प्रश्न: ओशो आपने कहा था कि डीप ब्रीदिंग लेने से आक्सीजन और
कार्बन डाइआक्साइड का अनुपात बदल जाता है तो इस अनुपात के बदलने का
कुंडलिनी जागरण के साथ कैसे संबंध है?
बहुत संबंध है। एक तो हमारे भीतर जीवन और मृत्यु दोनों की
संभावनाएं हैं। उसमें जो आक्सीजन है वह हमारे जीवन की संभावना है, और जो
कार्बन है वह हमारी मृत्यु की संभावना है। जब आक्सीजन क्षीण होते होते समाप्त हो जाएगी और सिर्फ कार्बन रह जाएगी तुम्हारे
भीतर, तो तुम लाश हो जाओगे। ऐसे ही, जैसे कि हम एक लकड़ी को जलाते हैं। जब
तक आक्सीजन मिलती है, जलती चली जाती है। आग होती है, जीवन होता है। फिर
आक्सीजन चुक गई, आग चुक गई, फिर कोयला, कार्बन पड़ा रह जाता है पीछे। वह मरी
हुई आग है। वह जो कोयला पड़ा है पीछे, वह मरी हुई आग है।
तो हमारे भीतर दोनों का काम चल रहा है पूरे समय। भीतर हमारे जितनी
ज्यादा कार्बन होगी, उतनी ही लिथार्जी होगी, उतनी सुस्ती होगी। इसलिए दिन
में नींद लेना मुश्किल पड़ता है, रात में आसान पड़ता है; क्योंकि रात में
आक्सीजन की मात्रा कम हो गई है और कार्बन की मात्रा बढ़ गई है। इसलिए रात
में हम सरलता से सो जाते हैं और दिन में सोना इतना सरल नहीं पड़ता, क्योंकि
आक्सीजन बहुत मात्रा में है। आक्सीजन हवा में बहुत मात्रा में है। सूरज के आ
जाने के बाद आक्सीजन का अनुपात पूरी हवा में बदल जाता है। सूरज के हटते ही
से आक्सीजन का अनुपात नीचे गिर जाता है।
इसलिए अंधेरा जो है, रात्रि जो है, वह प्रतीक बन गया है सुस्ती का,
आलस्य का, तमस का। सूर्य जो है वह तेजस का प्रतीक बन गया है, क्योंकि उसके
साथ ही जीवन आता है। रात सब कुम्हला जाता है—फूल बंद हो जाते, पत्ते झुक
जाते, आदमी सो जाता—सारी पृथ्वी एक अर्थों में टेम्प्रेरी डेथ में चली जाती
है, एक अस्थायी मृत्यु में समा जाती है। सुबह होते ही से फिर फूल खिलने
लगते, फिर पत्ते जीवित हो जाते, फिर वृक्ष हिलने लगते, फिर आदमी जगता,
पक्षी गीत गाते— सब तरफ फिर पृथ्वी जागती है, वह जो टेम्प्रेरी डेथ थी, वह
जो अस्थायी मृत्यु थी रात के आठ—दस घंटे की, वह गई; अब जीवन फिर लौट आया
है।
तो तुम्हारे भीतर भी ऐसी घटना घटती है कि जब तुम्हारे भीतर आक्सीजन की
मात्रा तीव्रता से बढ़ती है, तो तुम्हारे भीतर जो सोई हुई शक्तियां हैं वे
जगती हैं, क्योंकि सोई हुई शक्तियां को जगने के लिए सदा ही आक्सीजन
चाहिए किसी भी तरह की सोई हुई शक्तियों को जगने के लिए। अब एक आदमी मर रहा
है, मरने के बिलकुल करीब है, हम उसकी नाक में आक्सीजन का सिलिंडर लगाए हुए
हैं। उसे हम दस बीस घंटे जिंदा रख लेंगे। उसकी मृत्यु घट गई होती दस बीस
घंटे पहले, लेकिन हम उसे दस बीस घंटे खींच लेंगे। वर्ष, दो वर्ष भी खींच
सकते हैं, क्योंकि उसकी बिलकुल क्षीण होती शक्तियों को भी हम आक्सीजन दे
रहे हैं तो वे सो नहीं पा रहीं। उसकी सब शक्तियां मौत के करीब जा रही हैं,
डूब रही हैं, डूब रही हैं, लेकिन हम फिर भी आक्सीजन दिए जा रहे हैं।
तो आज यूरोप और अमेरिका में तो हजारों आदमी आक्सीजन पर अटके हुए हैं। और
सारे अमेरिका और यूरोप में एक बड़े से बड़ा सवाल है अथनासिया का—कि आदमी को
स्वेच्छा—मरण का हक होना चाहिए। क्योंकि डाक्टर अब उसको लटका सकता है बहुत
दिन तक। बड़ा भारी सवाल है, क्योंकि अब डाक्टर चाहे तो कितने ही दिन तक एक
आदमी को न मरने दे। अच्छा, डाक्टर की तकलीफ यह है कि अगर वह उसे जानकर मरने
दे तो वह हत्या का आरोपण उस पर हो सकता है; वह मर्डर हो गया। यानी वह अभी
आक्सीजन देकर इस अस्सी साल के मरते हुए बूढ़े को बचा सकता है। अगर न दे, तो
यह हत्या के बराबर जुर्म है। तो वह तो इसे देगा; वह इसे आक्सीजन देकर लटका
देगा। अब उसकी जो सोती हुई शक्तियां हैं वे कार्बन की कमी के कारण नहीं सो
पाएंगी। समझ रहे हो न मेरा मतलब?
अधिक प्राण से अधिक जागृति:
ठीक इससे उलटा प्राणायाम और भस्त्रिका और जिसे मैं श्वास की तीव्र
प्रक्रिया कह रहा हूं उसमें होता है। तुम्हारे भीतर तुम इतनी ज्यादा
जीवनवायु ले जाते हो, प्राणवायु ले जाते हो कि तुम्हारे भीतर जो सोए हुए
तत्व हैं वह तो जगने की क्षमता उनकी बढ़ जाती है, तत्काल वे जगने शुरू हो
जाते हैं; और तुम्हारे भीतर जो सोने की प्रवृत्ति है, भीतर वह भी टूटती है।
अधिक कार्बन से अधिक मूर्च्छा:
तो हमारे भीतर सोने की संभावना बढ़ती है कार्बन के बढ़ने से। इसलिए
जिन जिन चीजों से हमारे भीतर कार्बन बढ़ती है, वे सभी चीजें हमारे भीतर सोई
हुई शक्तियों को और सुलाती हैं। उतनी हमारी मूर्च्छा बढ़ती चली जाती है।
जैसे दुनिया में जितनी संख्या आदमी की बढ़ रही है उतनी मूर्च्छा का तत्व
ज्यादा होता चला जाएगा; क्योंकि जमीन पर आक्सीजन कम और आदमी ज्यादा होते
चले जाएंगे। कल एक ऐसी हालत हो सकती है कि हमारे भीतर जागने की क्षमता कम
से कम रह जाए। इसलिए तुम सुबह ताजा अनुभव करते हो; एक जंगल में जाते हो,
ताजा अनुभव करते हो, समुद्र के तट पर तुम ताजा अनुभव करते हो। बाजार की भीड़
में सुस्ती छा जाती है, सब तमस हो जाता है; वहां बहुत कार्बन है।
जिन खोजा तिन पाइयाँ
ओशो
No comments:
Post a Comment