तुम्हारा मन कंप्यूटर जैसा है। उसमें सूचनाएं भर दी गई हैं, मूल्यांकन
भर दिए गए हैं। तुम कुछ मूढ़ धारणाओं से, परंपराओं से बंधे हो; तुम उन्हें
आसानी से नहीं हटा सकते। यही कारण है कि धर्म महज शब्द रह गया है। बहुत
थोड़े से लोग धार्मिक हो सकते हैं; क्योंकि बहुत थोड़े से लोग अपने संस्कारों
से बगावत कर सकते हैं। सिर्फ क्रांतिकारी चित्त ही धार्मिक हो सकता है—ऐसा
चित्त जो किसी चीज को सीधे देख सके, उसकी तथ्यता को देख सके और तब निर्णय
करे।
लेकिन अपने ढंग ढांचे को महसूस करो, उसे समझो। यह कठिन नहीं है। पहली बात कि अगर तुम आत अनुभव करते हो तो तुम बौद्धिक ढंग के व्यक्ति हो। और अगर तुम निश्चित अनुभव करते हो, श्रद्धावान हो, तो दूसरी विधियों का प्रयोग करो, जो बुनियाद में श्रद्धा की मांग करती हो। और याद रहे, कभी भी दोनों तरह की विधियों का प्रयोग मत करो। उससे तुम और भी भ्रांत हो जाओगे। कुछ भी गलत नहीं है; दोनों तरह की विधियां सही हैं। रामकृष्ण भी सही हैं; बुद्ध भी सही हैं।
स्मरण रहे, इस संसार में अनेक रास्ते सत्य तक जाते हैं। किसी एक मार्ग को एकाधिकार नहीं है। यहां तक कि परस्पर विरोधी मार्ग, सर्वथा विरोधी मार्ग भी एक ही मंजिल पर पहुंचते हैं। कोई एक मार्ग नहीं है। अगर तुम गहरे जाओगे और ज्ञान को उपलब्ध करोगे तो तुम्हें पता चलेगा कि उतने ही मार्ग हैं जितने यात्री हैं। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को उस बिंदु से यात्रा शुरू करनी है जहां वह खड़ा है। कहीं कोई बना बनाया मार्ग नहीं है। असल में तुम स्वयं चलकर अपना मार्ग निर्मित करते हो। कहीं कोई बना बनाया मार्ग नहीं है; कहीं कोई राजपथ नहीं है।
लेकिन प्रत्येक धर्म लोगों पर इस धारणा को लादने की चेष्टा करता है कि रास्ता तैयार है; तुम्हें सिर्फ चलने की जरूरत है। यह गलत बात है। आंतरिक यात्रा जमीन पर चलने की बजाय आकाश में उड़ने जैसी ज्यादा है। पक्षी उड़ता है; आकाश में कहीं पदचिह्न नहीं छूटते। आकाश शून्य का शून्य बना रहता है। पक्षी उड़ता है; लेकिन कोई पदचिह्न नहीं छूटते, जिनका अनुसरण दूसरे पक्षी कर सकें। आकाश सदा रिक्त है, खाली है। दूसरे पक्षी को अपना मार्ग आप बनाना होगा।
तंत्र सूत्र
ओशो
लेकिन अपने ढंग ढांचे को महसूस करो, उसे समझो। यह कठिन नहीं है। पहली बात कि अगर तुम आत अनुभव करते हो तो तुम बौद्धिक ढंग के व्यक्ति हो। और अगर तुम निश्चित अनुभव करते हो, श्रद्धावान हो, तो दूसरी विधियों का प्रयोग करो, जो बुनियाद में श्रद्धा की मांग करती हो। और याद रहे, कभी भी दोनों तरह की विधियों का प्रयोग मत करो। उससे तुम और भी भ्रांत हो जाओगे। कुछ भी गलत नहीं है; दोनों तरह की विधियां सही हैं। रामकृष्ण भी सही हैं; बुद्ध भी सही हैं।
स्मरण रहे, इस संसार में अनेक रास्ते सत्य तक जाते हैं। किसी एक मार्ग को एकाधिकार नहीं है। यहां तक कि परस्पर विरोधी मार्ग, सर्वथा विरोधी मार्ग भी एक ही मंजिल पर पहुंचते हैं। कोई एक मार्ग नहीं है। अगर तुम गहरे जाओगे और ज्ञान को उपलब्ध करोगे तो तुम्हें पता चलेगा कि उतने ही मार्ग हैं जितने यात्री हैं। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को उस बिंदु से यात्रा शुरू करनी है जहां वह खड़ा है। कहीं कोई बना बनाया मार्ग नहीं है। असल में तुम स्वयं चलकर अपना मार्ग निर्मित करते हो। कहीं कोई बना बनाया मार्ग नहीं है; कहीं कोई राजपथ नहीं है।
लेकिन प्रत्येक धर्म लोगों पर इस धारणा को लादने की चेष्टा करता है कि रास्ता तैयार है; तुम्हें सिर्फ चलने की जरूरत है। यह गलत बात है। आंतरिक यात्रा जमीन पर चलने की बजाय आकाश में उड़ने जैसी ज्यादा है। पक्षी उड़ता है; आकाश में कहीं पदचिह्न नहीं छूटते। आकाश शून्य का शून्य बना रहता है। पक्षी उड़ता है; लेकिन कोई पदचिह्न नहीं छूटते, जिनका अनुसरण दूसरे पक्षी कर सकें। आकाश सदा रिक्त है, खाली है। दूसरे पक्षी को अपना मार्ग आप बनाना होगा।
तंत्र सूत्र
ओशो
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