सदा वह करो जो तुम कर सकते हो।
उदाहरण के लिए, तुम अभी तुरंत बुद्ध की तरह अपने क्रोध के मालिक नहीं हो सकते हो। कैसे हो सकते हो? लेकिन अगर तुम श्वास की प्रक्रिया को बदल दो तो तुम उसके सूक्ष्म प्रभाव को, परिवर्तन को अनुभव कर लोगे। इसे करके देखो। अगर तुम कामवासना से भरे हो तो थोड़ी सी गहरी श्वासें लो और उनके प्रभाव को देखो; कामवासना तितर—बितर हो जाएगी।
अल्डुअस हक्सले की पत्नी लारा हक्सले ने एक सुंदर किताब लिखी है; उसमें उसने कुछ करने के सरल उपाय बताए हैं। लारा हक्सले कहती है कि अगर तुम्हें क्रोध आए तो तुम अपने चेहरे की मांस—पेशियों को खींचो, सख्त बनाओ। तुम यह काम अपने स्नानगृह में जाकर कर सकते हो, या महज मेज के नीचे झुककर कर सकते हो; ताकि तुम्हें कोई देख न सके। समझो कि कोई तुम्हारे सामने ही बैठा है और तुम्हें क्रोध आ गया है। तो स्नानघर में जाकर या
मेज के नीचे सिर करके अपने चेहरे को कसो और कसते ही जाओ। जब कसावट हद पर पहुच जाए अचानक ढील दे दो, और तब तुम्हें फर्क का अनुभव होगा; क्रोध जा चूकेगा। या यदि इतने पर भी न जाए तो इस प्रयोग को दुहराओ—दो बार करो, तीन बार करो।
इससे क्या होता है? अगर तुम चेहरे की मांस—पेशियों को कसते जाओ, और कसते ही चले जाओ, और उसे तनाव से भर दो, तो जो ऊर्जा क्रोध में लगी थी वही चेहरे में गति करने लगेगी। और चेहरे में गति करना बहुत आसान है। जब तुम क्रोध करते हो तो क्या होता है? तुम्हारा जी करता है कि किसी को मुक्के मारो, क्योंकि इस ऊर्जा का उपयोग करना है। और उपयोग कर सको तो ऊर्जा बिखर जाएगी और तुम्हारा चेहरा शिथिल और शांत हो जाएगा। और जो आदमी तुम्हारे सामने बैठा था उसे पता भी नहीं चलेगा कि तुम क्रोध में थे। ऐसा लगेगा कि तुम्हें कुछ भी नहीं हुआ है।
और एक बार तुम इन चीजों को जान लो तो तुम्हें अधिकाधिक बोध होगा कि ऊर्जा रूपांतरित की जा सकती है, उसकी दिशा बदली जा सकती है, उसे नियंत्रित किया जा सकता है, उसे राह दी जा सकती है और उसकी राह रोकी भी जा सकती है। तुम्हें यह बोध होगा कि ऊर्जा का उपयोग भिन्न—भिन्न ढंगों से किया जा सकता है। और जब तुम ऊर्जा का उपयोग सीख लोगे तो तुम उसके मालिक हो जाओगे। और तब किसी दिन यह तुम्हारे हाथ में होगा कि ऊर्जा का उपयोग न करके उसका संरक्षण करो।
यह प्रयोग, घूंसा तानने का प्रयोग, बुद्ध के काम का नहीं है। बुद्ध के काम का इसलिए नहीं है क्योंकि यह ऊर्जा का अपव्यय है। लेकिन यह तुम्हारे बहुत काम का है। कम से कम दूसरा तुम्हारे क्रोध का शिकार होने से बच जाता है, और इस तरह पैदा होने वाले एक दुश्चक्र का अंत हो जाता है। जब तुम किसी पर क्रोध करते हो तो दूसरा भी क्रोध करता है, और इसका कहीं अंत नहीं है। इससे तुम्हारी पूरी रात खराब हो जाती है; इस उपद्रव का असर सप्ताह भर रह सकता है। और तब इसके प्रभाव में तुम कई ऐसी चीजें कर गुजरोगे जिन्हें तुम कभी नहीं करना चाहते थे।
तो यह मत कहो कि यह महज शारीरिक प्रक्रिया है। तुम शारीरिक हो; इसके बारे में कुछ नहीं किया जा सकता। तुम शरीर ही हो, इस तथ्य को इनकारा नहीं जा सकता। अपनी ऊर्जा का उपयोग करो, उसे इनकार करने की जरूरत नहीं है।
