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Tuesday, August 11, 2015

झंडा ऊंचा रहे हमारा..

अभी एक दिन मैं निकला, चौपाटी के पास से गुजर रहा था, मैंने देखा कि वहा स्कूल के बच्चे भी इकट्ठे हैं चौपाटी पर, बड़े नेता भी मौजूद हैं, और सब मिलकर गीत गा रहे हैं-झंडा ऊंचा रहे हमारा। बचकानी बुद्धि की बात है। और झंडा क्या है! एक डंडे पर कपड़ा बाधा हुआ है; धारणा जोड़ी हुई है। उस झंडे के पीछे जानें चली जाएंगी। वह झंडा नीचा हो जाए तो सैकड़ों गर्दनें कट जाएंगी! और दूसरे का झंडा ऊंचा न होने पाए, और अपना झंडा ऊंचा रहे।
 
छोटे बच्चे अपने बाप के पास खड़े हो जाते हैँ कुर्सी पर, और कहते हैं कि मैं तुमसे बड़ा हूं-यह झंडा ऊंचा रहे हमारा..। बाप मुस्कुराता है, अगर समझदार है। नहीं तो वह भी चोट खाता है। वह भी खड़ा हो सकता है कि नहीं, मैं तुमसे बड़ा हूं।
 
यह मैं बड़ा हूं यह खोज ही बचकानी है। मगर बड़े इस बचकानी खोज के लिए तर्क देते हैं। वे ढंग से बताते हैं। वे ऐसा नहीं कहते कि मैं बड़ा हूं। ऐसा कहना बहुत छोटापन मालूम पड़ेगा। वे कहते हैं, मेरा राष्ट्र महान है। लेकिन मेरा राष्ट्र महान क्यों है? क्योंकि मैं इस राष्ट्र में पैदा हुआ हूं। मेरी वजह से। मैं अगर पाकिस्तान में पैदा होता, तो पाकिस्तान महान होता। और मैं अगर अफगानिस्तान में पैदा होता, तो अफगानिस्तान महान होता। जहां मैं हूं वही राष्ट्र महान होता है। मेरा धर्म महान है। मेरा शास्त्र, मेरी गीता, मेरे पुराण, मेरे तीर्थंकर, मेरे भगवान, मेरे अवतार, वे बड़े हैं। उनके पीछे आड़ में हम बड़े हो जाते हैं। और यह पागलपन सारी दुनिया में सभी के ऊपर है।
 
ओशो 
 
 

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