स्मरण रहे, किसी पर प्रभुत्व करने के लिए ऊर्जा का उपयोग मत करो। यही
कारण है कि बुद्ध, महावीर, जीसस निरंतर कहते रहे, जोर देकर कहते रहे कि जिस
क्षण तुम आध्यात्मिक खोज पर निकलो, सबके लिए—शत्रुओं के लिए भी—प्रेम से
भरकर निकलो। अगर तुम प्रेम से भरे रहोगे तो तुम उस आंतरिक हिंसा के खिंचाव
से बच जाओगे जो मालकियत करना चाहता है। उस आंतरिक हिंसा का एंटीडोट सिर्फ
प्रेम है। अन्यथा जब तुम्हें ऊर्जा प्राप्त होगी, जब तुम ऊर्जा से भर
जाओगे, तो तुम दूसरों पर मालकियत करने लगोगे।
ऐसा रोज होता है; ऐसे अनेक लोग मेरे संपर्क में आए हैं। उन्हें मैं मदद देता हूं वे थोड़ी प्रगति करते हैं। और ज्यों ही उन्हें लगता है कि उन्हें ऊर्जा मिली, वे झट दूसरों पर प्रभुत्व जमाने लगते हैं। वे अब इस ऊर्जा का उपयोग करने लगते हैं।
ध्यान रहे, दूसरों पर प्रभुत्व करने के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का उपयोग मत करो। तुम नाहक अपनी शक्ति नष्ट करोगे। देर—अबेर तुम फिर चुक जाओगे, रिक्त हो जाओगे। और सहसा फिर तुम्हारा पतन हो जाएगा। और यह शुद्ध अपव्यय है।
लेकिन जब तुम्हें लगता है कि अब मैं कुछ कर सकता हूं तो अपने पर अंकुश रखना कठिन होता है। अगर तुम किसी बीमार को छूते हो और वह तुम्हारे छूते ही स्वस्थ हो जाता है तो अब तुम दूसरों को छूने से अपने को कैसे रोकोगे? अब तुम अपने को बस में न रख सकोगे। और बस में न रख सकोगे तो तुम ऊर्जा का अपव्यय करोगे। तुम्हें कुछ घटित हुआ है; लेकिन तुम जल्दी ही उसे गंवा दोगे और नाहक गंवा दोगे।
और मनुष्य का मन इतना चालाक है कि तुम सोच सकते हो कि मैं दूसरों का उपचार कर रहा हूं, दूसरों की मदद कर रहा हूं। वह मन की महज चालाकी हो सकती है। अगर तुम्हारे दिल में प्रेम नहीं है तो तुम दूसरों की बीमारी, दूसरों के स्वास्थ्य की फिक्र नहीं कर सकते। तुम्हें इससे कुछ मतलब नहीं है। सच तो यह है कि तुम्हें शक्ति मिल गई है और उपचार के जरिए तुम दूसरों पर प्रभुत्व पैदा करना चाहते हो। तुम भले कहते होओ कि मैं उनकी मदद कर रहा हूं; लेकिन तुम मदद के नाम पर दूसरों पर आधिपत्य जमा रहे हो। और उससे तुम्हारा अहंकार तृप्त होगा; वह तुम्हारे अहंकार के लिए भोजन बन जाएगा।
इसलिए सभी पुराने धर्मग्रंथ सावधान करते हैं। वे कहते हैं कि सावधान रहो; क्योंकि जब शक्ति आती है तो तुम एक खतरनाक जगह पर पहुंच जाते हो। तुम उसे फेंक दे सकते हो, गंवा दे सकते हो। इसलिए जब शक्ति प्राप्त हो तो उसे गुप्त ही रखो, उसके बारे में किसी को कुछ मत जानने दो।
जीसस ने कहा है कि अगर तुम्हारा दाहिना हाथ कुछ करे तो उसे बाएं हाथ को भी मत जानने दो। सूफी संत परंपरा में वे कहते हैं कि जब शक्ति आने लगे तो दूसरों के सामने प्रार्थना भी मत करो, दूसरों के सामने मस्जिद भी मत जाओ। क्यों? क्योंकि जब शक्ति के आने पर कोई प्रार्थना करता है और बहुत लोगों की मौजूदगी में करता है तो दूसरों को तुरंत पता चलने लगता है कि कुछ हो रहा है। तो सूफी कहते हैं कि तब तुम्हें रात के अंधेरे में, आधी रात में अपनी नमाज कहनी चाहिए जब सब सोए हों और किसी को पता न चले कि तुम्हें कुछ हो रहा है। किसी को बताओ भी मत कि तुम्हें क्या हो रहा है।
लेकिन मन बहुत बकवादी है। अगर तुम्हें कुछ घटित होगा तो तुम तुरंत दूसरों को इसका शुभ समाचार देने निकल पड़ोगे। लेकिन तभी चूक हो जाएगी। यह शक्ति का अपव्यय होगा। और अगर लोग तुमसे प्रभावित भी होंगे तो तुम्हें उसकी वाहवाही मिलेगी, और कुछ भी नहीं। वह कोई बढ़िया सौदा नहीं है।
