दरबार में नसरूद्दीन के खिलाफ मुकदमा चल रहा था। दार्शनिक, तर्कशास्त्री और कानून के विद्वानों को नसरूदीन की जांच करने के लिए बुलाया गया था। मामला संगीन था। क्योंकि नसरूदीन ने कबूल किया था कि वह गांव-गांव घूमकर कहता था कि तथा कथित ज्ञानी लोग अज्ञानी, अनिश्चय में जीन वाले और संभ्रमित होते है।
उस पर इल्जाम लगाया गया कि वह राज्य की सुरक्षा का सम्मान नहीं कर रहा है।
सम्राट ने कहा, ‘’तुम पहले बोलों।‘’
मुल्ला ने कहा, ‘’पहले कागज और कलम ले आओ।‘’
कागज और कलम मंगवाये गये।
‘’इनमें से सात लोगों को ये दे दो और उनसे कहो कि वे सब एक सवाल का जवाब लिखें, ‘’रोटी क्या है?’’
उन सबने अपने-अपने कागज पर लिखा। वे कागज सम्राट को दिये गये और उसने उन्हें पढ़कर सुनाया:
पहले ने लिखा—रोटी एक भोजन है।
दूसरे ने लिखा—वह आटा और पानी है।
तीसरे ने लिखा—खुदा की भेट है।
चौथे ने लिखा—सींका हुआ आटा है।
पांचवें ने लिखा—आप किस चीज को रोटी कहते है इस पर निर्भर है।
छठे ने लिखा—एक पोषक तत्व।
सांतवे ने लिखा—कोई नहीं जानता कि रोटी क्या है।
नसरूद्दीन ने कहा: ‘’जब वे सब मिलकर यह तय नहीं कर पाये कि रोटी क्या है तब बाकी चीजों के बारे में निर्णय ले सकेंगे। जैसे मैं सही हूं या गलत। क्या आप किसी की जांच परख या मूल्यांकन करने का काम ऐसे लोगों को सौंप सकते है। क्या अजीब नहीं है कि उस चीज के बारे में एक मत नहीं हो सकता जिसे वे रोज खाते है। और फिर भी मुझे काफिर सिद्ध करने में सभी राज़ी हो गए। उनकी राय का क्या मूल्य है?
ओशो
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