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Saturday, August 1, 2015

मन के पार

जब तुम शराब पीते हो तो तुम्हारे मन को क्या होता है? शराब तो शरीर में जाती है, लेकिन मन प्रभावित होता है। जब तुम एल—एस डी लेते हो तो वह शरीर में जाती है, मन में नहीं; लेकिन मन प्रभावित होता है। या अगर तुम उपवास करो तो यह उपवास शरीर के तल पर होगा; लेकिन मन प्रभावित होगा।
इसी चीज को दूसरे छोर से देखो। जब कामुक विचार उठते हैं तो वे उठते मन के तल पर हैं, लेकिन शरीर तुरंत उनसे प्रभावित होता है। मन में काम—विषय की चितना शुरू होती है; और शरीर तैयार होने लगता है।
विलियम जेम्स का एक सिद्धात है। इस सदी के पूर्वार्द्ध में यह सिद्धात बेतुका मालूम पड़ता था, लेकिन एक अर्थ में यह सही है। विलियम जेम्स और दूसरे विज्ञानविद लैंग ने मिलकर इस सिद्धात को प्रस्तावित किया था और इसीलिए उसे जेम्स—लैंग सिद्धात कहते हैं।
आमतौर से हम कहते हैं कि जब तुम भयभीत होते हो तो तुम सुरक्षा के लिए भागते हो, या जब तुम क्रोध करते हो तो तुम्हारी आंखें लाल हो जाती हैं और तुम अपने दुश्मन पर चोट करने लगते हो। लेकिन जेम्स और लैग ने जो बात कही वह ठीक इसके विपरीत है। उन्होंने कहा कि चूंकि तुम भागते हो इसलिए तुम भयभीत होते हो और चूंकि तुम्हारी आंखें लाल हो जाती हैं और तुम शत्रु पर चोट करने लगते हो इसलिए तुम्हें क्रोध होता है।
कितनी विरोधी बातें हैं! जेम्स और लैंग ने कहा कि यदि ऐसा नहीं है तो हम क्रोध की एक ऐसी मिसाल देखना चाहेंगे जिसमें आंखें लाल न हों, शरीर प्रभावित न हो और शुद्ध क्रोध हो। अपने शरीर को प्रभावित मत होने दो और क्रोध करने की चेष्टा करो, तब तुम्हें पता चलेगा कि तुम क्रोध नहीं कर सकते।
जापान में वे अपने बच्चों को क्रोध पर काबू पाने का एक सरल उपाय सिखाते हैं। वे कहते हैं कि जब भी तुम्हें क्रोध हो, क्रोध के साथ सीधे कुछ मत करो; बस गहरी श्वास लेना शुरू करो। इसका प्रयोग करो और तुम क्रोध नहीं कर सकोगे। क्यों? क्यों सिर्फ गहरी श्वास लेने से क्रोध नहीं कर सकते? क्यों क्रोध करना असंभव हो जाता है?
इसके दो कारण हैं। तुम गहरी श्वास लेने लगते हो; लेकिन क्रोध के लिए श्वास की एक खास लय, उसका एक विशेष ढंग आवश्यक है। उस ढंग के बिना क्रोध संभव नहीं है। क्रोध करने के लिए जरूरी है कि श्वास एक विशेष लय में चले। असल में क्रोध के लिए श्वास का अराजक होना जरूरी है। इसलिए जब तुम गहरी श्वास लेते हो तो क्रोध का उभरना असंभव हो जाता है। अगर तुम सचेतन रूप से गहरी श्वास लेते हो तो क्रोध प्रकट नहीं हो सकता। क्रोध के लिए एक भिन्न ढंग की श्वास की गति जरूरी है। वह गति तुम्हें लानी नहीं पड़ती है, क्रोध ही उसे ले आता है। गहरी श्वास के साथ तुम क्रोध नहीं कर सकते।
