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Tuesday, August 11, 2015

आभा मंडल

लेश्‍या क्‍या है? ऐसा समझें कि सागर शांत है। कोई लहर नहीं है, फिर हवा का एक झोंका आजा है, लहरें उठनी शुरू हो जाती है, तरंगें उठती है। सागर डांवांडोल
हो जाता है, छाती अस्‍त वस्‍त हो जाती है। सब अराजक हो जाता है। उन लहरों का नाम लेश्‍या है। तो लेश्‍या का अर्थ हुआ चित की वृतियां।


महावीर, बुद्ध, कृष्‍ण और राम, क्राइस्‍ट के आस-पास सारी दूनिया के संतों के आस-पास हमने उनके चेहरे के प्रभा मंडल बनाया है। हमारे कितने ही भेद हो—ईसाई में,मुसलमान में, हिन्दू में,जैन में बौद्ध में-एक मामले में हमारा भेद नहीं है कि इन सभी ने जाग्रत महापुरुषों के चेहरों के आस पास प्रभा मंडल बनाया है। वह प्रभा-मंडल शुभ्र आभा प्रगट करता है।

हमारे चेहरे के आस पास सामान्‍यतया काली आभा होती है। और या फिर बीच की आभायें होती है। प्रत्‍येक आभा भीतर की अवस्‍था की खबर देती है। अगर आपके आस पास काली आभा मंडल है, आरा है, तो आपके भीतर भंयकर हिंसा, क्रोध, भंयकर कामवासना होगी। आप उस अवस्‍था में होंगे, जहां आपको खुद भी नुकसान हो तो कोई हर्ज नहीं दूसरे को नुकसान हो तो आपको आनंद मिलेगा।

आप जैसे कपड़े पहनते हे, वे भी आपके चित की लेश्‍या की खबर देते है। ढीले कपड़—कामुक आदमी एक तरह के कपड़े पहनेगा। कामवासना से हटा हुआ आदमी दूसरी तरह के कपड़े पहने गा। रंग बदल जायेंगे,कपड़े के ढंग बदल जायेंगे। कामुक आदमी चुस्‍त कपड़े पहनेगा। गैर-कामुक आदमी ढीले कपडे पहनने शुरू कर देगा। क्‍योंकि चुस्‍त कपड़ा शरीर को वासना देता है, हिंसा देता है।

सैनिक को हम ढीले कपड़े नहीं पहना सकते। ढीले कपडे पहनकर सैनिक लड़ने जायेगा तो हारकर वापस लौटेगा। साधु को चुस्‍त कपड़े पहनाना बिलकुल नासमझी की बात है। क्‍योंकि चुस्‍त कपड़े का काम नहीं साधु के लिए। इसलिए साधु निरंतर ढीले कपड़े चूनेगा। जो शरीर को छूते भर रहे, बाँधते नहीं रहे।

आपको पता है छोटी-छोटी बातें आपके जीवन को संचालित करती है; क्‍योंकि चित क्षुद्र चीजों से ही बना हुआ है। अगर आप चुस्‍त कपड़े पहने हुए हे तो आप दो-दो सीढ़ियां चढ़ने लगते है। एक साथ। अगर आप ढीले कपड़े पहने हुए है तो आपकी चाल शारी होती है। एक सीढ़ी भी आप मुश्‍किल से चढ़ते है। चुस्‍त कपड़े पहन कर आप में गति आ जाती है।

जब आप रंग चुनते है, वह भी खबर देता है आपके चित की। क्‍योंकि चुनाव अकारण नहीं है। चित चुन रहा है।
रंग चुनने का कारण यह है कि जब आपके चित में एक वृति होती है तो आपके चेहरे के आसपास एक आरा एक प्रभा मंडल निर्मित होता है। इस प्रभा मंडल के चित्रों से ये भी पता लगाया जा सकता है, आपके भीतर अब क्‍या चल रहा है। कारण क्‍या है, क्‍योंकि आपका पूरा शरीर विद्युत का एक प्रवाह है। आपको शायद ख्‍याल न हो कि पूरा शरीर वैद्युतिक यंत्र है। तो ध्‍यान रहे, जो अपराधी इतने अदालत-कानून के बाद भी अपराध करते है, उनके पास निश्‍चित ही कृष्‍ण लेश्‍या पाई जायेगी। और आप अगर डरते है अपराध करने से कि नुकसान न पहुंच जाए। और आप देख लेते है कि पुलिसवाला रास्‍ते पर खड़ा है, तो रूक जाते है लाल लाइट देखकर। कोई पुलिसवाला नहीं है-नीली लेश्‍या-कोई डर नहीं है, कोई नुकसान हो नहीं सकता है। कृष्ण लेश्या का आदमी है उसको कोई दंड नहीं रोक सकता, पाप से क्‍योंकि होगा इसकी उसे जरा भी फिक्र नहीं होती। वह खोया है अंधेरी घाटियों में। दूसरों को क्‍या होता है, उसको इससे कुछ लेना देना नहीं है, उसे रस है तो दूसरों को केवल नुकसान पहुंचाने मात्र से है।

ओशो

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