तुमने खयाल किया, जब सफेद परदे पर कोई फिल्म चल रही हो… तूफान आया है,
भारी तूफान आया है, फिल्म में। झाड़ झंखाड़ गिरे जा रहे हैं, पहाड़ काँप रहे
हैं, भूकंप आया है, नावें डूब रही हैं, जहाज पानी में नष्ट हुए जा रहे हैं,
भवन गिर रहे हैं तब भी तुम सोचते हो, परदा काँप रहा होगा इस तूफान के
कारण। परदा कैंप भी नहीं रहा है। यह सारा तूफान, यह इतने बड़े मकानों का
गिरना, यह महलों का भूमिसात हो जाना, यह पहाड़ों का कंपना, ये बड़े बड़े
दरख्त, इनकी जड़ें उखड़ जानी, यह लोगों का मरना, यह जहाजों का डूबना यह सब
हो रहा है। लेकिन क्या तुम सोचते हो जिस परदे पर यह हो रहा है, वह परदा जरा
भी कैप रहा है। उसमें कंपन भी हो रहा है। उसमें कोई कंपन भी नहीं है। उसे
पता ही नहीं है इस तूफान का। यह तूफान सिर्फ तुम्हारी कल्पना में हो रहा
है। परदे के लिए हुआ ही नहीं।
ऐसा ही एक परदा तुम्हारे भीतर है, जिसको ज्ञानियों ने साक्षी कहा है। सफेद है परदा। उस पर कुछ भी नहीं हुआ, न कभी वहां कुछ हो सकता है। वहां सदा से शांति है। वहां सदा से शून्य विराजमान है। उसको अनुभव कर लेना, सत्य को अनुभव करना है। उसको जानना, ब्रह्मा को जानना है। उसको जानते ही, व्यक्ति ब्राह्मण हो जाता है। सपनों में खोए रहना शुद्र। सत्य के प्रति जाग जाना ब्राह्मण। जो सपने में खोए हैं, वे सब शुद्र हैं। वे ब्राह्मण घर में पैदा हुए हों, इससे फर्क नहीं पड़ता। और जो जाग गए हैं, वे चाहे शुद्र घर में पैदा हुए हैं, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता, ब्राह्मण हैं।
ओशो
ऐसा ही एक परदा तुम्हारे भीतर है, जिसको ज्ञानियों ने साक्षी कहा है। सफेद है परदा। उस पर कुछ भी नहीं हुआ, न कभी वहां कुछ हो सकता है। वहां सदा से शांति है। वहां सदा से शून्य विराजमान है। उसको अनुभव कर लेना, सत्य को अनुभव करना है। उसको जानना, ब्रह्मा को जानना है। उसको जानते ही, व्यक्ति ब्राह्मण हो जाता है। सपनों में खोए रहना शुद्र। सत्य के प्रति जाग जाना ब्राह्मण। जो सपने में खोए हैं, वे सब शुद्र हैं। वे ब्राह्मण घर में पैदा हुए हों, इससे फर्क नहीं पड़ता। और जो जाग गए हैं, वे चाहे शुद्र घर में पैदा हुए हैं, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता, ब्राह्मण हैं।
ओशो
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