अगर तुम अपनी आंखें बंद करो तो कभी—कभी तुम्हें वहां थोड़ा तनाव, थोड़ी बेचैनी अनुभव हो सकती है। इस संबंध में कुछ बातें उपयोगी हो सकती हैं। एक तो यह कि जब आंखें बंद करो तो उसके संबंध में तनाव न लो; उन्हें शिथिल रहने दो। तुम आंखों को जबरदस्ती भी बंद कर सकते हो, तब तनाव पैदा होगा, तब तुम्हारी आंखें थक जाएंगी और तुम्हें भीतर बेचैनी महसूस होगी। पहले चेहरे को शिथिल होने दो, फिर आंखों को शिथिल होने दो और तब उन्हें बंद होने दो। मैं कहता हूं कि आंखों को बंद होने दो। मैं यह नहीं कहता कि उन्हें बंद करो। विश्राम में रहो। पलकों को गिरने दो और आंखों को बंद होने दो। उनके साथ जबरदस्ती मत करो। जबरदस्ती करना अच्छा नहीं है।
और अगर तुम्हें फर्क पता न चले तो ऐसा करो कि पहले आंखों को जबरदस्ती बंद म् करो। पहले पूरे चेहरे को तनाव से भर दो और तब आंखों को जबरदस्ती बंद करो। और फिर दूसरी बार उन्हें विश्रामपूर्वक बंद करो। तब तुम्हें फर्क पता चलेगा। तो कुछ भी करने में जबरदस्ती मत करो; वह तुम्हें थका डालेगी।
और दूसरी बात कि जब आंखें बंद हो जाएं और चेहरा शिथिल हो जाए, तो ऐसे देखो जैसे कि सब अंधकारमय है, तुम्हारे चारों ओर गहरा अंधकार है। भाव करो कि गहरी अंधेरी रात में तुम अंधकार ही अंधकार से, मखमली अंधकार से घिरे हो। इस अंधकार को महसूस करो। उससे तुम्हारी आंखों की गति बंद हो जाएगी; जब कुछ भी देखने को नहीं रहेगा तो आंखें ठहर जाएंगी। इसलिए अंधकार में होना उपयोगी है। यह काम तुम अंधेरे कमरे में कर सकते हो। आंखें खोलो और अंधकार को देखो, और फिर उन्हें बंद करके अंधकार को अनुभव करो। फिर आंखें खोलकर अंधकार को देखों; और फिर आंखें बंद कर अंधकार को भीतर महसूस करो।
अंधकार गहन रूप से आरामदायक है। अंधकार तुम्हारे बाहर है और अंधकार तुम्हारे भीतर है। और इसमें सब कुछ मृत मालूम देता है—मृत और अंधेरा। अंधकार और मृत्यु एक—दूसरे से परस्पर जुड़े हैं। यही कारण है कि हम मृत्यु को काले रंग से चित्रित करते हैं। दुनियाभर में लोग मृत्यु को काले रँग में चित्रित करते हैं।
ओशो
उदाहरण के लिए, तुम अभी तुरंत बुद्ध की तरह अपने क्रोध के मालिक नहीं हो सकते हो। कैसे हो सकते हो? लेकिन अगर तुम श्वास की प्रक्रिया को बदल दो तो तुम उसके सूक्ष्म प्रभाव को, परिवर्तन को अनुभव कर लोगे। इसे करके देखो। अगर तुम कामवासना से भरे हो तो थोड़ी सी गहरी श्वासें लो और उनके प्रभाव को देखो; कामवासना तितर—बितर हो जाएगी।
अल्डुअस हक्सले की पत्नी लारा हक्सले ने एक सुंदर किताब लिखी है; उसमें उसने कुछ करने के सरल उपाय बताए हैं। लारा हक्सले कहती है कि अगर तुम्हें क्रोध आए तो तुम अपने चेहरे की मांस—पेशियों को खींचो, सख्त बनाओ। तुम यह काम अपने स्नानगृह में जाकर कर सकते हो, या महज मेज के नीचे झुककर कर सकते हो; ताकि तुम्हें कोई देख न सके। समझो कि कोई तुम्हारे सामने ही बैठा है और तुम्हें क्रोध आ गया है। तो स्नानघर में जाकर या
मेज के नीचे सिर करके अपने चेहरे को कसो और कसते ही जाओ। जब कसावट हद पर पहुच जाए अचानक ढील दे दो, और तब तुम्हें फर्क का अनुभव होगा; क्रोध जा चूकेगा। या यदि इतने पर भी न जाए तो इस प्रयोग को दुहराओ—दो बार करो, तीन बार करो।
इससे क्या होता है? अगर तुम चेहरे की मांस—पेशियों को कसते जाओ, और कसते ही चले जाओ, और उसे तनाव से भर दो, तो जो ऊर्जा क्रोध में लगी थी वही चेहरे में गति करने लगेगी। और चेहरे में गति करना बहुत आसान है। जब तुम क्रोध करते हो तो क्या होता है? तुम्हारा जी करता है कि किसी को मुक्के मारो, क्योंकि इस ऊर्जा का उपयोग करना है। और उपयोग कर सको तो ऊर्जा बिखर जाएगी और तुम्हारा चेहरा शिथिल और शांत हो जाएगा। और जो आदमी तुम्हारे सामने बैठा था उसे पता भी नहीं चलेगा कि तुम क्रोध में थे। ऐसा लगेगा कि तुम्हें कुछ भी नहीं हुआ है।
