नसरूदीन गधे पर बैठ कर पर्शिया से ग्रीस बार-बार जाता था। और हर बार वह घास की गठरियां ले जाता था। सरहद के संतरी घास को उघाड़ कर बारीकी से छानबीन करते लेकिन उसमे कुछ भी नहीं मिलता। लौटते समय वह खाली हाथ लौटता।
संतरी पूछते, ‘’तुम क्या ले जा रहे हो नसरूदीन।‘’
‘’मैं एक तस्कर हूं।‘’
नसरूदीन की अमीरी बढ़ती गई और वह ईजिप्त जाकर बस गया। वर्षों बाद कस्टम का एक अधिकारी उसे मिला और उसने पूछा :’’मुल्ला अब जबकि तुम ग्रीस और पर्शिया के इलाके से बहार हो, इतनी शान औ शौकत से रह रहे हो। तुम क्या चुराकर ले जाते थे जिसे हम कभी पकड़ नहीं पाये।
गधे, नसरूदीन ने कहा।
ओशो
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