पांचवां चक्र है विशुद्ध; यह कंठ के पास है। और पांचवां शरीर है
स्पिरिचुअल बॉडी—आत्म शरीर है। विशुद्ध उसका चक्र है। वह उस शरीर से
संबंधित है। अब तक जो चार शरीर की मैंने बात कहीं। और चार चक्रों की, वे
द्वैत में बंटे हुए थे। पांचवें शरीर से द्वैत समाप्त हो जाता है।
जैसा मैंने कल कहा था कि चार शरीर तक मेल (पुरूष) और फीमेल
(स्त्री) का फर्क होता है। बॉडीज़ (शरीरों) में; पांचवें शरीर में मेल और
फीमेल का, स्त्री और पुरूष का फर्क समाप्त हो जाता है। अगर बहुत गौर से
देखें तो सब द्वैत स्त्री और पुरूष का है—द्वैत मात्र, डुआलिटि मात्र
स्त्री-पुरूष के है। और जिस जगह से स्त्री पुरूष का फासला खत्म होता है।
उसी जगह से सब द्वैत खत्म हो जाता है।
पांचवां शरीर अद्वैत है। उसकी दो संभावनाएं नहीं है। उसकी एक ही संभावना है।
इसलिए चौथे के बाद साधक के लिए बड़ा काम नहीं है, सारा काम चौथे
तक है। चौथे के बाद बड़ा काम नहीं है। बस इस अर्थों में विपरीत कुछ भी नहीं
है वहां। वहां प्रवेश ही करना है। और चौथे तक पहुंचते-पहुंचते इतनी
सामर्थ्य इकट्ठी हो जाती है कि पांचवें में सहज प्रवेश हो जाता है। लेकिन
प्रवेश न हो और हो, तो क्या फर्क होगा? पांचवें शरीर में कोई द्वैत नहीं
है। लेकिन कोई साधक जो…..
एक व्यक्ति अभी प्रवेश नहीं किया है उसमें क्या फर्क है, और जो
प्रवेश कर गया है उसमें….इनमें क्या फर्क होगा। वह फर्क इतना होगा कि जो
पांचवें शरीर में प्रवेश करेगा उसकी समस्त तरह की मूर्छा टूट जायेगी; वह
रात भी नहीं सो सकेगा। सोयेगा, शरीर ही सोया रहेगा; भीतर उसके कोई सतत
जागता रहेगा। अगर उसने करवट भी बदली है तो वह जानता है, नहीं बदली है तो
जानता है; अगर उसने कंबल ओड़ा है तो जानता है—नहीं ओड़ा है तो जानता है।
उसका जनना निद्रा में भी शिथिल नहीं होगा; वह चौबीस घंटे जागरूक होगा।
जिनका नहीं पांचवें शरीर में प्रवेश हुआ, उसकी स्थिति बिलकुल उल्टी होगी;
वे नींद में तो सोये होंगे ही, जिसको हम जागना कहते है, उसमें भी एक पर्त
उनकी सोयी ही रहेगी।
आदमी की मूर्छा और यांत्रिका—
काम करते हुए दिखाई पड़ते है लोग। आप अपने घर आते है, कार का
घुमाना बायें और आपके घर के सामने आकर ब्रेक का लग जाना, तो आप यह मत समझ
लेना कि आप सब होश में कर रहे है। यह सब बिलकुल आदतन, बेहोशी में होता है।
कभी किन्हीं क्षणों में हम होश में आते है, बहुत खतरे के क्षणों में—जब
खतरा इतना होता है कि नींद से नहीं चल सकता..कि एक आदमी आपकी छाती पर छुरी
रख दे, तब एक सेकेंड को होश में आते है। एक सेकेंड को वह छुरे की धार आपको
पांचवें शरीर तक पहुंचा देती है। लेकिन बस, ऐसे दो चार क्षण जिंदगी में
होते हैं, अन्यथा साधारणत: हम सोये-सोये ही जीते है।
न तो पति अपनी पत्नी का चेहरा देखा है, ठीक से कि अगर अभी आँख
