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Sunday, August 2, 2015

तुम संन्यस्त भी हो जाते हो, तो भी रंगते नहीं

मुझे बचपन की याद है। मेरे घर में भी वही होता था। कोई फटा पुराना कपड़ा होता, वे संभाल कर रख देते कि इसको रख दो, होली पर काम आएगा। मैं उनसे कहता : फिर होली में जाने की जरूरत क्या है? होली के लिए तो तुम अगर ताजे नए कपड़े बनाते हो तो ही मैं जानेवाला हूं, नहीं तो नहीं जानेवाला हूं। फिर गए किसलिए? उनका रंग खराब करवाने को? अपने कपड़े खराब हैं ही, उनका रंग और खराब करवाया। और कपड़े फेंक दिए, झंझट मिटी। तो मैं होली पर जब जाता था तो ताजे कपड़े ही लेकर जाता था। नहीं तो मैं कहता था कि मैं निकलूंगा ही नहीं घर से, क्योंकि इसका कोई सार ही नहीं है। उनको क्यों धोखा देना? वे बेचारे बड़ी तैयारी किए होंगे। रंग घोल कर रखे होंगे, पिचकारी सजाई होगी। और ये कपड़े तुमने धुलवा कर रख दिए हैं, कलफ चढ़वा कर रख दिए हैं। ये बड़े साफ सुथरे मालूम हो रहे हैं। मगर मुझे पता है। उनका पता नहीं है, यह ठीक है। मगर उनको भी पता होगा, क्योंकि वे भी ऐसे ही कपड़े पहने हुए हैं।

तुम संन्यस्त भी हो जाते हो, तो भी रंगते नहीं। तुम्हारी चालबाजिया जारी रहती हैं। तुम अपना गणित बिठाए रखते हो। अपना ही गणित बिठाना है, तो फिर मुझसे संबंध नहीं जुडा। अपना गणित नहीं जीता है, इसीलिए तो आदमी संबंध जोड़ता है कि अपने सोचने से नहीं हो सका, अब किसी के साथ संबंध जोड़ लें। अब किसी का हाथ पकड़ लें और अब चल पड़े अज्ञात की दिशा में। मगर सौ प्रतिशत होना चाहिए।… लचपच रह्यो समाय। यह सौ प्रतिशत का अर्थ है: लचपच रह्यो समाय। ऐसा नहीं, ऊपर ऊपर नहीं। रंग ही जाओ  बाहर - भीतर! शरीर भी रंगे और आत्मा भी रंग जाए। फिर यहां वहां जाने की जरूरत नहीं रह जाती, कोई कारण नहीं रह जाता। जो रंग गया वह रंग गया।

और अगर तुम यहां-वहां जाते रहे तो खयाल रखना : जिस मात्रा में तुमने मुझे धोखे दिए हैं, उसी मात्रा में तुम मुझे चूक जाओगे। फिर मुझसे मत कहना पीछे। क्योंकि जुम्मेवारी तुम्हारी है। तुम अगर मेरे साथ पूरे नहीं हो तो तुम मुझे अपने साथ कैसे पूरा पाओगे? मैं तुम्हारे साथ उतना ही हो सकता हूं जितना तुम मेरे साथ हो। और उतनी ही तुम्हारी उपलब्धि होगी।

संग साथ या तो सौ प्रतिशत हो तो बदलाहट लाता है, नहीं तो व्यर्थ चला जाता है। नाहक की मेहनत हो जाती है।

ओशो 

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