इन तीनों से युक्त जीव
सदगति में उत्पन्न होता है।’ ध्यान रहे, शुभ्र लेश्या के पैदा हो जाने पर
भी जन्म होगा। अच्छी गति होगी, सदगति होगी, साधु का जीवन होगा। लेकिन जन्म
होगा क्योंकि लेश्या अभी भी बाकी है, थोड़ा-सा बंधन शुभ्र का बाकी है। इसलिए
पूरा विज्ञान विकसित हुआ था प्राचीन समय में–मरते हुए आदमी के पास ध्यान
रखा जाता था कि उसकी कौन सी लेश्या मरते क्षण में है, क्योंकि जो उसकी
लेश्या मरते क्षण में है, उससे अंदाज लगाया जा सकता है कि वह कहां जायेगा,
उसकी कैसी गति होगी।
सभी लोगों के मरने पर लोग रोते नहीं थे, लेश्या देखकरअगर कृष्ण-लेश्या हो तो ही रोने का कोई अर्थ है। अगर कोई अधर्म लेश्या हो तो रोने का अर्थ है, क्योंकि यह व्यक्ति फिर दुर्गति में जा रहा है, दुख में जा रहा है, नरक में भटकने जा रहा है। तिब्बत में बारदो पूरा विज्ञान है, और पूरी कोशिश की जाती थी कि मरते क्षण में भी इसकी लेश्या बदल जाये, तो भी काम का है। मरते क्षण में भी इसकी लेश्या काली से नील हो जाए, तो भी इसके जीवन का तल बदल जायेगा। क्योंकि जिस क्षण में हम मरते हैं–जिस ढंग से, जिस अवस्था में–उसी में हम जन्मते हैं। ठीक वैसे, जैसे रात आप सोते हैं, तो जो विचार आपका अंतिम होगा, सुबह वही विचार आपका प्रथम होगा।
इसे आप प्रयोग करके देखें। बिलकुल आखिरी विचार रात सोते समय जो आपके चित्त में होगा, जिसके बाद आप खो जायेंगे अंधेरे में नींद के–सुबह जैसे ही जागेंगे, वही विचार पहला होगा। क्योंकि रातभर सब स्थगित रहा, तो जो रात अंतिम था वही पहले सुबह प्रथम बनेगा। बीच में तो गैप है, अंधकार है, सब खाली है। इसलिए हमने मृत्यु को महानिद्रा कहा है। इधर मृत्यु के आखिरी क्षण में जो लेश्या होगी, जन्म के समय में वही पहली लेश्या होगी।
इसलिए मरते समय जाना जा सकता है कि व्यक्ति कहां जा रहा है। मरते समय जाना जा सकता है कि व्यक्ति जायेगा कहीं या नहीं जायेगा और महाशून्य के साथ एक हो जायेगा। जन्म के समय भी जाना जा सकता है। ज्योतिष बहुत भटक गया, और कचरे में भटक गया। अन्यथा जन्म के समय सारी खोज इस बात की थी कि व्यक्ति किस लेश्या को लेकर जन्म रहा है। क्योंकि उसके पूरे जीवन का ढंग और ढांचा वही होगा।
ओशो
सभी लोगों के मरने पर लोग रोते नहीं थे, लेश्या देखकरअगर कृष्ण-लेश्या हो तो ही रोने का कोई अर्थ है। अगर कोई अधर्म लेश्या हो तो रोने का अर्थ है, क्योंकि यह व्यक्ति फिर दुर्गति में जा रहा है, दुख में जा रहा है, नरक में भटकने जा रहा है। तिब्बत में बारदो पूरा विज्ञान है, और पूरी कोशिश की जाती थी कि मरते क्षण में भी इसकी लेश्या बदल जाये, तो भी काम का है। मरते क्षण में भी इसकी लेश्या काली से नील हो जाए, तो भी इसके जीवन का तल बदल जायेगा। क्योंकि जिस क्षण में हम मरते हैं–जिस ढंग से, जिस अवस्था में–उसी में हम जन्मते हैं। ठीक वैसे, जैसे रात आप सोते हैं, तो जो विचार आपका अंतिम होगा, सुबह वही विचार आपका प्रथम होगा।
इसे आप प्रयोग करके देखें। बिलकुल आखिरी विचार रात सोते समय जो आपके चित्त में होगा, जिसके बाद आप खो जायेंगे अंधेरे में नींद के–सुबह जैसे ही जागेंगे, वही विचार पहला होगा। क्योंकि रातभर सब स्थगित रहा, तो जो रात अंतिम था वही पहले सुबह प्रथम बनेगा। बीच में तो गैप है, अंधकार है, सब खाली है। इसलिए हमने मृत्यु को महानिद्रा कहा है। इधर मृत्यु के आखिरी क्षण में जो लेश्या होगी, जन्म के समय में वही पहली लेश्या होगी।
इसलिए मरते समय जाना जा सकता है कि व्यक्ति कहां जा रहा है। मरते समय जाना जा सकता है कि व्यक्ति जायेगा कहीं या नहीं जायेगा और महाशून्य के साथ एक हो जायेगा। जन्म के समय भी जाना जा सकता है। ज्योतिष बहुत भटक गया, और कचरे में भटक गया। अन्यथा जन्म के समय सारी खोज इस बात की थी कि व्यक्ति किस लेश्या को लेकर जन्म रहा है। क्योंकि उसके पूरे जीवन का ढंग और ढांचा वही होगा।
ओशो
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