पूरी तरह जा सकता है। सैद्धातिक रूप से यह कोई समस्या नहीं है। चार फीट ऊपर उठे कि चार सौ फीट कि चार हजार फीट, इससे क्या फर्क पड़ता है।
राम तथा कई अन्य के बारे में कथाएं हैं कि वे सशरीर विलीन हो गए थे। उनके मृत शरीर इस धरती पर कहीं नहीं पाए गए। मोहम्मद बिलकुल विलीन हो गए थे, सशरीर ही नहीं, अपने घोड़े के भी साथ। ये कहानियां असंभव मालूम पड़ती हैं, पौराणिक मालूम पड़ती हैं, लेकिन जरूरी नहीं है कि वे मिथक ही हों। एक बार तुम वजनशून्य शक्ति को जान जाओ तो तुम गुरुत्वाकर्षण के मालिक हो गए। तुम उसका उपयोग भी कर सकते हो, यह तुम पर निर्भर है। तुम सशरीर अंतरिक्ष में विलीन हो सकते हो।
लेकिन हमारे लिए वजनशून्यता समस्या रहेगी। सिद्धासन की विधि, जिस में बुद्ध बैठते हैं, वजनशून्य होने की सर्वोत्तम विधि है। जमीन पर बैठो, किसी कुर्सी या अन्य आसन पर नहीं। मात्र जमीन पर बैठो। अच्छा हो कि उस पर सीमेंट या कोई और कृत्रिमता नहीं हो। जमीन पर बैठो कि तुम प्रकृति के निकटतम रहो। और अच्छा हो कि तुम नंगे बैठो, जमीन पर नंगे बैठो बुद्धासन में, सिद्धासन में।
वजनशून्य होने के लिए सिद्धासन सर्वश्रेष्ठ आसन है। क्यों? क्योंकि जब तुम्हारा शरीर इधर—उधर झुका होता है तो तुम ज्यादा वजन अनुभव करते हो। तब तुम्हारे शरीर को गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित होने के लिए ज्यादा क्षेत्र है। यदि मैं इस कुर्सी पर बैठा हूं तो मेरे शरीर का बड़ा क्षेत्र गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित होता है। जब तुम खड़े हो तो प्रभाव— क्षेत्र कम हो जाता है। लेकिन बहुत देर तक खड़ा नहीं रहा जा सकता। महावीर सदा खड़े—खड़े ध्यान करते थे, क्योंकि उस हालत में शरीर गुरुत्वाकर्षण का न्यूनतम क्षेत्र घेरता है। तुम्हारे पैर भर जमीन को छूते हैं। जब तुम पांव पर खड़े हो तो गुरुत्वाकर्षण तुम पर न्यूनतम प्रभाव करता है। और गुरुत्वाकर्षण ही वजन है।
पांवों और हाथों को बांधकर सिद्धासन में बैठना ज्यादा कारगर होता है, क्योंकि तब तुम्हारी आंतरिक विद्युत एक वर्तुल बन जाती है। रीढ़ सीधी रखो। अब तुम समझ सकते हो कि सीधी रीढ़ रखने पर इतना जोर क्यों दिया जाता है। क्योंकि सीधी रीढ़ से कम से कम जगह घेरी जाती है। तब गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव कम रहता है। आंखें बंद रखते हुए अपने को पूरी तरह संतुलित कर लो, अपने को केंद्रित कर लो। पहले दाईं ओर झुककर गुरुत्वाकर्षण का अनुभव करो, फिर बाई और झुककर गुरुत्वाकर्षण का अनुभव करो। आगे को झुककर भी गुरूत्वाकर्षण का अनुभव करो। तब उस केंद्र को खोजो जहां गुरुत्वाकर्षण या वजन कम से कम अनुभव होता है। और उस स्थिति में थिर हो जाओ।
और तब शरीर को भूल जाओ और भाव करो कि तुम वज़न नहीं हो, तुम वज़न शून्य हो। फिर इस वजनशून्यता का अनुभव करते रहो। अचानक तुम वजनशून्य हो जाते हो, अचानक तुम शरीर नहीं रह जाते हो, अचानक तुम शरीरशून्यता के एक दूसरे ही संसार में होते हो।
वजनशून्यता शरीरशून्यता है। तब तुम मन का भी अतिक्रमण कर जाते हो। मन भी शरीर का हिस्सा है, पदार्थ का हिस्सा है। पदार्थ का वजन होता है, तुम्हारा कोई वजन नहीं है। इस विधि का यही आधार है।
किसी भी एक विधि को प्रयोग में लाओ। लेकिन कुछ दिनों तक उसमें लगे रहो, ताकि तुम्हें पता हो कि वह तुम्हारे लिए कारगर है या नहीं।
तंत्र सूत्र
ओशो
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