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Saturday, August 1, 2015

शिष्यों के लिए नियम

ये नियम शिष्यों के लिए हैं।
इन पर तुम ध्यान दो।
इसके पहले कि तुम्‍हारे नेत्र देख सकें,
उन्हें बहरे हो जाना चाहिए।
और इसके पहले कि तुम सदगुरुओं की उपस्थिति में बोल सकी,
तुम्हारी वाणी को चोट पहुंचाने की वृत्ति से मुक्त हो जाना चाहिए।
इसके पहले कि तुम्हारी आत्मा सदगुरुओं के समक्ष खड़ी हो सके,
उसके पैरों को हृदय के रक्त से धो लेना उचित है।

ओशो 

 
महत्वाकांक्षा को दूर करो।



महत्वाकांक्षा पहला अभिशाप है।
जो कोई अपने सहयोगियों से आगे बढ़ रहा है,
उसे यह मोहित करके अपने पथ से विचलित कर देती है।
सत्कर्मों के फल की इच्छा का यह सबसे सरल रूप है।
बुद्धिमान और शक्तिशाली लोग इसके द्वारा
बराबर अपनी उच्च संभावनाओं से स्‍खलित होते रहते हैं।
फिर भी यह बड़ी आवश्यक शिक्षा का साधन है।
इसके फल चखते समय मुंह में राख और धूल बन जाते हैं।
मृत्यु और वियोग के समान इससे भी अंत में यही शिक्षा मिलती है
कि स्वार्थ के लिए अहं के विस्तार के लिए कार्य करने से
परिणाम में निराशा ही प्राप्त होती है।

साधना सूत्र

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