और दूसरा कारण है कि मन बंट जाता है। जब तुम क्रोध करते हो और साथ ही गहरी श्वास लेने लगते हो तो तुम्हारा मन श्वास पर चला जाता है। अब शरीर क्रोध करने की अवस्था में नहीं रहा, क्योंकि मन की एकाग्रता किसी और चीज पर चली गई। ऐसी हालत में क्रोध करना कठिन है।
यही कारण है कि जापानी पृथ्वी पर सबसे संयमित लोग हैं—सर्वाधिक संयमित। बचपन से ही उन्हें इसके लिए प्रशिक्षित किया जाता है। दुनिया में अन्यत्र ऐसी घटना देखने को नहीं मिलती है; लेकिन जापान में यह आम बात है। अब तो जापान में भी वह कम हो रहा है; क्योंकि जापान कम जापान होता जा रहा है। यह देश अधिकाधिक पाश्चात्य बनता जा रहा है और उसके पारंपरिक ढंग—ढांचे खोते जा रहे हैं। लेकिन ऐसी बात होती थी और आज भी हो रही है।
मेरे एक मित्र क्‍योटो में रहते थे। मुझे उनका एक पत्र मिला जिसमें उन्‍होंने कहा कि आज मुझे एक ऐसी सुंदर घटना देखने को मिली कि उससे मैं आपको अवगत कराना चाहता हूं। और जब मैं भारत वापस आऊंगा तो मैं आपसे समझना चाहूंगा कि ऐसी बात कैसे घटित होती है। एक आदमी को कार से धक्का लगा और वह जमीन पर गिर पड़ा; लेकिन जब वह उठा तो उसने ड्राइवर को धन्यवाद दिया और तब अपनी राह ली। उसने ड्राइवर को धन्यवाद दिया! जापान में यह कठिन नहीं है। उसने कुछ गहरी श्वासें ली होंगी; तभी यह संभव है। तब तुम्हारा दृष्टिकोण पूरी तरह बदल जाता है। और तब तुम उस आदमी को भी धन्यवाद दे सकते हो जो तुम्हारी हत्या करने जा रहा हो, या जिसने तुम्हारी हत्या का प्रयास किया हो।
तो शारीरिक और मानसिक प्रक्रियाएं दो चीजें नहीं हैं, वे एक हैं। और तुम किसी भी छोर से दूसरे को बदलने की शुरुआत कर सकते हो। और कोई भी वैज्ञानिक विधि उपयोग में आ सकती है। उदाहरण के लिए तंत्र यह कर सकता है, क्योंकि तंत्र को शरीर पर गहरा भरोसा है। सिर्फ दर्शनशास्त्र धुंधला— धुंधला, हवाई और बातूनी है; वह और कहीं से भी शुरू कर सकता है। लेकिन कोई भी वैज्ञानिक पद्धति शरीर से ही शुरू कर सकती है, क्योंकि शरीर तुम्हारी पहुंच के भीतर है। अगर मैं तुमसे कुछ कहूं जो तुम्हारी पकड़ के बाहर हो तो तुम उसे सुन लोगे, उसे स्मृति में इकट्ठा कर लोगे; तुम उसकी चर्चा भी करोगे; लेकिन उससे कुछ भी नहीं होगा। तुम वही के वही होगे, तुम्हारी जानकारी बढ़ जाएगी, लेकिन तुम नहीं बढ़ोगे। तुम्हारा ज्ञान तो बढ़ता चला जाएगा; लेकिन तुम्हारे प्राण गरीब के गरीब रह जाएंगे, जहां के तहां पड़े रहेंगे। तुम्हें उससे कुछ भी नहीं होगा।
स्मरण रहे, शरीर तुम्हारे हाथ में है, तुम्हारी पहुंच के भीतर है। तुम उसके साथ अभी कुछ कर सकते हो और शरीर के जरिए मन को बदल सकते हो। और धीरे— धीरे तुम अपने शरीर के मालिक हो जाओगे। और तब तुम मन के भी मालिक हो जाओगे। और जब तुम मन के मालिक हो जाते हो तो धीरे—धीरे उसे रूपांतरित कर मन के भी पार जा सकते हो। जब शरीर बदलता है तो तुम शरीर के पार जाते हो, और जब मन बदलता है तो तुम मन के पार जाते हो।

ओशो 

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