बंद करके सोचे तो ख्याल कर पाये। नहीं कर पायेंगे—रेखाएं,थोड़ी देर में ही
इधर-उधर हट जायेगी। और पक्का नहीं हो सकता की यह मेरी पत्नी का चेहरा
है। जिसको तीस साल से मैंने देखा है। देखा ही नहीं है कभी; क्योंकि देखने
के लिए भीतर कोई जागा हुआ आदमी होना चाहिए।
सोया हुआ आदमी, दिखाई पड़ रहा है कि देख रहा है, लेकिन वह देख
नहीं रहा है। उसके भीतर तो नींद चल रही है। और सपने भी चल रहे है।
आप क्रोध करते है और पीछे कहते है, कि पता नहीं कैसे हो गया; मैं
तो नहीं करना चाहता था। जैसे ही कोई और कर गया हो। आप कहते है कि यह मुंह
से मेरे गाली निकल गयी, माफ करना, मैं तो नहीं देना चाहता था, कोई जबान
खिसक गई होगी। आपने ही गाली दी, आप ही कहते है कि मैं नहीं देना चाहता था।
हत्यारे है, जो कहते है कि पता नहीं—इन्सपाइट आफ अस, हमारे बावजूद हत्या
हो गयी; हम तो करना ही नहीं चाहते थे, बस ऐसा ही गया।
तो हम आटोमैटिक है, यंत्रवत चल रहे है। जो नहीं बोलना है वह बोलते
है जो नहीं करना है वह करते है। सांझ को तय करते है: सुबह चार बजे
उठेंगे—कसम खा लेते है। सुबह हम खूद ही कहते है, कि क्या रखा है उठने में
अभी और थोड़ा सो लो, कल देखी जायेगी। सुबह छ: बजे उठ कर खुद ही पछताते हो,
कि ये तो बड़ी भारी गलती हो गई। ऐसा कल नहीं करेंगे, अब कल से तो उठना ही
है। वह जो कसम खाई थी उसे तो निभाना ही है।
आश्चर्य की बात है, शाम को जिस आदमी ने तय किया था। सुबह चार बजे
वही आदमी बदल कैसे गया? फिर सुबह चार बजे तय क्या था तो फिर छ: बजे कैसे
बदल गया। फिर सुबह छ: बजे जो तय किया है, फिर सांझ तक बदल जाता है। सांझ
बहुत देर है, उस बीच पच्चीस दफे मन बदल जाता है।
न, ये निर्णय, ये ख्याल हमारी नींद में आये हुए ख्याल है सपनों
की तरह। बहुत बबूलों की तरह बनते है और टूट जाते है। कोई जागा हुआ आदमी
पीछे नहीं है। कोई होश से भरा हुआ आदमी पीछे नहीं है।
तो नींद आत्मिक शरीर में प्रवेश के पहले की सहज अवस्था है।
नींद; सोया हुआ होना; और आत्म शरीर में प्रवेश के बाद की सहज अवस्था है,
जागृति। इसलिए चौथे शरीर के बाद हम व्यक्ति को बुद्ध कह सकते है। चौथे
शरीर के बाद आदमी को जागना आ गया। अब वह जागा हुआ आदमी बुद्ध हो गया। बुद्ध
का अर्थ जिसके अंदर अब कोई भी हिस्सा सोया हुआ न हो। और हम ऐसे है जिसका
कोई भी हिस्सा अंदर का जगा हुआ नहीं है।
बुद्ध गौतम सिद्धार्थ का नाम नहीं है। पांचवें शरीर की उपलब्धि
के बाद दिया गया विशेषण है: गौतम दि बुद्ध; गौतम जो जाग क्या। यह मतलब है
उसका। नाम तो गौतम ही है, लेकिन वह गौतम सोये हुए आदमी का नाम था। इसलिए
फिर धीरे-धीरे उसको गिरा दिया और बुद्ध ही रह गया।
ओशो
जिन खोजा तीन पाइयाँ
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