ऐसा समझो कि तुम फिल्म देखते हो, प्रभावित होते हो, आंदोलित हो जाते हो,
दु:खी सुखी हो जाते हो। मगर अगर एक ही चित्र तुम्हारे सामने बना रहे परदे
पर, तो क्या तुम सुखी दुःखी होओगे। एक ही चित्र बना रहे, चित्र बदले न, तो
तुम कितनी देर तक समझोगे कि यह चित्र सही है। ज्यादा देर नहीं समझ पाओगे
कि चित्र सही है। थोड़ी देर में ही समझ जाओगे, ऊब जाओगे, कि अब बस उठूं, अब
घर जाऊं। अब यह एक ही चित्र है, कुछ हो ही नहीं रहा है।
वह जो कुछ हो रहा है, वही तुम्हें उलझाए रखता है। वह जो परिवर्तन है वही तुम्हें उलझाए रखता है। अगर जगत एक क्षण को भी ठहर जाए, तो तुम जगत् से मुक्त हो जाओ। जगत बदलता रहता है नए नृत्य, नए रंग, नए ढंग, नए परिधान हैं।
तुम देखते हो न, हर चीज की फैशन बदलती रहती है। वह जगत् का हिस्सा है। लोग कपड़े बदल लेते हैं, गहने बदल लेते हैं, मकान बदल लेते हैं, नौकरियां बदल लेते हैं, पत्नियां बदल लेते हैं, पति बदल लेते हैं, बदलाहट बदलाहट… मन कहता है बदलो। मन डरता है किसी चीज से अगर ज्यादा देर साथ रह गए, तो कहीं भ्रम न टूट जाए। तो मन कहता है, बदलते रहो। मन सतत बदलने के लिए प्रेरणा देता रहता है, क्योंकि मन जी ही सकता है बदलाहट में। और माया भी जी सकती है बदलाहट में।
माया यानी मन का विस्तार। मन, जिसको हम भीतर कहते हैं-वह। और माया, मन का ही बाहर जो विस्तार है-वह। मन भीतर की माया। माया बाहर का मन। वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। परिवर्तन में सारा खेल है।
इस देश ने एक अनूठा प्रयोग किया था। उस प्रयोग का शायद तुम्हें खयाल भी न रहा हो। सदियों तक हमने एक प्रयोग किया था। वह प्रयोग यह था कि जिंदगी को इस तरह रखा था कि उसमें ज्यादा बदलाहट न हो। इसलिए हमने एक स्त्री से विवाह किया, तो उस पर जोर दिया कि बस अब एक ही स्त्री के साथ रहना है। जीवनभर… एक पत्नी, एक पति। लोग एक तरह के कपड़े पहनते थे तो सदियां बीत जाती थीं उसी तरह के कपड़े पहनते थे लोग अपने गांव में रहते थे, तो अपने गांव में ही रहे आते थे।
लाओत्सु ने लिखा है कि मैं जब बच्चा था तो नदी के उस पार दूसरा गांव था। वहां के कुत्ते भौंकते थे तो हमें सुनाई पड़ते थे। और वहा सांझ को भोजन पकाया जाता था तो मकानों के ऊपर से उठता हुआ धुआं भी हमें दिखाई पड़ता था। लेकिन किसी की उत्सुकता नहीं थी कि जाकर देखें कि कौन वहां रहता है। हम अपने गांव में मस्त थे वे अपने गांव में मस्त थे। लोग एक गांव में पैदा होते, वहीं मर जाते थे, वहीं जीते थे। यह एक अनूठा प्रयोग था। इस प्रयोग के पीछे बुनियादी कारण क्या था। बुनियादी कारण यह था : अगर जगत् में कम से कम परिवर्तन हों तो तुम जल्दी ही जगत् से मुक्त होने की आकांक्षा से भर जाते हो। अगर एक ही पत्नी के साथ तुम्हें जिंदगीभर रहना पड़े तो तुम कितनी देर तक चूकोगे, यह बात समझने से—मीठो दिन दुई चार, अंत लागत है फीको! कैसे बचोगे। तुम चकित होओगे जान कर कि इसके पीछे एक आध्यात्मिक प्रक्रिया थी। अमरीका में बहुत मुश्किल है यह जानना। क्योंकि चार दिन में तो पत्नी बदल जाती है। दो चार दिन के बाद ही लगेगा न फीका। लेकिन दो चार दिन फिका लगने के पहले ही पत्नी बदल ली। तो हनीमून चलता ही रहता है। एक हनीमून से दूसरा हनीमून, दूसरे से तीसरा हनीमून। बदलाहट इतनी तेजी से होती रहती है कि भ्रांति टूटती नहीं।
