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Saturday, August 1, 2015

दुख संगृहीत करने की व्यवस्था

आप सदा यही पूछते रहते हैं कि दुख से कैसे छुटकारा हो? आपकी बातों से ऐसा लगता है कि जैसे दुख ने आपको पकड़ा है, और छुटकारा चाहिए। अगर दुख आपको पकड़े हुए है, तो फिर आप छूट न पाएंगे। फिर पकड़ ही आपके हाथ में नहीं है, दुख के हाथ में है। फिर तो आप विवश हैं, असहाय हैं। और जन्मों जन्मों से नहीं छूट पाए हैं, तो अब कैसे छूट जाइएगा?  मैं आपसे कहता हूं कि दुख ने आपको नहीं पकड़ा हुआ है, आप दुख को पकड़े हुए हैं। और अगर आप राजी हुए, तो आपको यह समझ में आ जाएगा। न केवल समझ में, बल्कि आप छोड़ कर भी अनुभव कर लेंगे कि यह छूटता है। और जब आप दुख को छोड़ने की कला में कुशल हो जाते हैं, तब आपको पता लगता है कि जो भी आप ढो रहे थे, उसके लिए आपके अतिरिक्त और कोई भी
जिम्मेवार नहीं था। और आपने जो भी भोगा है, कोई और कसूरवार नहीं है। यह आपकी मर्जी थी, आप दुख चाहते थे। जो हम चाहते हैं, वही होता है। और जो भी आप हैं, आप अपनी चाहो का फल हैं। न तो कोई परमात्मा जिम्मेवार है, न कोई भाग्य जिम्मेवार है; किसी को प्रयोजन नहीं है आपको दुखी करने के लिए।

सच तो यह है कि यह पूरा अस्तित्व आपको आनंदित करने के लिए तत्पर है। यह पूरा अस्तित्व चाहता है कि आपका जीवन एक उत्सव बन जाए। क्योंकि जब आप दुखी होते हैं, तो आप चारों तरफ दुख भी फेंकते हैं। जब आप दुखी होते हैं तो आपके घाव की दुर्गंध सारे अस्तित्व में पहुंचती है। और जब आप दुखी होते हैं तो यह अस्तित्व भी पीड़ा पाता है। यह सारा जगत आपके साथ पीड़ित होता है और आपके आनंद के साथ आनंदित होता है। कोई अस्तित्व की चाह नहीं है कि आप दुखी हों। क्योंकि यह तो अस्तित्व के लिए ही आत्मघात है। पर आप दुखी हैं और दुखी होने में आपने कुछ व्यवस्था बना रखी है। और उस व्यवस्था को जब तक आप न तोड़ दें, तब तक आप कभी भी आनंद की तरफ आख न खोल पाएंगे। आपकी व्यवस्था क्या है? मनुष्य की व्यवस्था क्या है दुख संगृहीत करने की? वह कैसे इकट्ठा करता है? यह समझ लें थोड़ा, तो शायद छोड़ने में आसानी हो।

ओशो 

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