प्रधानमंत्री ने का कि जनमानस में सदन की जो तस्वीर उभर रही है। वह ऐसी नहीं है जिस पर सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते गर्व किया जा सके। वाजपेयी ने लोकसभा के मानसून सत्र के समापन संबोधन में (2001) यह बात कहीं।
ओशो-
‘’और क्योंकि मैंने अपने एक वक्तव्य में यह कहा कि भारतीय संसद करीब-करीब मंदबुद्धि है तो मुझे एक नोटिस थमा दिया गया, ‘’ आपने देश की महानतम संस्था का अपमान किया है……….
‘’मैंने उत्तर दिया: मैं संसद में आने को तैयार हूं, और पूरी ताकत से दोहराने के लिए तैयार हूं जो भी मैंने कहा है। और यह संसद का अपमान नहीं है। अगर आपको लगता है कि यह अपामान है तो मैं अपने थेरेपिस्ट, मनोचिकित्सक ले आता हूं, या फिर आप अपने थेरेपिस्ट और मनोचिकित्सक ले आइये और संसद के प्रत्येक सदस्य का निरीक्षण् करते है कि वह मंद बुद्धि है या नहीं। बिना निरीक्षण किये आप नहीं कह सकते है कि मैंने अपमान किया है।‘’
ओशो
द मसाया
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