अमरीका में लोग औसत रूप से तीन साल से ज्यादा एक धंधे में नहीं रहते। एक ही धंधे में रहोगे, ऊब ही जाओगे। ऊब बिल्कुल स्वाभाविक है। और जब ऊब होती है तो पता चलना शुरू होता है कि सब फिका है, सब व्यर्थ है। लेकिन धंधा हर तीन साल में बदल लिया। तीन साल ही अमरीका में धंधे बदलने का औसत है और तीन साल ही मकान बदलने का औसत है और तीन ही पत्नी पति बदलने का औसत है। तीन साल से कुछ संबंध दिखता है मन का। तीन साल के बाद दिखता है, ऊब सघन हो जाती है और सपना टूटने के करीब आ जाता है। इसके पहले कि सपना टूटे, बदल लो। नया सपना देखना शुरू करो।
वही फिल्म रोज रोज देखोगे, कितने दिन तक रोओगे? यह मुझे कहो। पहले दिन रो लोगे, दूसरे दिन रो लोगे, तीसरे दिन रो लोगे कब तक रोओगे, यह मुझे कहो। दो -चार दिन के बाद तुम कहोगे : बहुत हो गया। अब क्या रोना है। फिल्म है, कहानी है, ठीक है। वही उपन्यास पढ़ोगे, कितने दिन तक उत्सुकता रहेगी।
हमने जीवन के हर पहलू पर यह प्रयोग किया था। हमने सदियों तक एक ही फिल्म देखी ” रामलीला ”। सदियां आईं और गईं और वही राम, और वही सीता और वही रावण, और फिर वही कहानी, और फिर वही कहानी। और हर वर्ष लोग देखते ही रहे, देखते ही रहे, देखते ही रहे। इसके पीछे कुछ कारण था। हमने चाहा था कि चीजें थोड़ी थिर हो जाएं, ता थिरता से भ्रांति साफ हो जाए।
कभी कभी फिल्म में इंजिन बिगड़ जाए या प्रोजेक्टर खराब हो जाए, और फिल्म रुक जाती है। उसी वक्त तुम्हारी भाव दशा भी रुक जाएगी। इधर फिल्म रुकी, उधर भाव दशा रुकी।
बदलाहट के साथ ही मन जी सकता है।
ओशो
वह जो कुछ हो रहा है, वही तुम्हें उलझाए रखता है। वह जो परिवर्तन है वही तुम्हें उलझाए रखता है। अगर जगत एक क्षण को भी ठहर जाए, तो तुम जगत् से मुक्त हो जाओ। जगत बदलता रहता है नए नृत्य, नए रंग, नए ढंग, नए परिधान हैं।
तुम देखते हो न, हर चीज की फैशन बदलती रहती है। वह जगत् का हिस्सा है। लोग कपड़े बदल लेते हैं, गहने बदल लेते हैं, मकान बदल लेते हैं, नौकरियां बदल लेते हैं, पत्नियां बदल लेते हैं, पति बदल लेते हैं, बदलाहट बदलाहट… मन कहता है बदलो। मन डरता है किसी चीज से अगर ज्यादा देर साथ रह गए, तो कहीं भ्रम न टूट जाए। तो मन कहता है, बदलते रहो। मन सतत बदलने के लिए प्रेरणा देता रहता है, क्योंकि मन जी ही सकता है बदलाहट में। और माया भी जी सकती है बदलाहट में।
माया यानी मन का विस्तार। मन, जिसको हम भीतर कहते हैं-वह। और माया, मन का ही बाहर जो विस्तार है-वह। मन भीतर की माया। माया बाहर का मन। वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। परिवर्तन में सारा खेल है।
इस देश ने एक अनूठा प्रयोग किया था। उस प्रयोग का शायद तुम्हें खयाल भी न रहा हो। सदियों तक हमने एक प्रयोग किया था। वह प्रयोग यह था कि जिंदगी को इस तरह रखा था कि उसमें ज्यादा बदलाहट न हो। इसलिए हमने एक स्त्री से विवाह किया, तो उस पर जोर दिया कि बस अब एक ही स्त्री के साथ रहना है। जीवनभर… एक पत्नी, एक पति। लोग एक तरह के कपड़े पहनते थे तो सदियां बीत जाती थीं उसी तरह के कपड़े पहनते थे लोग अपने गांव में रहते थे, तो अपने गांव में ही रहे आते थे।
