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Monday, October 5, 2015

निर्भयता

जितने लोग आक्रामक हैं, एग्रेसिव हैं, सब भीतर से भय से भरे हुए हैं। भयभीत आदमी हमेशा आक्रामण होगा, क्योंकि वह डरता है। इसके पहले कि कोई मुझ पर हमला करे, मैं हमला कर दूं। पहला मौका मुझे मिल जाये। हमला हो जाने के बाद, कहा नहीं जा सकता है, क्या हो? इसलिए भयभीत आदमी हमेशा तलवार लिए हुए है। वह कवच बांधे हुए मिलेगा। कवच बहुत तरह के हो सकते हैं। एक आदमी कह सकता है कि मैं तो भगवान में विश्वास करता हूं। मुझे कोई डर नहीं है। मैं तो भगवान का सहारा मांगता हूं। यह भी कवच बनाया है भगवान का, तलवार बना रहा है भगवान को। भगवान की तलवारें मत डालो। भगवान कोई लोहा नहीं है कि तलवारें ढाली जा सकें और कवच बनाया जा सके।

वह आदमी कहता है, मुझे कोई डर नहीं है। रोज मैं हनुमान चालीसा पढ़ता हूं। वह हनुमान चालीसा को ढाल बना रहा है। और भीतर भयभीत है। और भयभीत आदमी कितना ही हनुमान चालीसा पढ़े.. तो हनुमान फिर पूछते होंगे कि कई दिनों से यह पागल क्या कर रहा है? भयभीत आदमी कितनी ही कवच उपलब्ध कर लें, मृत नहीं मिटता है। निर्भय भी भय करने लगेगा और दिखाने की कोशिश करेगा कि मैं किसी से भयभीत नहीं हूं। जो भी आदमी दिखाने की कोशिश करे कि मैं किसी से भयभीत नहीं हूं जान लेना कि दिखाने की कोशिश में भीतर भय उपस्थित है। अभय बिलकुल और बात है।

अभय का मतलब है, भय का विसर्जित हो जाना।

अभय का मतलब, भय का विसर्जन। निर्भय नहीं हो जाना है। अभय का मतलब है, भय का विसर्जित हो जाना। सिर्फ अभय को जो उपलब्ध हुआ हो, वही व्यक्ति अहिंसक हो सकता है। निर्भय व्यक्ति, अहिंसक नहीं हो सकता। भीतर भय काम करता ही रहेगा। और भय सदा हिंसा की मांग करता रहेगा। भय सदा सुरक्षा चाहेगा। सुरक्षा के लिए हिंसा का आयोजन करना पड़ेगा।

आज तक का पूरा समाज हमारा हिंसक समाज रहा है।

अच्छे लोग भी हिंसक रहे हैं, बुरे लोग भी हिंसक रहे हैं।

इस धर्म के मानने वाले भी हिंसक हैं, उस धर्म के मानने वाले भी हिंसक हैं। इस देश के, उस देश के; सारी पृथ्वी हिंसक रही है।

सारी पृथ्वी का पूरा इतिहास हिंसा और युद्धों का इतिहास है।

नाम हम कुछ भी देते हों, नाम गौण है। जैसे कोई आदमी अपने कोट को खूंटी पर टांग दे। खूंटी गौण है, असली सवाल कोट है। यह खूंटी न मिलेगी, दूसरी खूंटी पर टागेगा। दूसरी न मिलेगी, तीसरी खूंटी पर टांगेगा। खूंटी से कोई मतलब नहीं है।

हजार खूंटियों पर आदमी अपनी हिंसा टांगता रहा है। धर्म की खूंटी पर भी हिंसा टांग देता है, आश्रर्य की बात है। हिन्दू मुसलमान लड़ पड़ते हैं, हिंसा हो जाती है। धर्म की खूंटी पर युद्ध टांगता है। धर्म की खूंटी पर युद्ध टैग सकता है। भाषा की खूंटी पर युद्ध याता रहता है। राष्ट्रों के चुनाव पर युद्ध टैग जायेगा।

कोई भी बहाना चाहिए आदमी को लड़ने का।

आदमी को लड़ने का बहाना चाहिए, क्योंकि आदमी भय से भरा है।

और जब तक आदमी भय से भरा है, तब तक वह लड़ने से मुक्त नहीं हो सकता। लड़ना ही पड़ेगा। लड़ने से वह अपनी हिम्मत बढ़ाता है।
 

कभी देखा है, अंधेरी गली में कोई जाता हो तो जोर से गीत गाने लगता है! समझ मत रखना कि कोई गीत गा रहा है अन्दर। सिर्फ गीत गाकर भुला रहा है अपने भय को। सीटी बजाने लगाता है आदमी अंधेरे में! ऐसा लगता है कि सीटी से बहुत प्रेम है। सीटी बजाकर भुला रहा है, भीतर के भय को। हजार उपाय हम उपयोग करते हैं भीतर के भय को भुलाने के, लेकिन भीतर का भय मिटता नहीं।

सम्भोग से समाधी की ओर 

ओशो 

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