अभी रुको। एक क्षण आएगा जब तुम्हारी ऊर्जा संगृहीत हो जाएगी, जब वह अखंड हो जाएगी, रूपांतरित हो जाएगी, तब तुम्हारे आस—पास तुम्हारे कुछ किए बिना ही बहुत कुछ घटित होगा। जब तुम अपने मालिक हो जाओगे तभी तुम दूसरों को अपना मालिक बनने में सहयोग दे सकोगे।
ऐसा रोज होता है; ऐसे अनेक लोग मेरे संपर्क में आए हैं। उन्हें मैं मदद देता हूं वे थोड़ी प्रगति करते हैं। और ज्यों ही उन्हें लगता है कि उन्हें ऊर्जा मिली, वे झट दूसरों पर प्रभुत्व जमाने लगते हैं। वे अब इस ऊर्जा का उपयोग करने लगते हैं।
ध्यान रहे, दूसरों पर प्रभुत्व करने के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का उपयोग मत करो। तुम नाहक अपनी शक्ति नष्ट करोगे। देर—अबेर तुम फिर चुक जाओगे, रिक्त हो जाओगे। और सहसा फिर तुम्हारा पतन हो जाएगा। और यह शुद्ध अपव्यय है।
लेकिन जब तुम्हें लगता है कि अब मैं कुछ कर सकता हूं तो अपने पर अंकुश रखना कठिन होता है। अगर तुम किसी बीमार को छूते हो और वह तुम्हारे छूते ही स्वस्थ हो जाता है तो अब तुम दूसरों को छूने से अपने को कैसे रोकोगे? अब तुम अपने को बस में न रख सकोगे। और बस में न रख सकोगे तो तुम ऊर्जा का अपव्यय करोगे। तुम्हें कुछ घटित हुआ है; लेकिन तुम जल्दी ही उसे गंवा दोगे और नाहक गंवा दोगे।
और मनुष्य का मन इतना चालाक है कि तुम सोच सकते हो कि मैं दूसरों का उपचार कर रहा हूं, दूसरों की मदद कर रहा हूं। वह मन की महज चालाकी हो सकती है। अगर तुम्हारे दिल में प्रेम नहीं है तो तुम दूसरों की बीमारी, दूसरों के स्वास्थ्य की फिक्र नहीं कर सकते। तुम्हें इससे कुछ मतलब नहीं है। सच तो यह है कि तुम्हें शक्ति मिल गई है और उपचार के जरिए तुम दूसरों पर प्रभुत्व पैदा करना चाहते हो। तुम भले कहते होओ कि मैं उनकी मदद कर रहा हूं; लेकिन तुम मदद के नाम पर दूसरों पर आधिपत्य जमा रहे हो। और उससे तुम्हारा अहंकार तृप्त होगा; वह तुम्हारे अहंकार के लिए भोजन बन जाएगा।
इसलिए सभी पुराने धर्मग्रंथ सावधान करते हैं। वे कहते हैं कि सावधान रहो; क्योंकि जब शक्ति आती है तो तुम एक खतरनाक जगह पर पहुंच जाते हो। तुम उसे फेंक दे सकते हो, गंवा दे सकते हो। इसलिए जब शक्ति प्राप्त हो तो उसे गुप्त ही रखो, उसके बारे में किसी को कुछ मत जानने दो।
जीसस ने कहा है कि अगर तुम्हारा दाहिना हाथ कुछ करे तो उसे बाएं हाथ को भी मत जानने दो। सूफी संत परंपरा में वे कहते हैं कि जब शक्ति आने लगे तो दूसरों के सामने प्रार्थना भी मत करो, दूसरों के सामने मस्जिद भी मत जाओ। क्यों? क्योंकि जब शक्ति के आने पर कोई प्रार्थना करता है और बहुत लोगों की मौजूदगी में करता है तो दूसरों को तुरंत पता चलने लगता है कि कुछ हो रहा है। तो सूफी कहते हैं कि तब तुम्हें रात के अंधेरे में, आधी रात में अपनी नमाज कहनी चाहिए जब सब सोए हों और किसी को पता न चले कि तुम्हें कुछ हो रहा है। किसी को बताओ भी मत कि तुम्हें क्या हो रहा है।
लेकिन मन बहुत बकवादी है। अगर तुम्हें कुछ घटित होगा तो तुम तुरंत दूसरों को इसका शुभ समाचार देने निकल पड़ोगे। लेकिन तभी चूक हो जाएगी। यह शक्ति का अपव्यय होगा। और अगर लोग तुमसे प्रभावित भी होंगे तो तुम्हें उसकी वाहवाही मिलेगी, और कुछ भी नहीं। वह कोई बढ़िया सौदा नहीं है।
अभी रुको। एक क्षण आएगा जब तुम्हारी ऊर्जा संगृहीत हो जाएगी, जब वह अखंड हो जाएगी, रूपांतरित हो जाएगी, तब तुम्हारे आस—पास तुम्हारे कुछ किए बिना ही बहुत कुछ घटित होगा। जब तुम अपने मालिक हो जाओगे तभी तुम दूसरों को अपना मालिक बनने में सहयोग दे सकोगे।
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