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Saturday, August 1, 2015

आनंद की कीमत

आनंद खोजना चाहते हैं, लेकिन त्यागेंगे क्या? चुकाएंगे क्या? किस चीज से आनंद की खोज करना चाहते हैं? आपके पास क्या है, जो आप देंगे?  अगर आदमी एक कदम भी चलता है, तो उसे वह जमीन छोड़ देनी पड़ती है, जिस पर खड़ा था, तो ही आगे बढ़ पाता है। इस जगत में कोई गति नहीं है, अगर हम कुछ छोड़ने को राजी न हों। त्याग के बिना एक कदम भी नहीं उठता है। अगर हाथ में मिट्टी, कंकड़, पत्थर भरे हुए हैं और हीरे जवाहरात चाहिए तो छोड़ देने पड़ेंगे। कम से कम हाथ खाली करना पड़ेगा, व्यर्थ को हटा देना पड़ेगा, ताकि सार्थक उतर सके।

क्या है आपके पास?

आपके पास धन तो है नहीं, किसी के पास नहीं है- इसलिए मैं नहीं कहता कि आप धन छोड़ दें। जो नहीं है, उसे आप छोड़ेंगे भी कैसे? मैं आपसे नहीं कहता कि आप अपना जीवन दे दें, वह भी आपके पास नहीं है। जिसका आपको पता ही नहीं, वह आपके पास कैसे हो सकता है? और आप काँप रहे हैं प्रतिपल मृत्यु के भय से। अगर आप जीवन ही होते, तो आप मृत्यु से डरते क्यों?

जीवन की तो कोई मृत्यु नहीं होती। जीवन तो मृत्यु बन कैसे सकता है? लेकिन आप काँप रहे हैं मृत्यु से। प्रतिपल मौत आपको घेरे हुए है। सब तरह से आप अपने को बचाने की कोशिश कर रहे हैं कि मैं मिट न जाऊं, मर न जाऊं, समाप्त न हो जाऊं। जीवन भी आपके पास नहीं है। इसलिए मैं आपसे न कहूंगा कि जीवन दान कर दें। जो है ही नहीं, उसका आप दान भी कैसे करेंगे?

मैं तो आपसे वह मांगूंगा जो आपके पास है। और वह मांगूंगा जो सभी के पास है। जैसा मैंने कहा कि सभी की खोज है आनंद, ऐसी एक संपदा सभी के पास है-और वह है दुख। वह आपके पास काफी है, वह आपके पास जरूरत से ज्यादा है। जन्मों जन्मों से आपने उसके अतिरिक्त और कुछ इकट्ठा ही नहीं किया है। आपके पास राशियां लग गई हैं। गौरीशंकर छोटा पड़ जाए, आपने जो दुख के ढेर लगाए हैं, वे उससे बड़े हैं, वह भी शरमा जाए। और शायद हिलेरी और तेनसिह आपके दुख के ढेर पर चढ़ने में सफल न होंगे, वे बड़े हैं। वह जन्मों जन्मों की आपकी मेहनत है, आपने दुख के सिवाय कभी कुछ कमाया नहीं है। आप अभी भी कमा रहे हैं।
मैं आपसे चाहूंगा कि आप दुख छोड़ दें, आप दुख का त्याग कर दें। कोई आपसे दुख मांगता नहीं, मैं आपसे दुख मांगता हूं। और अगर आप दुख दे सकें, तो आनंद के लिए रास्ता निर्मित हो जाए। और अगर आप दुख छोड़ सकें, तो आपको पता लगे कि जो आप सोचते थे कि आप दुख में जी रहे हैं, वह आपकी भ्रांति थी। और दुख ने आपको नहीं पकड़ा था, आपने ही दुख को पकड़ा हुआ था। मगर एक बार छोड़े तो ही पता चले कि कौन किसको पकड़े हुए है।

ओशो

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