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Sunday, August 9, 2015

‘शक्ति की उत्कट अभीप्सा करो।’


किस शक्ति की? निश्चित ही, इस शक्ति की नहीं, जो धन से, पद से, शास्त्र से, उधार शान से मिलती है। उस शक्ति की उत्कट अभीप्सा करो, जो किसी से भी नहीं मिलती, जो तुमसे पैदा होती है। जो मिलती ही नहीं, जन्मती है। जिसको खरीद लाने का बाजार से कोई उपाय नहीं है, जो तुम्हारी आत्मा का स्फुरण है। जो तुम्हारे भीतर जन्मती है। और तुम्हारे भीतर से बाहर की तरफ जाती है। बाहर से भीतर की तरफ नहीं आती। तब आप समझ जाएंगे कि अभीप्सा और शक्ति को इसमें क्यों जोड़ा है।

अभीप्सा का अर्थ है, भीतर की आकांक्षा। और शक्ति भी भीतर ही छिपी है, वहीं से पैदा होती है। तब ही तुम वस्तुत: शक्तिशाली हो पाओगे। इसलिए हमने वर्धमान को महावीर कहा। कोई ऐसा नहीं कि कोई गामा से महावीर लड़ते तो जीत जाते। ऐसा कुछ नहीं है। लेकिन फिर भी हम गामा को महावीर नहीं कह सकते। क्योंकि शरीर तो शक्तिशाली है, लेकिन भीतर की आत्मा तो वैसी ही दुर्बल है। और शरीर कितनी देर चलेगा? गामा क्षय रोग से मरा। और आखिरी दिन बड़े कष्ट के रहे।

यह आप जान कर हैरान होंगे कि पहलवान सभी खतरनाक बीमारियों से मरते हैं। और आखिरी दिन पहलवानों के बहुत दुखद होते हैं। क्योंकि जो भी शक्ति थी वह शरीर की थी। और शरीर की शक्ति को ही उन्होंने समझा कि अपनी है। और जब शरीर क्षीण होने लगता है तब उनको लगता है कि यह तो धोखा था। और शरीर तो क्षीण होगा। और पहलवान का शरीर जल्दी क्षीण होता है, क्योंकि उसने शरीर के साथ जबर्दस्ती की। सब पहलवानी जबर्दस्ती है। जिसको हम कसरत कहते हैं, वह श्रम नहीं है, वह जबर्दस्ती है।

तो पहलवान जबर्दस्ती कर रहा है शरीर के साथ। तो उसकी मांसपेशियां उभर आएंगी। क्योंकि वह इतना जोर डाल रहा है मांसपेशियों पर, इतना खून जबर्दस्ती बहा रहा है उनमें से कि वे उभर आएंगी। इसलिए कोई पहलवान ज्यादा उम्र का नहीं होता, जल्दी मर जाता है। क्योंकि जो शरीर साठ साल काम दे सकता था, वह अब चालीस साल ही काम देगा। आपने बीस साल की शक्ति का हिंसात्मक रूप से उपयोग कर लिया। पहलवान जल्दी मरते हैं। और पहलवानों के आखिरी दिन बड़े दीन और दुखी हो जाते हैं। क्योंकि जैसे ही वार्धक्य आना शुरू होता है वैसे ही उन्हें पता लगता है कि हम तो कमजोर ही थे। तो शक्ति का जो भ्रम पैदा हो रहा था, वह शरीर से हो रहा था।

हमने वर्धमान को महावीर कहा है। इसलिए कहा है कि एक ऐसी जगह से वीर्य की ऊर्जा पैदा हो रही है, जो कभी भी छीनी न जा सकेगी। अंतर्भाव हुआ है, शक्ति जगी है। किसी भी साधन पर निर्भर नहीं है। न धन पर, न पद पर, न शरीर पर। निर्भर ही नहीं है। स्वतंत्र है, अपनी है, तो इसको हमने आत्म-शक्ति कहा है। जो अपनी है, वह आत्म-शक्ति है। जो किसी भी ढंग से पराए से मिलती है, जिसके होने में पराए के सहारे की जरूरत पड़ती है, वह शक्ति का धोखा है।

‘शक्ति की उत्कट अभीप्सा करो।’

इस शक्ति की उत्कट अभीप्सा करो, बाकी शेष शक्तियों पर से ध्यान हटा लो। क्योंकि उन पर ध्यान देने का अर्थ है कि इस शक्ति का विकास न हो सकेगा। और जब तक तुम निर्भर रहोगे दूसरों पर, तब तक तुम पाओगे कि तुम रोज रोज कमजोर होते गए हो। सभी निर्भर लोग कमजोर हो जाते हैं। निर्भरता कैसी भी हो, कमजोरी लाती है।

और हम सब निर्भर हैं। और हमने अनेक तरह के उपाय कर रखे हैं, जिनमें निर्भरता से हम शक्तिशाली होने के भ्रम में होते हैं। निर्भरता धोखा है। उससे शक्ति का आभास होता है, लेकिन शक्ति कभी उपलब्ध नहीं होती।

साधना सूत्र

ओशो 

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