लाओत्सु ने लिखा है कि मैं जब बच्चा था तो नदी के उस पार दूसरा गांव था। वहां के कुत्ते भौंकते थे तो हमें सुनाई पड़ते थे। और वहा सांझ को भोजन पकाया जाता था तो मकानों के ऊपर से उठता हुआ धुआं भी हमें दिखाई पड़ता था। लेकिन किसी की उत्सुकता नहीं थी कि जाकर देखें कि कौन वहां रहता है। हम अपने गांव में मस्त थे वे अपने गांव में मस्त थे। लोग एक गांव में पैदा होते, वहीं मर जाते थे, वहीं जीते थे। यह एक अनूठा प्रयोग था। इस प्रयोग के पीछे बुनियादी कारण क्या था। बुनियादी कारण यह था : अगर जगत् में कम से कम परिवर्तन हों तो तुम जल्दी ही जगत् से मुक्त होने की आकांक्षा से भर जाते हो। अगर एक ही पत्नी के साथ तुम्हें जिंदगीभर रहना पड़े तो तुम कितनी देर तक चूकोगे, यह बात समझने से—मीठो दिन दुई चार, अंत लागत है फीको! कैसे बचोगे। तुम चकित होओगे जान कर कि इसके पीछे एक आध्यात्मिक प्रक्रिया थी। अमरीका में बहुत मुश्किल है यह जानना। क्योंकि चार दिन में तो पत्नी बदल जाती है। दो चार दिन के बाद ही लगेगा न फीका। लेकिन दो चार दिन फिका लगने के पहले ही पत्नी बदल ली। तो हनीमून चलता ही रहता है। एक हनीमून से दूसरा हनीमून, दूसरे से तीसरा हनीमून। बदलाहट इतनी तेजी से होती रहती है कि भ्रांति टूटती नहीं।
अमरीका में लोग औसत रूप से तीन साल से ज्यादा एक धंधे में नहीं रहते। एक ही धंधे में रहोगे, ऊब ही जाओगे। ऊब बिल्कुल स्वाभाविक है। और जब ऊब होती है तो पता चलना शुरू होता है कि सब फिका है, सब व्यर्थ है। लेकिन धंधा हर तीन साल में बदल लिया। तीन साल ही अमरीका में धंधे बदलने का औसत है और तीन साल ही मकान बदलने का औसत है और तीन ही पत्नी पति बदलने का औसत है। तीन साल से कुछ संबंध दिखता है मन का। तीन साल के बाद दिखता है, ऊब सघन हो जाती है और सपना टूटने के करीब आ जाता है। इसके पहले कि सपना टूटे, बदल लो। नया सपना देखना शुरू करो।
वही फिल्म रोज रोज देखोगे, कितने दिन तक रोओगे? यह मुझे कहो। पहले दिन रो लोगे, दूसरे दिन रो लोगे, तीसरे दिन रो लोगे कब तक रोओगे, यह मुझे कहो। दो -चार दिन के बाद तुम कहोगे : बहुत हो गया। अब क्या रोना है। फिल्म है, कहानी है, ठीक है। वही उपन्यास पढ़ोगे, कितने दिन तक उत्सुकता रहेगी।
हमने जीवन के हर पहलू पर यह प्रयोग किया था। हमने सदियों तक एक ही फिल्म देखी ” रामलीला ”। सदियां आईं और गईं और वही राम, और वही सीता और वही रावण, और फिर वही कहानी, और फिर वही कहानी। और हर वर्ष लोग देखते ही रहे, देखते ही रहे, देखते ही रहे। इसके पीछे कुछ कारण था। हमने चाहा था कि चीजें थोड़ी थिर हो जाएं, ता थिरता से भ्रांति साफ हो जाए।
कभी कभी फिल्म में इंजिन बिगड़ जाए या प्रोजेक्टर खराब हो जाए, और फिल्म रुक जाती है। उसी वक्त तुम्हारी भाव दशा भी रुक जाएगी। इधर फिल्म रुकी, उधर भाव दशा रुकी।
बदलाहट के साथ ही मन जी सकता है।
ओशो
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