यही सूत्र समझो। अपने को उघाड़ो और जानो।
स्वयं के भीतर ऐसा कुछ भी न रहे जो कि अनजाना है। अपने भीतर ऐसा कोई कोना न रह जाए जो कि अंधेरा है और अपरिचित है। यदि इतने सारे अंतकक्षों से परिचित हो जाऊं तो वही परिचय आत्म—विजय बन जाता है। अंधेरे घरों में, कोनों में और तलघरों में जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचता है और हवाओं के ताजे झोंके नहीं पहुंचते हैं, वहां सांप, बिच्छू और चमगादड़ अपना आवास बना लेते हैं। और ऐसे घरों के वासी यदि अपने भवनों के बाहर ही जीवन गुजार देते हों और कभी घरों में प्रवेश ही न करते हों, तो क्या उनके आवासों की यह दुर्दशा आश्चर्यजनक है या कि अस्वाभाविक है? यही हमारे साथ हुआ है।
हम भी ऐसे ही घरों के मालिक हैं जो कि अपने ही घरों में भीतर जाने का रास्ता भूल गए हैं, और जिनके घरों में प्रकाश के अभाव में और स्वयं की अनुपस्थिति के कारण उनके ही शत्रु अतिथि बने हुए हैं।
ओशो
स्वयं के भीतर ऐसा कुछ भी न रहे जो कि अनजाना है। अपने भीतर ऐसा कोई कोना न रह जाए जो कि अंधेरा है और अपरिचित है। यदि इतने सारे अंतकक्षों से परिचित हो जाऊं तो वही परिचय आत्म—विजय बन जाता है। अंधेरे घरों में, कोनों में और तलघरों में जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचता है और हवाओं के ताजे झोंके नहीं पहुंचते हैं, वहां सांप, बिच्छू और चमगादड़ अपना आवास बना लेते हैं। और ऐसे घरों के वासी यदि अपने भवनों के बाहर ही जीवन गुजार देते हों और कभी घरों में प्रवेश ही न करते हों, तो क्या उनके आवासों की यह दुर्दशा आश्चर्यजनक है या कि अस्वाभाविक है? यही हमारे साथ हुआ है।
हम भी ऐसे ही घरों के मालिक हैं जो कि अपने ही घरों में भीतर जाने का रास्ता भूल गए हैं, और जिनके घरों में प्रकाश के अभाव में और स्वयं की अनुपस्थिति के कारण उनके ही शत्रु अतिथि बने हुए हैं।
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