और एक बार तुम इन चीजों को जान लो तो तुम्हें अधिकाधिक बोध होगा कि ऊर्जा रूपांतरित की जा सकती है, उसकी दिशा बदली जा सकती है, उसे नियंत्रित किया जा सकता है, उसे राह दी जा सकती है और उसकी राह रोकी भी जा सकती है। तुम्हें यह बोध होगा कि ऊर्जा का उपयोग भिन्न—भिन्न ढंगों से किया जा सकता है। और जब तुम ऊर्जा का उपयोग सीख लोगे तो तुम उसके मालिक हो जाओगे। और तब किसी दिन यह तुम्हारे हाथ में होगा कि ऊर्जा का उपयोग न करके उसका संरक्षण करो।
यह प्रयोग, घूंसा तानने का प्रयोग, बुद्ध के काम का नहीं है। बुद्ध के काम का इसलिए नहीं है क्योंकि यह ऊर्जा का अपव्यय है। लेकिन यह तुम्हारे बहुत काम का है। कम से कम दूसरा तुम्हारे क्रोध का शिकार होने से बच जाता है, और इस तरह पैदा होने वाले एक दुश्चक्र का अंत हो जाता है। जब तुम किसी पर क्रोध करते हो तो दूसरा भी क्रोध करता है, और इसका कहीं अंत नहीं है। इससे तुम्हारी पूरी रात खराब हो जाती है; इस उपद्रव का असर सप्ताह भर रह सकता है। और तब इसके प्रभाव में तुम कई ऐसी चीजें कर गुजरोगे जिन्हें तुम कभी नहीं करना चाहते थे।
तो यह मत कहो कि यह महज शारीरिक प्रक्रिया है। तुम शारीरिक हो; इसके बारे में कुछ नहीं किया जा सकता। तुम शरीर ही हो, इस तथ्य को इनकारा नहीं जा सकता। अपनी ऊर्जा का उपयोग करो, उसे इनकार करने की जरूरत नहीं है।
अगर तुम अपनी आंखें बंद करो तो कभी—कभी तुम्हें वहां थोड़ा तनाव, थोड़ी बेचैनी अनुभव हो सकती है। इस संबंध में कुछ बातें उपयोगी हो सकती हैं। एक तो यह कि जब आंखें बंद करो तो उसके संबंध में तनाव न लो; उन्हें शिथिल रहने दो। तुम आंखों को जबरदस्ती भी बंद कर सकते हो, तब तनाव पैदा होगा, तब तुम्हारी आंखें थक जाएंगी और तुम्हें भीतर बेचैनी महसूस होगी। पहले चेहरे को शिथिल होने दो, फिर आंखों को शिथिल होने दो और तब उन्हें बंद होने दो। मैं कहता हूं कि आंखों को बंद होने दो। मैं यह नहीं कहता कि उन्हें बंद करो। विश्राम में रहो। पलकों को गिरने दो और आंखों को बंद होने दो। उनके साथ जबरदस्ती मत करो। जबरदस्ती करना अच्छा नहीं है।
और अगर तुम्हें फर्क पता न चले तो ऐसा करो कि पहले आंखों को जबरदस्ती बंद म् करो। पहले पूरे चेहरे को तनाव से भर दो और तब आंखों को जबरदस्ती बंद करो। और फिर दूसरी बार उन्हें विश्रामपूर्वक बंद करो। तब तुम्हें फर्क पता चलेगा। तो कुछ भी करने में जबरदस्ती मत करो; वह तुम्हें थका डालेगी।
और दूसरी बात कि जब आंखें बंद हो जाएं और चेहरा शिथिल हो जाए, तो ऐसे देखो जैसे कि सब अंधकारमय है, तुम्हारे चारों ओर गहरा अंधकार है। भाव करो कि गहरी अंधेरी रात में तुम अंधकार ही अंधकार से, मखमली अंधकार से घिरे हो। इस अंधकार को महसूस करो। उससे तुम्हारी आंखों की गति बंद हो जाएगी; जब कुछ भी देखने को नहीं रहेगा तो आंखें ठहर जाएंगी। इसलिए अंधकार में होना उपयोगी है। यह काम तुम अंधेरे कमरे में कर सकते हो। आंखें खोलो और अंधकार को देखो, और फिर उन्हें बंद करके अंधकार को अनुभव करो। फिर आंखें खोलकर अंधकार को देखों; और फिर आंखें बंद कर अंधकार को भीतर महसूस करो।
अंधकार गहन रूप से आरामदायक है। अंधकार तुम्हारे बाहर है और अंधकार तुम्हारे भीतर है। और इसमें सब कुछ मृत मालूम देता है—मृत और अंधेरा। अंधकार और मृत्यु एक—दूसरे से परस्पर जुड़े हैं। यही कारण है कि हम मृत्यु को काले रंग से चित्रित करते हैं। दुनियाभर में लोग मृत्यु को काले रँग में चित्रित करते हैं।
ओशो
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