मुल्ला नसीरुद्दीन की कब्र |
मुल्ला नसरूद्दीन काल्पनिक चरित्र नहीं है। वह सूफी था। और उसकी मजार अभी तक है। लेकिन वह ऐसा आदमी था कि अपनी कब्र में जाकर भी उसने मज़ाक करना न छोड़ा। उसने ऐसी वसीयत लिखवाई कि उसकी कब्र का पत्थर मात्र एक दरवाजा हो, जिसपर ताला लगा हो। और चाबियां समुंदर में फेंक दी हों।
अब यह अजीब है। लोग उसकी कब्र देखने जाते है। और उस दरवाजे के चारों और घूमते है। क्योंकि दीवालें है ही नहीं, सिर्फ द्वार खड़ा है बिना दीवालों के। और द्वार पर ताला पडा है। मुल्ला कब्र में पडा हंसता होगा।
मैंने नसरूदीन से जितना प्रेम किया है उतना किसी से नहीं किया होगा। वह उन लोगों में से एक है जिन्होंने धर्म और हास्य को एक किया। नहीं तो वे हमेशा एक दूसरे की और पीठ किये हुए खड़े है। नसरूदीन ने उनकी पुरानी शत्रुता छोड़ने के लिए उन्हें विवश किया। जब धर्म और हास्य मिलते है। जब ध्यान हंसता है और हंसना ध्यान बन जाता है तब चमत्कार घटता है—चमत्कारों का चमत्कार।
ओशो
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