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Monday, August 3, 2015

मुल्‍ला नसरूद्दीन

कई देश मुल्‍ला नसरूद्दीन को पैदा करने का दावा करते है। टिर्की में तो उसकी कब्र तक बनी हुई है। और हर साल वहां नसरूद्दीन उत्‍सव मनाया जाता है। उस उत्‍सव में मुल्‍ला जैसी पोशाक पहनकर लोग उसके क़िस्सों को अभिनीत करते है। एस्‍किशहर उसका जन्‍म गांव बताया जाता है।

ग्रीन लोग नसरूद्दीन के क़िस्सों को अपनी लोककथा का हिस्‍सा बनाते है। मध्‍ययुग में नसरूदीन के क़िस्सों का उपयोग तानाशाह अधिकारियों का मजाक उड़ाने के लिए किया जाता था। उसके बाद मुल्‍ला नसरूदीन सोवियत यूनियन का लोक नायक बना। एक फिल्‍म में उसे देश के दुष्‍ट पूंजीवादी शासकों के ऊपर बाजी मारते हुए दिखाया गया था।

मुल्‍ला मध्‍यपूर्व और उसके आसपास बसने वाली मनुष्‍य जाति के सामूहिक अवचेतन का हिस्‍सा बन गया। कभी वह बहुत बुद्धू बनकर सामने आता है तो कभी बहुत बुद्धिमान। उसके पास कई रहस्‍यों के भंडार है। सूफी दरवेश उसका उपयोग मनुष्‍य के मन के अजीबो गरीब पहलुओं को उजागर करने के लिए किया करते थे।
विद्वानों की कलम की बहुत सी स्‍याही नसरूद्दीन को कागज पर उतारने पर खर्च हुई है। जबकि नसरूदीन के पास उनके लिए कोई वक्‍त नहीं है। सूफी, जो कि विश्‍वास रखते है कि गहरी अंत: प्रज्ञा ज्ञान की पथप्रदर्शक है, इन कहानियों को ध्‍यान विधियों की तरह इस्‍तेमाल करते है। वे साधकों से कहते है कि इनमें कुछ मनपसंद कहानियों को चुनकर उन पर मनन करो और उन्‍हें जज़्ब करो। इस तरह उच्‍चतर प्रज्ञा में तुम्‍हारा प्रवेश होगा।
मुल्‍ला नसरूदीन को ऐतिहासिक व्‍यक्‍ति मानने की गलती न करें तो ही इसके मिथक को समझा जा सकता है। मुल्‍ला की लोकप्रियता का राज रही है। कि वह हर इंसान के भीतर बसता है। वह मानवीय मन का ही एक साकार रूप है। मुल्‍ला के लतीफ़ों को समझने के लिए कोई बड़ी दार्शनिक विद्वता नहीं चाहिए। एक ही बात आवश्‍यक है—अपने आप पर हंसने की क्षमता।

मुल्‍ला: दरवेशों का मुखिया और परिपूर्ण सदगुरू था। कई लोग कहते है, मैंने सीखना चाहा लेकिन यहां मुझे सिर्फ पागलपन मिला। फिर भी गहरी समझ को कहीं और खोजेंगे तो पायेंगे।

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