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Thursday, August 13, 2015

गुप्तता की अनिवार्यता

एक बौद्ध भिक्षु को सीलोन से किसी ने मेरे पास भेजा। उसकी तीन साल से नींद खो गयी थी, तो उसकी जो हालत हो सकती थी वह हो गयी। पूरे वक्त हाथ—पैर कंपते रहेंगे, पसीना छूटता रहेगा और घबराहट होती रहेगी। एक कदम भी उठायेगा तो डरेगा, भरोसा अपने ऊपर का सब खो गया, नींद आती नहीं है। बिलकुल विक्षिप्त और अजीब सी हालत है। उसने बहुत इलाज करवाया क्योंकि वह.. वह यहां सब तरह के इलाज उसने करवा लिए, कुछ फायदा हुआ नहीं; कोई ट्रैकोलाइजर उसको सुला नहीं सकता था। उसे गहरे से गहरे ट्रैकोलाइजर दिए गए तो भी उसने कहा कि मैं बाहर से सुस्त होकर पड जाता हूं लेकिन भीतर तो मुझे पता चलता ही रहता है कि मैं जगा हुआ हूं।

उसे किसी ने मेरे पास भेजा। मैंने उसको कहा कि तुम्हें कभी नींद आएगी नहीं, ट्रैकोलाइजर से या और किसी उपाय से। तुम बुद्ध का अनापान सती योग तो नहीं कर रहे हो? क्योंकि बौद्ध भिक्षु के लिए वह अनिवार्य है। उसने कहा, वह तो मैं कर ही रहा हूं। उसके बिना तो.. मैं फिर मैंने कहा, तुम नींद का खयाल छोड़ दो।

अनापान सती योग का प्रयोग ऐसा है कि नींद खो जाएगी। मगर वह प्राथमिक प्रयोग है। और जब नींद खो जाए तब दूसरा प्रयोग तत्काल जोड़ा जाना चाहिए। अगर उसको ही करते रहे तो पागल हो जाओगे, मुश्किल में पड़ जाओगे। वह सिर्फ प्राथमिक प्रयोग है, वह सिर्फ नींद हटाने का प्रयोग है। एक दफा भीतर से नींद हट जाए तो आपके भीतर इतना फर्क पड़ता है चेतना में कि उस क्षण का उपयोग करके आगे गति की जा सकती है।
तो मैंने कहा,कोई दूसरी प्रक्रिया तुझे मालूम है? उसने कहा, मुझे दूसरी किसी ने तो अनापान सती बतायी नहीं। बस अनापान सती किताब में लिखी हुई है, और सबको मालूम है। और खतरनाक है उसका किताब में लिखना! क्योंकि उसको करके कोई भी आदमी नींद से वंचित हो सकता है। और जब नींद से वंचित हो जाएगा, तो दूसरी प्रक्रिया का कोई पता नहीं!

इसलिए सदा बहुतसी चीजें गुप्त रखी गयीं। गुप्त रखने का और कोई कारण नहीं था, किसी से छिपाने का कोई और कारण नहीं था। जिनको हम लाभ पहुंचाना चाहते हैं उनको नुकसान पहुंच जाए तो कोई अर्थ नहीं। तो वास्तविक तीर्थ छिपे हुए और गुप्त हैं। तीर्थ जरूर हैं, पर वास्तविक तीर्थ छिपे हुए, गुप्त हैं। करीब—करीब निकट हैं उन्हीं तीर्थों के, जहां आपके ‘फाल्स’ तीर्थ खड़े हुए हैं। और वह जो फाल्‍स तीर्थ हैं, वह जो झूठे तीर्थ हैं, धोखा देने के लिए खड़े किए गए हैं। वह इसलिए खड़े किए गए हैं कि ठीक पर कहीं गलत आदमी न पहुंच जाए। ठीक आदमी तो ठीक पहुंच ही जाता है। और हरेक तीर्थ की अपनी कुंजियां हैं। इसलिए अगर सूफियों का तीर्थ खोजना हो तो जैनियों के तीर्थ की कुंजी से नहीं खोजा जा सकता। अगर जैनियों का तीर्थ खोजना है तो सूफियों की कुंजी से नहीं खोजा जा सकता। सबकी अपनी कुंजियां हैं, और उन कुंजियों का उपयोग करके तत्काल खोजा जा सकता है। तत्काल…! नाम नहीं लेता, किंतु किसी के तीर्थ की एक कुंजी आपको बताता हूं।

एक विशेष यंत्र जैसे कि तिब्बतियों के होते हैं, जिसमें खास तरह की आकृतियां बनी होती हैं—वे यंत्र कुंजियां हैं। जैसे हिंदुओं के पास भी यंत्र हैं, और हजार यंत्र हैं। आप घरों में भी ‘लाभ शुभ’ बनाकर कभी—कभी आंकडे लिखकर और यंत्र बना लेते हैं, बिना जाने कि किसलिए बना रहे हैं। क्यों लिख रहे हैं यह? आपको खयाल भी नहीं हो सकता है कि आप अपने मकान में एक ऐसा यंत्र बनाए हुए हैं जो किसी तीर्थ की कुंजी हो सकती है। मगर बाप दादे आपके बनाते रहते हैं और आप बनाए चले जा रहे हैं।

एक विशेष आकृति पर ध्यान करने से आपकी चेतना विशेष आकृति लेती है। हर आकृति आपके भीतर चेतना को आकृति देती है। जैसे कि अगर आप बहुत देर तक खिड़की पर आंख लगाकर देखते रहें, फिर आंख बंद करें तो खिड़की का निगेटिव चौखटा आपकी आंख के भीतर बन जाता है-वह निगेटिव है। अगर किसी यंत्र पर आप ध्यान करें तो उससे ठीक उल्टा निगेटिव चौखटा और निगेटिव आकड़े आपके भीतर निर्मित होते हैं। वह, विशेष ध्यान के बाद आपको भीतर दिखायी पड़ना शुरू हो जाता है। और जब वह दिखायी पड़ना शुरू हौ जाए, तब विशेष आह्वान करने से तत्काल आपकी यात्रा शुरू हो जाती है।



ओशो 

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