ध्वनि का उच्चारण एक सूक्ष्म विज्ञान है। पहले तुम्हें उसका उच्चारण जोर से करना है, बाहर-बाहर करना है; ताकि दूसरे सुन सकें। जोर से उच्चार शुरू करना अच्छा है। क्यों? क्योंकि जब तुम जोर से उच्चार करते हो तो तुम भी उसे साफ-साफ सुनते हो। जब तुम कुछ कहते हो तो दूसरों से कहते हो; वह तुम्हारी आदत बन गई है। जब तुम बात करते हो तो दूसरों से करते हो। इसलिए तुम अपने को भी तभी सुनते हो जब दूसरों से बात करते हो। तो एक स्वाभाविक आदत से आरंभ करना अच्छा है।
ओम ध्वनि का उच्चार करो, और फिर धीरे धीरे उस ध्वनि के साथ लयबद्ध अनुभव करो। जब ओम का उच्चार करो तो उससे भर जाओ। और सब कुछ भूलकर ओम ही बन जाओ, ध्वनि ही बन जाओ। और ध्वनि बन जाना बहुत आसान है, क्योंकि ध्वनि तुम्हारे शरीर में, तुम्हारे मन में, तुम्हारे समूचे स्नायु संस्थान में गूंजने लग सकती है। ओम की अनुगूंज को अनुभव करो। उसका उच्चार करो और अनुभव करो कि तुम्हारा सारा शरीर उससे भर गया है, शरीर का प्रत्येक कोश उससे गंज उठा है।
उच्चार करना लयबद्ध होना भी है। ध्वनि के साथ लयबद्ध होओ; ध्वनि ही बन जाओ। और तब तुम अपने और ध्वनि के बीच गहरी लयबद्धता अनुभव करोगे; तब तुममें उसके लिए गहरा अनुराग पैदा होगा। यह ओम की ध्वनि इतनी सुंदर और संगीतमय है! जितना ही तुम उसका उच्चार करोगे उतने ही तुम उसकी सूक्ष्म मिठास से भर जाओगे। ऐसी ध्वनियां हैं जो बहुत तीखी हैं और ऐसी ध्वनियां हैं जो बहुत मीठी हैं। ओम बहुत ही मीठी ध्वनि है और शुद्धतम ध्वनि है। उसका उच्चार करो और उससे भर जाओ।
जब तुम ओम के साथ लयबद्ध अनुभव करने लगोगे तो तुम उसका जोर से उच्चार करना छोड़ सकते हो। फिर ओंठों को बंद कर लो और भीतर ही भीतर उच्चार करो। लेकिन यह भीतरी उच्चार पहले जोर से करना है। शुरू में यह भीतरी उच्चार भी जोर से करना है, ताकि ध्वनि तुम्हारे समूचे शरीर में फैल जाए, उसके हरेक हिस्से को, एक-एक कोशिका को छुए। उससे तुम नवजीवन प्राप्त करोगे, वह तुम्हें फिर से युवा और शक्तिशाली बना देगा।
तुम्हारा शरीर भी एक वाद्य-यंत्र है, उसे लयबद्धता की जरूरत है। जब शरीर की लयबद्धता टूटती है तो तुम अड़चन में पड़ते हो। और यही कारण है कि जब तुम संगीत सुनते हो तो तुम्हें अच्छा लगता है। तुम्हें अच्छा क्यों लगता है? संगीत थोड़े से लय ताल के अतिरिक्त क्या है? जब तुम्हारे चारों तरफ संगीत होता है तो तुम अच्छा क्यों महसूस करते हो? और शोरगुल और अराजकता के बीच तुम्हें बेचैनी क्यों लगती है? कारण यह है कि तुम स्वयं संगीतमय हो। तुम वाद्य यंत्र हो; और वह यंत्र प्रतिध्वनि करता है।
अपने भीतर ओम का उच्चार करो और तुम्हें अनुभव होगा कि तुम्हारा समूचा शरीर उसके साथ नृत्य करने लगा है। तब तुम्हें महसूस होगा कि तुम्हारा सारा शरीर उसमें स्नान कर रहा है; उसका पोर-पोर इस स्नान से शुद्ध हो रहा है। लेकिन जैसे जैसे इसकी प्रतीति गहरी हो, जैसे जैसे यह ध्वनि ज्यादा से ज्यादा तुम्हारे भीतर प्रवेश करे, वैसे वैसे उच्चार को धीमा करते जाओ। क्योंकि ध्वनि जितनी धीमी होगी, वह उतनी ही गहराई प्राप्त करेगी। वह होम्योपैथी की खुराक जैसी है; जितनी छोटी खुराक उतनी ही गहरी उसकी पैठ। गहरे जाने के लिए तुम्हें सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होता जाना होगा।
भोंडे और कर्कश स्वर तुम्हारे हृदय में नहीं उतर सकते, वे तुम्हारे कानों में तो प्रवेश करेंगे, हृदय में नहीं। हृदय का मार्ग इतना संकरा है और हृदय स्वयं इतना कोमल है कि सिर्फ बहुत धीमे, लयपूर्ण और सूक्ष्म स्वर ही उसमें प्रवेश पा सकते हैं। और जब तक कोई ध्वनि तुम्हारे हृदय तक न जाए तब तक मंत्र पूरा नहीं होता है। मंत्र तभी पूरा होता है जब उसकी ध्वनि तुम्हारे हृदय में प्रवेश करे, तुम्हारे अस्तित्व के गहनतम, केंद्रीय मर्म को स्पर्श करे। इसलिए उच्चार को धीमा और धीमा करते चलो।
और इन ध्वनियों को धीमा और सूक्ष्म बनाने के और भी कारण हैं। ध्वनि जितनी सूक्ष्म होगी उतने ही तीव्र बोध की जरूरत होगी उसे अनुभव करने के लिए। ध्वनि जितनी भोंडी होगी उतने ही कम बोध की जरूरत होगी। वह ध्वनि तुम पर चोट करने के लिए काफी है; तुम्हें उसका बोध होगा ही। लेकिन वह हिंसात्मक है। अगर ध्वनि संगीतपूर्ण, लयपूर्ण और सूक्ष्म हो तो तुम्हें उसे अपने भीतर सुनना होगा। और उसे सुनने के लिए तुम्हें बहुत सजग, बहुत सावधान होना होगा। अगर तुम सावधान न रहे तो तुम सो जा सकते हो। और तब तुम पूरी बात ही चूक जाओगे।
किसी मंत्र या जप के साथ, ध्वनि के प्रयोग के साथ यही कठिनाई है कि वह नींद पैदा करता है। वह एक सूक्ष्म ट्रैंक्वेलाइजर है, नींद की दवा है। अगर तुम किसी ध्वनि को निरंतर दोहराते रहे और उसके प्रति सजग न रहे तो तुम सो जाओगे। क्योंकि तब यांत्रिक पुनरुक्ति हो जाती है। तब ओम-ओम यांत्रिक हो जाता है। और पुनरुक्ति ऊब पैदा करती है। नींद के लिए ऊब बुनियादी तौर से जरूरी है; तुम ऊब के बिना नहीं सो सकते। अगर तुम उत्तेजित हो तो तुम्हें नींद नहीं आएगी।
तंत्र सूत्र
ओशो
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